आज गणतंत्र के स्पेशल 26 में बात कुमाऊं और नागा रेजिमेंट की. गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने को लेकर कुमाऊं और नागा रेजिमेंट के बहादुर जवान तैयारियों में लगे हुए हैं. कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट्स में एक है. 1768 में इस रेजिमेंट का गठन हुआ था. तभी से इसके जवानों ने दुनिया भर में अपना लोहा मनवाया है. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध सहित बाद के युद्धों में भी यह रेजिमेंट शामिल रही है.
कुमाऊं रेजिमेंट ने फिलिस्तीन, मिस्र, म्यांमार, हांगकांग, कोरिया और जापान के अलावा यूरोप के कई अन्य देशों में भी लड़ाईयां लड़ी हैं. देश का पहला परमवीर चक्र इसी रेजिमेंट को गया था. ये मेजर सोमनाथ शर्मा को मिला था, जिन्होंने 1947 में श्रीनगर एयर फील्डर को बचाने में अहम भूमिका निभाई और शहीद हुए.
मशहूर है रेजांगला के युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की शौर्य गाथा
चीन के खिलाफ रेजांगला के युद्ध में इस रेजिमेंट की शौर्य गाथा अब कहानियों का हिस्सा हो चुकी है. मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट के 124 सैनिकों ने करीब दो हज़ार चीनी सैनिकों से लोहा लिया था. इनमें 114 सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. मेजर शैतान सिंह को बहादुरी का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र मिला. इसी तरह सियाचिन में ऑपेरशन मेघदूत में कुमाऊं रेजिमेंट ने ही पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया और बर्फीली चोटियों पर तिरंगा फहराया.
कुमाऊं रेजिमेंट के अधिकतर जवान उत्तराखंड से
1970 में जब नागा रेजिमेंट बनी, तो इसे कुमाऊं रेजिमेंट के साथ ही रखा गया. नागा रेजिमेंट के जवान पहाड़ से आते हैं और कुमाऊं रेजिमेंट के अधिकतर जवान उत्तराखंड से ही आते हैं. कुमाऊं रेजिमेंटल के सेंटर रानीखेत में ही नागा रेजिमेंट के जवानों को ट्रेनिंग दी जाने लगी.
कारगिल में नागा रेजिमेंट के जवानों ने जबरदस्त बहादुरी दिखाई. इसके जवानों को हेड हंटर भी कहा जाता है. जहां कही भी नागा रेजिमेंट के जवान तैनात होते हैं, इनका दबदबा देखने लायक होता है.