- हिमाचल प्रदेश में 12 ग्राम पंचायतों का बादल फटने की वजह से सड़क संपर्क टूटा
- रोप वे के जरिए ही ग्रामीणों का आवागमन संभव है. इसले लिए प्रति व्यक्ति 50 रुपए किराया वसूला जा रहा है.
- सरकारी राहत सामग्री लेने के लिए ग्रामीण कई किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं. राहत सामग्री पर प्रति किलो एक रुपए का किराया देना पड़ रहा है.
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से सबसे बड़ी त्रासदी सराज घाटी के रहने वाले लोग झेल रहे है. सराज घाटी की 12 ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां 15 दिन बीतने के बावजूद सड़क संपर्क मार्ग नहीं हो सका है. दो बड़े पुल और सड़कें बह जाने के चलते इनको बनाने में कई महीने लग सकते हैं, ऐसे में व्यास नदी के ऊपर बना बगलामुखी रोप वे ही एक मात्र सहारा इनके आने जाने का बचा है. लेकिन त्रासदी के दस दिन तक रोप वे चलाने वाली कंपनी ने पैसा नहीं लिया, पर अब हर ग्रामीण से 50 रुपए किराया वसूला जा रहा है.
सरकारी राहत सामग्री लाने पर देना पड़ रहा किराया
यही नहीं ग्रामीण कई किमी पैदल चलकर सरकारी राहत सामग्री लेने जा रहे हैं, जब वो अपने गांव लौट रहे हैं तो इन राहत सामग्री पर भी 1 रुपए प्रति किलो किराया लिया जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि कब तक किराया देते रहेंगे, अगर हमारे पास पैसा ही होता तो हम राहत सामग्री लेने इतनी दूर क्यों जाते ?
बागलामुखी मंदिर पर दो साल पहले तैयार हुआ था रोप वे
पंडोह कस्बे से व्यास नदी के दूसरी तरफ स्थिति बांगलामुखी माता मंदिर के लिए रोप वे तैयार किया गया था, ताकि श्रद्धालु आसानी से आ जा सकें. लेकिन अब यही रोपवे ग्रामीणों के लिए लाइफ लाइन बन चुका है. दिक्कत ये है कि 12 दिनों से गांवों से संपर्क कटा है, वहां सब्जी फल और फूल की खेती होती थी पर अब कोई सड़क ही नहीं बची है कि इनका सामान बाजार तक पहुंचे. ऐसे हालात में गोभी की फसल सड़ रही है. यही नहीं बड़ी तादात में ग्रामीण दूध बाजारों तक पहुंचाते थे, वो भी रोप वे के जरिए सीमित तादात में पहुंच रहा है.
पुल बनवाने पर ठनी
इन इलाकों में बह गए पुल के निर्माण को लेकर हिमाचल प्रदेश की पीडब्ल्यूडी और भाखडा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के बीच ठनी है. दोनों एक दूसरे पर पुल बनाने की जिम्मेदारी डाल रहे हैं. ऐसे में स्थानीय निवासी ओम पाल कहते हैं कि कुछ पता नहीं है कि हमारा पुल और सड़क कब बनेगी, कितने दिन तक रोप वे से ही हमें जाना पड़ेगा.