तेजी से पिघल रहे हिमालय के ग्लेशियर, 38 सालों में दोगुना हुआ झीलों का आकार : ISRO

विशेषज्ञों का कहना है कि इसरो के विश्लेषण के नतीजें चिंताजनक हैं क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियल झीलों के विस्तार से निचले क्षेत्रों में व्यापक परिणाम हो सकते हैं.

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हिमालय में ग्लेशियल झीलों का विस्तार चिंता का विषय है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि 2016-17 में पहचानी गईं हिमालय (Himalayas) की 2,431 झीलों में से कम से कम 89 प्रतिशत का 1984 के बाद से उल्लेखनीय विस्तार हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसरो के विश्लेषण के नतीजें चिंताजनक हैं क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण ग्लेशियल झीलों (Glacial Lakes) के विस्तार से निचले क्षेत्रों में व्यापक परिणाम हो सकते हैं. इसरो ने कहा कि पिछले तीन से चार दशकों के उपग्रह डेटा आर्काइव ग्लेशियल वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के बारे में काफी अहम जानकारी प्रदान कर रहा है. 

इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 1984 से 2023 तक भारतीय हिमालयन नदी घाटियों के जलग्रहण क्षेत्रों को कवर करने वाली दीर्घकालिक उपग्रह इमेजरी झीलों में हुए महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत देती है. इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 601 ग्लेशियल झीलें, दोगुने से अधिक विस्तारित हो गई हैं और 10 झीलें अपने आकार से दोगुना बढ़ गई हैं. वहीं 65 झीलों का विस्तार 1.5 गुना हुआ है. 

10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 ग्लेशियल झीलों में से 676 का काफी विस्तार हो चुका है, और इनमें से कम से कम 130 झीलें भारत में हैं - 65 (सिंधु नदी बेसिन), 7 (गंगा नदी बेसिन), और 58 (ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन) की हैं. इसरो ने आज जारी रिपोर्ट 'सैटेलाइट इनसाइट्स: एक्सपेंडिंग ग्लेशियल लेक इन द इंडियन हिमालय' में कहा कि 'ऊंचाई आधारित विश्लेषण से पता चलता है कि 314 झीलें 4,000 से 5,000 मीटर की सीमा में स्थित हैं, और 296 झीलें 5,000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर हैं'.

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इसरो ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में 4,068 मीटर की ऊंचाई पर स्थित घेपांग घाट ग्लेशियल झील (सिंधु नदी बेसिन) में दीर्घकालिक परिवर्तन 1989 और 2022 के बीच आकार में 178 प्रतिशत की वृद्धि को 36.49 से 101.30 हेक्टेयर तक बढ़ाते हैं. वृद्धि की दर लगभग 1.96 हेक्टेयर प्रति वर्ष है. 

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इसरो ने कहा कि उपग्रह-व्युत्पन्न दीर्घकालिक परिवर्तन विश्लेषण ग्लेशियल झील की गतिशीलता को समझने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि भी प्रदान करते हैं, जो पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करने और ग्लेशियल झील के कारण आने वाली बाढ़ (जीएलओएफ) जोखिम प्रबंधन और ग्लेशियल वातावरण में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए रणनीति विकसित करने के लिए आवश्यक हैं. 

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हिमालय के पहाड़ों को अक्सर उनके व्यापक ग्लेशियरों और बर्फ के आवरण के कारण "तीसरा ध्रुव" कहा जाता है, और वे अपनी भौतिक विशेषताओं और उनके सामाजिक प्रभावों दोनों के संदर्भ में वैश्विक जलवायु में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं. इसरो ने रिपोर्ट में कहा कि दुनिया भर में किए गए शोध से लगातार पता चला है कि 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से दुनिया भर में ग्लेशियरों के पीछे हटने और पतले होने की अभूतपूर्व दर का अनुभव किया जा रहा है. 

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इस वजह से हिमालय क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण होता है और मौजूदा झीलों का विस्तार होता है. ग्लेशियरों के पिघलने से बनी ये जलराशि हिमनदी झीलों के रूप में जानी जाती हैं और हिमालय क्षेत्र में नदियों के लिए मीठे पानी के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

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