इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी, पहला चुनाव हारे, हेमंत सोरेन के झारखंड टाइगर बनने की कहानी

Hemant Soren Political Career: हेमंत सोरेन ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर खुद को झारखंड टाइगर के रूप में स्थापित कर दिया है. जानिए उनके बारे में सब कुछ...

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
Hemant Soren Family: हेमंत सोरेन अपने बेटों के साथ चुनाव में जीत के बाद जश्न मनाते हुए. (फइल फोटो)

Hemant Soren Life: 28 नवंबर को चौथी बार झारखंड के सीएम पद की शपथ लेने वाले 49 वर्षीय हेमंत सोरेन सियासत में भले विरासत की उपज हों, लेकिन 21 सालों में अपनी समझ-बूझ, तेवर, संघर्ष और सियासी कौशल की बदौलत उन्‍होंने अपनी शख्सियत और राजनीतिक करियर को लगातार विस्तार दिया है. उनके पिता शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जो राजनीतिक जमीन बनाई, उसे हेमंत सोरेन ने न सिर्फ बखूबी संभाला, बल्कि चुनावी स्कोर बोर्ड पर कई शानदार रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया. हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त, 1975 को झारखंड के तत्कालीन हजारीबाग जिले के गोला प्रखंड के अंतर्गत नेमरा गांव में शिबू सोरेन-रूपी सोरेन की तीसरी संतान के रूप में हुआ. उन दिनों शिबू सोरेन अलग झारखंड राज्य की मांग और लड़ाई को धार देने के लिए नवगठित झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक पार्टी के तौर पर स्थापित करने की जद्दोजहद में जुटे थे.

हेमंत सोरेन ने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, राहुल, केजरीवाल सहित ये नेता पहुंचे

हेमंत सोरेन ने स्कूल की शुरुआती पढ़ाई बोकारो सेक्टर फोर स्थित सेंट्रल स्कूल से की. बाद में उनके पिता बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए तो उनका दाखिला पटना के एमजी हाई स्कूल में करा दिया गया. वहीं से उन्होंने 1990 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. 1994 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी उन्होंने पटना में ही की. इसके बाद रांची के बीआईटी (मेसरा) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, लेकिन उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी.

राजनीति में उन्होंने 2003 में कदम रखा. इसी साल झामुमो की छात्र इकाई झारखंड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष बने. 2005 में उन्होंने दुमका विधानसभा सीट से झामुमो उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन स्टीफन मरांडी ने उन्हें पराजित कर दिया. मई, 2009 में शिबू सोरेन के बड़े पुत्र और हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन का आकस्मिक निधन हो गया. दुर्गा सोरेन को शिबू सोरेन का स्वाभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जा रहा था. उनके निधन के बाद हेमंत सोरेन शोक संतप्त पिता के संबल बने.

Advertisement

जून, 2009 में उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से राज्यसभा भेजा गया. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में वह दुमका सीट से विधायक चुने गए और इसके बाद राज्यसभा से त्यागपत्र दे दिया. बड़े पुत्र के निधन से मानसिक तौर पर आहत शिबू सोरेन ने 2009-10 में हेमंत सोरेन को झामुमो में अपने उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने की कोशिश शुरू कर दी थी. शिबू सोरेन के लिए हेमंत सोरेन को विरासत हस्तांतरित करना बड़ी चुनौती थी, क्योंकि पार्टी में उनके समकालीन स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी और चंपई सोरेन जैसे कई बड़े नेता मौजूद थे. इन नेताओं के बजाय हेमंत सोरेन को नेतृत्व की कमान सौंपने का थोड़ा-बहुत आंतरिक विरोध हुआ, लेकिन अंततः शिबू सोरेन अपनी कोशिश में सफल रहे.

Advertisement

2010 के सितंबर में भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मिलकर झारखंड में सरकार बनाई. भाजपा के अर्जुन मुंडा सीएम बने और झामुमो के हेमंत सोरेन को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली. वह जनवरी 2013 तक इस पद पर बने रहे. हेमंत सोरेन ने पहला बड़ा सियासी दांव जनवरी, 2013 में खेला. उन्होंने सीएम अर्जुन मुंडा पर स्थानीय नीति और कई अन्य मुद्दों पर निर्णय न लेने का आरोप लगाते हुए उनकी सरकार से झामुमो का समर्थन वापस ले लिया. अर्जुन मुंडा की सरकार गिर गई. राज्य में करीब छह महीने तक राष्ट्रपति शासन रहा. इसके बाद कांग्रेस, राजद और झामुमो ने राज्य में सरकार बनाई.

Advertisement

हेमंत सोरेन ने पहली बार जुलाई 2013 में झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. सीएम के तौर पर हेमंत का पहला कार्यकाल करीब 17 महीने का रहा. 2014 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की हार हुई और उन्हें सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी. झारखंड मुक्ति मोर्चा को इस चुनाव में 19 सीटें मिलीं, जो 2009 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले मात्र एक ज्यादा थी. इसके बाद नेता प्रतिपक्ष के तौर पर हेमंत सोरेन ने अपने सियासी व्यक्तित्व को नई धार दी. राज्य की तत्कालीन रघुवर दास सरकार के खिलाफ उन्होंने कई मुद्दे खड़े गए. खास तौर पर झारखंड में जमीन से जुड़े सीएनटी-एसपीटी कानून कानून में रघुबर सरकार की ओर से संशोधन को वह आदिवासियों की अस्मिता के सवाल से जोड़ने में कामयाब रहे.

Advertisement

उन्हें इस मुद्दे पर आदिवासी समाज का व्यापक समर्थन मिला. उन्होंने सोशल मीडिया का भी बेहतर इस्तेमाल किया. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन किया. इस गठबंधन ने कुल 47 सीटों पर जीत दर्ज कर रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया. फिर, 29 दिसंबर, 2019 को हेमंत सोरेन ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. सीएम के तौर पर 2019 से 2024 के कार्यकाल के दौरान हेमंत सोरेन खनन लीज, खनन घोटाला, जमीन घोटाला जैसे आरोपों से घिरे.

तीखे राजनीतिक हमलों और कानूनी मोर्चों पर कठिन लड़ाई के बावजूद वह सरकार चलाने के रास्ते में आए तमाम अवरोधों को लांघने में सफल रहे. 31 जनवरी, 2024 को ईडी ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल भेजा, तो पांच महीनों के लिए सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी, लेकिन जेल में रहते हुए उनकी छवि संघर्षशील नेता के रूप में और निखरी. जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का सियासी तौर पर उभार हुआ और दोनों की जोड़ी ने इस बार चुनावी लड़ाई में अब तक का शानदार स्कोर खड़ा कर दिया.

हेमंत सोरेन ने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, राहुल, केजरीवाल सहित ये नेता पहुंचे

Featured Video Of The Day
Mrunal Thakur Spotted: नो मेकअप लुक में नजर आईं सुपर 30 की एक्ट्रेस मृणाल ठाकुर | Bollywood