जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भी कांग्रेस और सपा का समझौता नहीं हो पाया. इसके बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ने से भी इनकार कर दिया, जबकि सपा ने कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ी थीं. महाविकास अघाड़ी से सीटें न मिलने के बाद सपा ने महाराष्ट्र में नौ सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं.एमवीए ने उन दो सीटों पर उम्मीदवार नहीं खड़े किए हैं, जिन्हें पिछले चुनाव में सपा ने जीता था.इसके बाद अब लगने लगा है कि सपा और कांग्रेस के रिश्ते वैसे नहीं रहे, जैसा कि लोकसभा चुनाव के बाद थे.सपा और कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव भी मिलकर ही लड़ा था. लेकिन यह गठबंधन बहुत सफल नहीं हो पाया था. इसके बाद सपा ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ लिया था.इसके बाद दोनों दल 2024 के लोकसभा चुनाव में ही एक साथ आए.
कांग्रेस-सपा के रिश्ते के उतार-चढ़ाव
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में जगह न मिलने से नाराज सपा ने आठ सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं. इनमें से दो सीटों पर एमवीए ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. ये सीटें हैं मानखुर्द शिवाजीनगर और भिवंडी ईस्ट. ये दोनों सीटें सपा ने 2019 के चुनाव में जीती थीं. यहां से सपा ने अपने पुराने विधायकों को टिकट दिए हैं. मानखुर्द शिवाजीनगर से सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबु आजमी तो भिवंडी ईस्ट से रईश शेख सपा उम्मीदवार बनाए गए हैं.इनके अलावा मालेगांव सेंट्रल से शान ए हिंद निहाल अहमद, धुले सिटी से इरशाद जागीरदार, भिवंडी वेस्ट से रियाज आजमी, तुलजापुर से देवानंद साहेबराव रोचकरी, परांडा से रेवण विश्वनाथ भोसले, औरंगाबाद पूर्व से डॉक्टर अब्दुल गफ्फार कादरी सैय्यद और भायखला से सईद खान को टिकट दिया है. इन छह सीटों पर सपा और एमवीए में फ्रेंडली फाइट देखने को मिलेगी.
इस घटनाक्रम के बाद यह साफ होने लगा है कि कांग्रेस और सपा के रिश्ते सामान्य नहीं रहे.इसलिए अब दोनों दल आमने-सामने हैं. ऐसा पहली बार नहीं है, जब सपा और कांग्रेस आमने-सामने आए हैं. इससे पहले जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भी सपा और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे.सपा ने जम्मू कश्मीर की 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था.कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस, माकपा और पैंथर पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. अब सबकी जुबान पर सवाल यही है कि क्या सपा और कांग्रेस का गठबंधन सामान्य रह गया है. सपा और कांग्रेस की इस नूरा-कुश्ती को राजनीति के जानकारी राजनीतिक सौदेबाजी बता रहे हैं.उनका कहना है कि दोनों दल अपने-अपने स्ट्रांगहोल्ड वाले इलाकों में एक दूसरे की औकात बता रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस की मजबूती
उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव 2027 में होना है. इसकी तैयारी दलों ने अभी से शुरू कर दी है. इसके पहले नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव को 2027 के चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. समाजवादी पार्टी सभी नौ सीटों पर अकेले लड़ रही है. कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है. सपा ने पहले सात सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की. दो सीटें उसने कांग्रेस के लिए छोड़ दी थीं. इसके बाद कहा जाने लगा कि कांग्रेस गाजियाबाद सदर और खैर सीट के साथ ही फूलपुर सीट भी चाहती है और सपा इसके लिए तैयार भी हो गई है. लेकिन बाद में खबर आई कि कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है. उसने कहा कि इंडिया गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए उसने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है. हालांकि ऐसी भी खबरें थीं कि मनपंसद सीटें न मिलने की वजह से कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से इनकार किया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र में एमवीए से 12 सीटें मांगी थीं. उन्होंने कहा था कि वो कम पर भी समझौता करने को तैयार हैं. लेकिन एमवीए ने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी. इसके बाद से ही सपा-कांग्रेस के रिश्ते सामान्य रहने की चर्चा शुरू हो गई. लेकिन क्या परिस्थितियां ऐसी हैं कि सपा और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अकेले-अकेले चुनाव लड़ सकें. उत्तर प्रदेश में इस गठबंधन का मुकाबला बीजेपी से है, जो विजय रथ पर सवार है. उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी उसने हरियाणा में जीत हासिल की है. इसके बाद से उसके हौंसले बुलंद हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा का अकेले-अकेले बीजेपी का मुकाबला कर पाना मुश्किल नजर आता है. यूपी में बीजेपी भी अकेले नहीं है, वहां उसके चार और सहयोगी भी हैं, जो मजबूत वोट बैंक वाली पार्टियां हैं.
एक दूसरे के लिए कितना जरूरी है गठबंधन
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को एक मजबूत गठबंधन सहयोगी की जरूरत है, जिसके सहारे वह अधिक से अधिक सीटें जीत सके. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट जीत पाई थी. हाल यह हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी चुनाव हार गए थे. लेकिन सपा का साथ मिलने के बाद 2024 में कांग्रेस ने न केवल अमेठी और रायबरेली सीटें जीती बल्कि चार और सीटें भी जीत लीं. कांग्रेस अकेले लड़कर शायद यह कारनामा न कर पाती. इसलिए कांग्रेस के लिए सपा का साथ ज्यादा जरूरी है.
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद से मुसलमान कांग्रेस से जुड़े हैं. उत्तर प्रदेश में सपा का मजबूत वोट बैंक मुसलमानों को माना जाता है. कांग्रेस इसमें सेंध लगा सकती है. वह आरक्षण और संविधान बचाने के नाम पर दलितों को अपने साथ गोलबंद करने की कोशिश पहले से ही कर रही है. सपा के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) दलित और मुसलमान महत्वपूर्ण हिस्सा है. ऐसे में इन दोनों समुदायों में किसी तरह का बंटवारा रोकने के लिए गठबंधन इन दोनों दलों के लिए जरूरी है.
ये भी पढ़ें: कांग्रेस जातियों को लड़ाने का कर रही काम, एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे : महाराष्ट्र की रैली में PM मोदी