- गौतम अदाणी ने बताया कि उनका बचपन गुजरात के बनासकांठा के रेगिस्तान में मां की गोद में बीता था
- गौतम अदाणी की मां हर शाम रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाकर कर्तव्य, भक्ति और धर्म के बीज बोती थीं
- मां ने प्रभु राम के वनवास, सीता की सहनशीलता और महाभारत के जीवन संदेशों को समझाया था
अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी आज अदाणी ग्लोबल इंडोलॉजी कॉन्क्लेव 2025 में मां को याद कर भावुक हो गए. इस दौरान गौतम अदाणी ने बताया कि उनका बचपन गुजरात के बनासकांठा के रेगिस्तान में बीता और दूसरे बच्चों की तरह मां ही उनकी पहली शिक्षक थीं. उनकी पहली पाठशाला मां की गोद थी. हर शाम मां उन्हें रामायण और महाभारत से जुड़ी कहानियां सुनाती थी. ये कहानियां सुनाकर मां उन्हें कर्तव्य, भक्ति और धर्म के बीज बो रही थीं.
गौतम अदाणी ने बताया, "मेरा बचपन गुजरात के बनासकांठा के रेगिस्तान में बीता. मेरी पहली पाठशाला मेरी मां की गोद थी. हर शाम जब घर के ऊपर सूरज ढलता था, तब हमारी मां (श्रीमती शांताबाई) सभी भाई-बहनों को साथ बिठाकर रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाती थीं.' गौतम अदाणी बताते हैं कि उनकी मां सिर्फ कहानियां नहीं सुनाती थीं, वह कर्तव्य, भक्ति और धर्म के बीज बो रही थीं. वह बताती थीं कि प्रभु राम का 14 साल का वनवास, सीता माता की अद्भुत सहनशीलता और भक्ति, समुद्र पर बने सेतु का इंजीनियरी चमत्कार, फिर से होने वाला वियोग, महाभारत में कृष्ण भगवान का प्रेम, परिवार, और धर्म की रक्षा का संदेश है.'
गौतम अदाणी ने कहा, 'मां समझाती थीं कि प्रभु राम की शक्ति उनके धनुष में नहीं, उनके धर्म में थी और जो अपना अहंकार छोड़ देता है, वही लोगों के हित के लिए दीपक बन सकता है.. उन्होंने कहा कि उनकी मां की कहानियों में हर पात्र का एक चेहरा था. एक पत्नी सीता, जो अंधेरी रातों में भी धैर्य की ज्योति बनी रहीं. भाई भरत और लक्ष्मण, जो धर्म के बंधन में बंधे रहे और हर घटना में छुपा एक गहरा जीवन-संदेश है. मां सिर्फ कहानी नहीं बता रही थीं, वह मुझे जीवन जीने का तरीका सिखा रही थीं.'
भावुक होते हुए गौतम अदाणी ने कहा, 'माता ही प्रथम गुरु है. पिछले वर्ष जब अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ, तो मां की वही कोमल आवाज़ फिर से मेरे दिल में गूंज उठी. उस क्षण मुझे उत्सव के साथ-साथ वह गहन चिंतन भी याद आया. जो प्रभु राम ने 14 साल के वनवास में जिया, धैर्य, त्याग, अनुशासन और धर्म का मार्ग.'
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