गुजरात उच्च न्यायालय ने नारायण साई को पिता आसाराम से मिलने की अनुमति दी

न्यायमूर्ति इलेश वोरा और न्यायमूर्ति एसवी पिंटो की पीठ ने पिता से मिलने के लिए 30 दिन की अस्थायी जमानत के साई के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उसे पुलिस सुरक्षा में और अपने खर्चे पर ‘मानवीय आधार’ पर जोधपुर जेल में आसाराम से चार घंटे के लिए मिलने की अनुमति दे दी.

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अहमदाबाद:

गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दुष्कर्म के दोषी एवं कारागार में बंद नारायण साई को ‘मानवीय आधार' पर अपने पिता और स्वयंभू बाबा आसाराम से राजस्थान की जोधपुर जेल में चार घंटे तक मुलाकात करने की अनुमति दे दी. आसाराम बीमार हैं. नारायण साई वर्तमान में 2002 से 2005 के बीच अपने पिता के आश्रम में एक महिला का बार-बार यौन उत्पीड़न करने के मामले में सूरत जेल में बंद है. उसके पिता आसाराम भी नाबालिग के यौन शोषण के आरोप में जोधपुर केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.

न्यायमूर्ति इलेश वोरा और न्यायमूर्ति एसवी पिंटो की पीठ ने पिता से मिलने के लिए 30 दिन की अस्थायी जमानत के साई के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उसे पुलिस सुरक्षा में और अपने खर्चे पर ‘मानवीय आधार' पर जोधपुर जेल में आसाराम से चार घंटे के लिए मिलने की अनुमति दे दी.

साई ने 30 दिन के लिए जमानत के वास्ते दाखिल अर्जी में दावा किया कि आसाराम 86 वर्ष के हैं और ‘‘विभिन्न जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त हैं तथा उनकी जान को बहुत अधिक खतरा है.''

साई के वकीलों ने दलील दी, ‘‘याचिकाकर्ता के पिता की तबीयत बहुत चिंताजनक और अत्यधिक गंभीर है, क्योंकि जेल में रहते हुए उन्हें कई बार दिल का दौरा पड़ चुका है. प्रत्येक बीतते क्षण के साथ, उनकी स्थिति काफी बिगड़ती जा रही है और जेल अधिकारी ऐसी आपात स्थितियों से निपटने में सक्षम नहीं हैं.''

साई ने राहत की गुहार लगाते हुए कहा कि वह आसाराम का इकलौता बेटा है और 11 साल से अधिक समय से अपने पिता से नहीं मिल पाया है. पिछली सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के वकील हार्दिक दवे ने साई की अर्जी का पुरजोर विरोध किया था. उन्होंने दलील दी कि ‘‘उनके (आसाराम के)कई अनुयायी हैं और उनमें से कुछ आक्रामक हैं तथा उन्होंने अतीत में गवाहों पर हमला किया है.''

दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने आदेश दिया, ‘‘मानवीय आधार पर, तथा आसाराम की स्वास्थ्य स्थिति से संबंधित दस्तावेजों और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि आवेदक पिछले 11 वर्षों से अपने पिता से नहीं मिला है, हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि साई को पुलिस सुरक्षा के साथ हवाई मार्ग से जोधपुर जेल ले जाया जाए.''

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अदालत ने कहा कि उसकी सुरक्षा में एक सहायक पुलिस आयुक्त, एक पुलिस निरीक्षक, दो हेड कांस्टेबल और दो कांस्टेबल शामिल होंगे, जिनका खर्च आवेदक को उठाना होगा. पीठ ने साई को उक्त खर्च के लिए राजकोष में पांच लाख रुपये जमा कराने का आदेश दिया.

आदेश में कहा गया है कि आवेदक द्वारा राशि जमा कराए जाने के बाद, संबंधित प्राधिकारी द्वारा सात दिनों के भीतर उसे ले जाने के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाएगी. अदालत के आदेश में कहा गया है कि आवेदक को सूरत के लाजपोर केंद्रीय कारागार से सीधे जोधपुर की जेल ले जाया जाएगा, जहां उसे चार घंटे की मुलाकात के दौरान रखा जाएगा.

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पीठ ने स्पष्ट किया कि जोधपुर जेल प्राधिकरण इस अवधि के दौरान किसी अन्य व्यक्ति जैसे बहन, मां या अन्य को आवेदक से मिलने की अनुमति नहीं देगा. आवेदक के अलावा पिता-पुत्र की मुलाकात के दौरान कोई अन्य व्यक्ति नहीं होगा. आदेश में कहा गया है कि साई को जल्द से जल्द विमान से सूरत के लाजपोर केंद्रीय कारागार में वापस लाया जाएगा.

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