हर 10 में से 1 सीनियर सिटीजन, भारत बूढ़ा देश बनने की तरफ क्यों बढ़ रहा, आंकड़े चौंका देंगे

सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल आबादी का 9.7% हिस्सा अब 60 साल से अधिक उम्र के लोगों का है. 65 वर्ष से बुजुर्ग नागरिकों की हिस्सेदारी 6.4% तक हो गई है.

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  • भारत की कुल जनसंख्या में हर 10 में से 1 व्यक्ति 60 साल या उससे अधिक उम्र का हो चुका है
  • देश की अबादी में 65 वर्ष से ऊपर के नागरिकों की हिस्सेदारी 6.4 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है.
  • भारत में कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 रह गई है. वहीं पुरुषों की औसत उम्र 68.5 साल हो गई है.
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भारत को लंबे समय से दुनिया का सबसे युवा देश माना जाता रहा है. लेकिन अब जनसंख्या के आंकड़े अलग कहानी कह रहे हैं. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि देश की आबादी में हर 10 में से 1 शख्स बुजुर्ग है. बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, प्रजनन दर (Fertility Rate) घट रही है और जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) में इजाफा हो रहा है. ये सभी बताते हैं कि भारत एक बूढ़ा देश बनने की तरफ बढ़ रहा है. 

तेज़ी से बढ़ रहा बुढ़ापा

हाल ही में जारी एसआरएस रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, देश की कुल जनसंख्या का 9.7 फीसदी हिस्सा अब 60 साल से अधिक उम्र के लोगों का हो चुका है, जो 2011 के 8.6% से काफी ज्यादा है. देश की जनसंख्या में 65 वर्ष से ऊपर के नागरिकों की हिस्सेदारी 6.4 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है.

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 15 से 59 साल के लोगों की आबादी 1971 में 53.4 थी, जो 1981 में बढ़कर 56.3 हो गई. यह 1991 में 57.7  और 2023 में 66.1 प्रतिशत हो चुकी है. 

इसी तरह 0 से 14 साल के आयु वर्ग की जनसंख्या का हिस्सा 1971 से 1981 के बीच 41.2 प्रतिशत से घटकर 38.1 प्रतिशत रह गया था. अब 1991 के 36.3 प्रतिशत से गिरकर 2023 में यह 24.2 प्रतिशत पर आ गया है.

भारत क्यों हो रहा है बूढ़ा?

प्रजनन दर घट रही

भारत में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) अब घटकर 1.9 रह गई है. यह 2022 में 2.0 और 1971 में 5.2 थी. मतलब जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए जरूरी 2.1 के स्तर से भी कम हो चुकी है. इसका मतलब है कि देश में अब हर साल कम बच्चे पैदा हो रहे हैं.

राज्यों की स्थिति

बिहार (2.8), यूपी (2.6), एमपी (2.5), राजस्थान (2.3) और छत्तीसगढ़ (2.2) में टोटल फर्टिलिटी रेट सबसे ज्यादा है. वहीं दिल्ली (1.2), पश्चिम बंगाल (1.3), तमिलनाडु (1.3), महाराष्ट्र (1.4) और केरल-आंध्र (1.4) में सबसे कम है. 

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औसत उम्र बढ़ रही

भारत में जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) भी बढ़ रही है. हेल्थ सेवाओं में सुधार की वजह से लोगों की औसत उम्र बढ़ गई है. भारत में पुरुषों की औसत उम्र 68.5 साल और महिलाओं की 72.5 साल हो गई है. केरल और दिल्ली जैसे राज्यों में तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा है.

राज्यों की स्थिति 

सबसे ज्यादा औसत उम्र केरल (78.4 साल), दिल्ली (74.2 साल), हिमाचल (74.4 साल) और जम्मू कश्मीर (73.4 साल) में हैं. वहीं सबसे कम छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और असम में है. इन राज्यों में औसत उम्र राष्ट्रीय औसत से 5-7 साल कम है. 

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जन्म और मृत्यु दर में गिरावट

  • जन्म दर: 2023 में जन्म दर औसत 1000 लोगों में 18.4 रही. यह 1971 के 36.9 से लगभग आधी हो चुकी है. 2013 में यह 21.4 थी. 
  • मृत्यु दर: साल 2023 में मृत्यु दर प्रत्येक 1000 लोगों में 6.4 हो चुकी है, जो कि 1971 के 14.9 से काफी कम है. 
  • शिशु मृत्यु दर: 2023 में जन्म लेने वाले हर 1000 बच्चों में से 25 की मौत हुई थी. 1971 में यह आंकड़ा 129 का था. 

किन राज्यों में सबसे ज्यादा बुजुर्ग

भारत में सबसे अधिक बुजुर्ग आबादी केरल में है. यहां की लगभग 15% आबादी 60 साल से ऊपर की है. इसके बाद तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से बहुत ऊपर है. ये राज्य बुज़ुर्गों की स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन योजनाओं संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

इन राज्यों में सबसे युवा आबादी

युवा आबादी के मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य आगे हैं. यहां पर युवा आबादी का प्रतिशत अधिक है. यहां 60 साल से ऊपर के लोग केवल 7-8 प्रतिशत ही हैं. यही कारण है कि देश की जनसंख्या में अधिकतर वृद्धि इन्हीं राज्यों में हो रही है. जबकि दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में जनसंख्या स्थिर होने या फिर गिरावट की तरफ बढ़ रही है. 

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इस बदलाव का असर होगा?

भारत को अभी भी एक युवा देश माना जाता है, लेकिन आबादी में बदलाव इसी तेजी से होता रहा तो भारत भी बूढ़े होते देशों की लिस्ट में शुमार हो सकता है. दुनिया में चीन, जापान और यूरोपीय देशों की तरह भारत में भी बुजुर्ग आबादी को लेकर चुनौतियां सामने आ सकती हैं. इन समस्याओं में स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव, पेंशन व सामाजिक सुरक्षा की अधिक जरूरत और वर्कफोर्स में असंतुलन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं. इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है.

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