कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद लोकसभा चुनाव में पहली बार देंगे अपनी 'लोकप्रियता की परीक्षा' 

आज़ाद ने कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद अपनी खुद की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी लॉन्च की है और तब से राहुल गांधी तथा सबसे पुरानी पार्टी की कार्यप्रणाली पर तीखे हमले कर रहे हैं.

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श्रीनगर:

दो साल पहले कांग्रेस छोड़ने वाले अनुभवी राजनेता गुलाम नबी आज़ाद जम्मू-कश्मीर में चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. अपनी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी की कई सार्वजनिक बैठकों के बाद, अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं. अनंतनाग-राजौरी सीट उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है. भाजपा भी इस सीट को गंभीरता से ले रही है.

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में भी काम कर चुके 75 वर्षीय गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "मैं अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने से इनकार नहीं कर रहा हूं."

आजाद ने एनडीटीवी को एक विशेष इंटरव्यू में बताया, "बहुत से लोग मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कह रहे हैं. संसद में मेरे रहने की मांग अधिक है, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो चाहते हैं कि मैं विधानसभा चुनाव लड़ूं."

गुलाम नबी आज़ाद के जम्मू-कश्मीर के चुनाव मैदान में आने के बाद, अनंतनाग में मुकाबला चौतरफा देखने को मिल सकता है. ये सीट कभी पीडीपी का गढ़ मानी जाती थी, हालांकि पिछले चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इसे जीत लिया था.

माना जा रहा है कि महबूबा मुफ्ती अनंतनाग सीट से चुनाव लड़ सकती हैं. पिछले संसद चुनाव में वो तीसरे नंबर पर आई थीं और उनकी पार्टी के खराब प्रदर्शन की ओर इशारा करते हुए उमर अब्दुल्ला ने पीडीपी को सीट देने से इनकार कर दिया है, जबकि दोनों पार्टियां इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं.

भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख रविंदर रैना भी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहे हैं और उन क्षेत्रों में रैलियां कर रहे हैं, जहां कुछ साल पहले तक भाजपा का जाना वर्जित था.

लंबे समय तक राज्यसभा के सदस्य रहे गुलाम नबी आज़ाद के लिए कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद, ये उनके गृह राज्य में लोकप्रियता की पहली परीक्षा होगी. ये अनंतनाग को भी उत्सुकता से देखी जाने वाली चुनावी लड़ाई बना देगा.

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गुलाम नबी आज़ाद का लोकसभा कार्यकाल 1980 के दशक में महाराष्ट्र के वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से था. 1991 से वो राज्यसभा के सदस्य रहे हैं. 2014 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उधमपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.

आज़ाद ने कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद अपनी खुद की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी लॉन्च की है और तब से राहुल गांधी तथा सबसे पुरानी पार्टी की कार्यप्रणाली पर तीखे हमले कर रहे हैं.

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली "एक राष्ट्र, एक चुनाव" समिति के सदस्य, आज़ाद ने कहा कि वो संसद और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव का पुरजोर समर्थन करते हैं, जो काफी समय से लंबित है.

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चुनाव की तैयारियों की समीक्षा के लिए चुनाव आयोग जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहा है. ऐसी खबरें हैं कि आयोग केंद्र शासित प्रदेश में एक साथ चुनाव कराने पर विचार कर रहा है.

उन्होंने कहा, "मैं जम्मू-कश्मीर में एक साथ चुनाव के पक्ष में हूं. जम्मू-कश्मीर के लोग संसद चुनावों से ज्यादा विधानसभा चुनावों को लेकर चिंतित हैं."

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जम्मू-कश्मीर में आखिरी निर्वाचित सरकार जून 2018 में गिर गई थी, क्योंकि भाजपा महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ गठबंधन से हट गई. 2019 में, राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया और संविधान के तहत इसकी विशेष स्थिति को भी समाप्त कर दिया गया. जम्मू-कश्मीर तब से राष्ट्रपति शासन के अधीन है.

भाजपा इसे स्थानीय पार्टियों के नेतृत्व वाली सरकारों पर सुधार बताती है. रविंदर रैना ने कहा, "आज गरीब लोगों को उनका अधिकार मिल रहा है. पीएम मोदी ने जम्मू-कश्मीर के प्रत्येक निवासी को गोल्डन (स्वास्थ्य कार्ड) दिया है."

गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद, उन्होंने पिछले 18 महीनों में जम्मू-कश्मीर में लगभग 600 सार्वजनिक बैठकें कीं. उन्होंने कहा, "मैं बहुत संतुष्ट हूं कि मैंने अपनी पार्टी बनाई है. समाज के सभी वर्गों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है, लेकिन उनकी असली चुनौती इस उत्साह को वोटों में तब्दील करना होगा."
 

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