बिहार में उल्लेखनीय विकास हुआ, अब कुछ हद तक स्थिर: एनडीटीवी से बोले रुचिर शर्मा

शराब की बिक्री पर प्रतिबंध और इस कदम की लोकप्रियता के बारे में पूछे जाने पर, रुचिर शर्मा ने कहा कि अच्छी राजनीति हमेशा अच्छी अर्थव्यवस्था नहीं होती.

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  • बिहार ने दो हजार पांच से पंद्रह के बीच सड़क, बुनियादी ढांचा और विद्युतीकरण में उल्लेखनीय सुधार किया था.
  • पिछले दस वर्षों में बिहार की प्रति व्यक्ति आय भारत के औसत से काफी कम रहकर विकास में ठहराव दिखाती है.
  • राज्य को वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए शिक्षा सुधार और उद्योगों में नई पहल की सख्त आवश्यकता है.
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पूर्णिया:

बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है और दूसरे चरण के मतदान और नतीजों में बस कुछ ही दिन बाकी हैं. एनडीटीवी ने रुचिर शर्मा से बात की और जानने की कोशिश कि बिहार को विकास की गति तेज करने के लिए क्या करने की जरूरत है और वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए निवेशक अगली राज्य सरकार से क्या उम्मीद करेंगे. पूर्णिया में मखाना निकालते किसानों के बीच 'वॉक द टॉक' के नये संस्करण में ग्लोबल इन्वेस्टर और ऑथर ने एनडीटीवी के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल को बताया कि बिहार ने 2005 और 2015 के बीच उल्लेखनीय विकास देखा, लेकिन अब अगला कदम उठाने के लिए संघर्ष कर रहा है. उन्होंने वेल्फेयर ट्रैप के खतरों के बारे में भी बात की और बताया कि किस प्रकार ऐसी योजनाओं में बहुत अधिक धन लगाने से बुनियादी ढांचे और दीर्घकालिक विकास में निवेश के लिए पर्याप्त धन नहीं बचता.

2005 से 2015 के बीच क्या हुआ

चुनावी मौसम में बिहार की अपनी इस यात्रा में उन्होंने क्या देखा और राज्य में क्या बदलाव आए हैं, इस बारे में पूछे जाने पर शर्मा ने कहा, "मैं चार दिनों से बिहार में हूं. मेरी पहली यात्रा 2005 में हुई थी और तब से अब तक इस राज्य में काफ़ी नाटकीय बदलाव आया है. 2005 से 2015 के बीच, हमने राज्य में उल्लेखनीय बदलाव देखा. तब से, बिहार में कुछ हद तक ठहराव आने लगा है. इस यात्रा में मैंने जिस तरह की गरीबी देखी है, वह दिल दहला देने वाली है. यहां तक कि पटना के आस-पास के इलाकों में भी, हमने छोटे बच्चों को गंदगी से भरे तालाब से मछलियां निकालने की कोशिश करते देखा." उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "मैंने भारत के बारे में लगातार कहा है कि यह एक ऐसा देश है, जो आशावादी और निराशावादी, दोनों को निराश करता है. बिहार के लिए जो आशावाद मैंने महसूस की थी, उसके बाद यह यात्रा थोड़ी निराशाजनक रही. पिछले 10 वर्षों में बदलाव उतना नाटकीय नहीं रहा, जितना भारत के सबसे गरीब राज्य के लिए होना चाहिए था."

निवेशक ने कहा कि 2005 में बिहार "हर तरह से ख़राब" था और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के अगले दो कार्यकालों में हालात काफ़ी बदल गए. उन्होंने कहा कि 2005 से 2010 तक सड़कों, बुनियादी ढांचे और कानून-व्यवस्था में भारी सुधार हुआ, और फिर अगले पांच सालों में 2015 तक विद्युतीकरण में भी सुधार हुआ. उन्होंने कहा, "2015 के बाद अगला कदम नए उद्योगों और रोज़गार का सृजन होना चाहिए था. मुझे लगता है कि राज्य यहीं रुका हुआ है और अपना अगला विकास मॉडल खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है."

आंकड़ों पर गौर करते हुए, शर्मा ने बताया कि 2005 से 2015 के बीच बिहार की प्रति व्यक्ति आय शेष भारत के साथ अपने अंतर को कम करने लगी थी, जो लगभग 30% से बढ़कर लगभग 35% हो गई थी, लेकिन पिछले 10 वर्षों में यह अंतर फिर से बढ़ने लगा है. उन्होंने बताया, "बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज लगभग 70,000 रुपये प्रति वर्ष है, जो भारत की प्रति व्यक्ति आय, जो लगभग 2 लाख रुपये है, के 30% से भी कम है."

मुद्दे और आगे की राह

यह पूछे जाने पर कि नई सरकार को वैश्विक निवेशकों को बिहार में निवेश का विश्वास दिलाने के लिए क्या करना होगा, लेखक ने कहा कि राज्य में प्रतिभाओं की भरमार है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था अभी भी कमज़ोर है. उन्होंने कहा कि राज्य में टिके रहने वाली प्रतिभाओं को ढूंढना मुश्किल है, और रियल एस्टेट तथा निर्माण क्षेत्र में भी कोई खास प्रगति नहीं हुई है. शर्मा ने कहा, "बिहार को लेकर मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्य कल्याणकारी योजनाओं के जाल में फंसता जा रहा है. इस चुनाव में भी, चुनाव-पूर्व कल्याणकारी योजनाओं में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% खर्च करने की घोषणा की गई है. जब चीन विकास के इसी दौर में था, तब वह अपना सारा पैसा बुनियादी ढांचे में लगा रहा था और कल्याणकारी योजनाओं में कुछ भी नहीं, क्योंकि वह निर्मम पूंजीवाद का पालन कर रहा था. भारत में, हम अभी भी कल्याणकारी योजनाओं में बहुत निवेश कर रहे हैं." उन्होंने आगाह करते हुए कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संतुलन को बुनियादी ढांचे की ओर मोड़ने की कोशिश की, लेकिन मुझे लगता है कि राज्यों द्वारा कल्याण पर खर्च की जा रही राशि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. यह वेल्फेयर ट्रैप है. इस चुनाव में एक बड़ा कारक नीतीश कुमार की सरकार द्वारा महिलाओं को दिए गए 10,000 रुपये हैं, लेकिन अब तेजस्वी यादव 30,000 रुपये देने का वादा कर रहे हैं. राज्य इसी तरह के दुष्चक्र में फंस जाते हैं."

महिला फैक्टर

शर्मा ने कहा कि डिजिटलीकरण ने कल्याणकारी योजनाओं में लीकेज में उल्लेखनीय कमी ला दी है. तीन-चार महीने पहले बिहार में चुनाव कांटे के लग रहे थे, लेकिन अब एनडीए बढ़त बनाए हुए दिख रहा है. उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण महिलाओं को दिए गए 10,000 रुपये हैं. उन्होंने कहा, "नीतीश कुमार की महाशक्ति यह है कि वे महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं और यहां तक ​​कि बीजेपी ने भी यह समझ लिया है कि जातिगत सीमाओं से ऊपर उठकर महिलाओं के वोट को एकजुट करना यही एक संभावित तरीका है." शर्मा ने यह भी कहा कि इस बार बिहार में कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं दिख रही है. हां, 2020 के विधानसभा चुनावों में इसे महसूस किया गया था. उन्होंने कहा, "नीतीश कुमार को अभी भी काफ़ी लोकप्रियता हासिल है."

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शराबबंदी

शराब की बिक्री पर प्रतिबंध और इस कदम की लोकप्रियता के बारे में पूछे जाने पर, शर्मा ने कहा कि अच्छी राजनीति हमेशा अच्छी अर्थव्यवस्था नहीं होती. उन्होंने कहा, "जब हमने यात्रा की, तो हमें एहसास हुआ कि नशीली दवाओं का दुरुपयोग बढ़ गया है और अवैध शराब का कारोबार भी बढ़ गया है. बिहार में, सरकारी गतिविधियों से शायद ही कोई राजस्व प्राप्त हो रहा है और शराबबंदी लागू करके, आपने राजस्व का एक और स्रोत छीन लिया है. यह एक ऐसा संतुलन है, जिसे हर राज्य को सही रखना होगा. गुजरात जैसे राज्य के लिए इसे लागू करना एक बात है और बिहार के लिए अलग. बिहार की अर्थव्यवस्था उतनी मजबूत नहीं है." मगर फिर भी महिलाएं इस कदम से अभी भी खुश हैं.

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