शुभांकर मिश्रा की कचहरी: जेल या गैंगस्टरों का नया हेडक्वार्टर, अपराधियों का ये कैसा VIP राज?

NDTV के इस स्‍पेशल शो में बताया गया कि कैसे ये गैंगस्टर अब साधारण अपराधी नहीं रहे, बल्कि 'कॉर्पोरेट माफिया' बन चुके हैं, जो जेल से बैठकर करोड़ों की आपराधिक अर्थव्यवस्था चला रहे हैं.

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  • एनडीटीवी इंडिया के फेमस शो कचहरी में जेलों को अपराधियों का हेडक्वार्टर बताते हुए संगठित अपराध पर गंभीर सवाल उठाए गए.
  • तिहाड़, बेउर, बरेली और पंजाब की जेलों में गैंगस्टर मोबाइल, इंटरनेट और दलालों के जरिए हत्या, रंगदारी और चुनाव प्रभावित कर रहे हैं.
  • जेलों में अपराधियों को महंगा खाना, टीवी, रेडियो और खास लोगों से मिलने की छूट जैसी सुविधाएं मिल रही हैं जबकि गरीब कैदियों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलतीं.
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नई दिल्‍ली:

एनडीटीवी इंडिया के फेमस शो ‘कचहरी' में भारत की जेलों में पल रहे संगठित अपराध पर गंभीर सवाल उठाए गए. शुभांकर मिश्रा ने इस आधार पर जेलों को 'गैंगस्टरों का हेडक्वार्टर' बताया कि कैसे सजा पाने के बाद भी अपराधी जेल से ही पूरे क्राइम नेटवर्क का संचालन कर रहे हैं. शो में बताया गया कि देश की कई जेलें अब अपराध रोकने की बजाय अपराध करवाने का अड्डा बन चुकी हैं. तिहाड़, बेउर, बरेली और पंजाब की जेलों में लॉरेंस बिश्नोई, काला जठेड़ी, अजय वर्मा जैसे गैंगस्टर मोबाइल, इंटरनेट और दलालों के जरिए हत्या, रंगदारी और चुनाव तक प्रभावित कर रहे हैं.

इस शो में पटना के व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या मामले की भी चर्चा हुई. इस हत्‍या की साजिश बेउर जेल में रची गई, जहां से अजय वर्मा ने पूरी योजना चलाई. बार-बार जेल में छापेमारी के दौरान मोबाइल, सिम, डाटा केबल और कॉल डिटेल्स का मिलना इस नेटवर्क की पुष्टि करता है.

यहां देखें पूरा वीडियो: 

जेलों में अपराधियों को VIP ट्रीटमेंट दिया जा रहा है- महंगा खाना, टीवी, महंगे साबुन, रेडियो, किताबें और यहां तक कि खास लोगों से मिलने की छूट तक. वहीं गरीब कैदियों को बुनियादी सुविधाएं भी नसीब नहीं.

कॉर्पोरेट माफिया बन चुके हैं गैंगस्टर

ये गैंगस्टर अब साधारण अपराधी नहीं, बल्कि 'कॉर्पोरेट माफिया' बन चुके हैं. जेल से बैठकर करोड़ों की आपराधिक अर्थव्यवस्था चला रहे हैं. मोबाइल फोन की कीमत जेल में 1 लाख रुपये तक पहुंच जाती है और हर सुविधा का रेट तय है.

जेल प्रशासन की मिलीभगत भी उजागर हुई है. चाहे तिहाड़ हो या बेउर, बार-बार एक ही अपराधी से मोबाइल मिलने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती. वसूली, छूट और दबाव के मामलों में अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं.

कचहरी का ये एपिसोड इस मानसिकता पर भी चोट करता है कि कैसे लॉरेंस बिश्नोई जैसे अपराधियों को सोशल मीडिया पर हीरो बना दिया जाता है. यह सोच हमारे समाज को अंदर से खोखला कर रही है.

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