अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान के कब्जे और अमेरिका की वापसी के साथ तेजी से बदलते घटनाक्रमों को लेकर भारत सरकार भी चौकन्ना हो गई है. अफगानिस्तान के हालातों पर नजर रखने और भारत के हितों और प्राथमिकताओं का ध्यान रखने के लिए एक उच्चस्तरीय समूह बना था. सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister) ने इस समूह को भारत के सुरक्षा हितों और अफगानिस्तान में तात्कालिक प्राथमिकताओं पर फोकस करने को कहा है. भारत अब तक अफगानिस्तान से सैकड़ों भारतीयों और अल्पसंख्यक हिन्दू और सिखों को निकाल चुका है.
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इस उच्चस्तरीय समूह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उच्च अधिकारी शामिल हैं. यह उच्चस्तरीय समूह पिछले कुछ दिनों से लगातार नियमित तौर पर बैठकें कर रहा है. समूह अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी और अफगान नागरिकों (Afghan nationals) खासकर अल्पसंख्यकों की भारत यात्रा पर ध्यान दे रहा है. समूह यह सुनिश्चित करने का काम भी कर रहा है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार के आतंकवादी (terrorism ) गतिविधि के लिए इस्तेमाल न हो.
सूत्रों के अनुसार, समूह अफगानिस्तान के जमीनी हालात पर पैनी नजर बनाए हुए है और तालिबान के शासन को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर भी नजरें गड़ाए हुए है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council.) ने अफगानिस्तान को लेकर मंगलवार सुबह ही जो प्रस्ताव पारित किया है, वह भी इसी कवायद का हिस्सा है.
सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें तालिबान से अफगान नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अफगानिस्तान छोड़ने की इच्छा का सम्मान करने पर जोर दिया गया है. सुरक्षा परिषद ने उम्मीद जताई है कि तालिबान अफगानों और विदेशी नागरिकों के अफगानिस्तान से सुरक्षित रूप से विदेश जाने की राह में बाधाएं नहीं डालेगा.
तालिबान ने 27 अगस्त को कहा था कि अफगानी नागरिक विदेश यात्रा करने के हकदार होंगे, और वे हवाई या जमीनी किसी भी रास्ते से सीमा पार करके जब चाहें अफगानिस्तान से बाहर जा सकते हैं. प्रस्ताव में कहा गया है कि सुरक्षा परिषद आशा करती है कि तालिबान अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ न होने देने के अपने वादे पर खरा उतरेगा.