गुंटूर जिले से अंतरिक्ष तक : एक भारतीय महिला अंतरिक्षयात्री की मिसाल कायम करने वाली कहानी

34 साल की श्रीषा बांदला अमेरिका में पली बढ़ीं और वहां उन्होंने अपने सपने को पूरा किया. श्रीषा का कहना है कि मानसिक बाधाओं से लड़ना पड़ा

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श्रीषा बांदला का कहना है कि मानसिक बाधाओं से लड़ना पड़ा

बेंगलुरु:

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में शुरुआती दिन बिताने वाली एक लड़की श्रीषा बांदला अब अंतरिक्ष की उड़ान भरेगी.श्रीषा ने एनडीटीवी से कहा, "अगर में बचपन के दिनों को याद करूं तो बिजली की कटौती याद आती है. मैं अपने दादा-दादी के साथ छत पर सोती थी. मुझे अब कभी याद नहीं आता कि तारे इतने चमकीले होते हैं, तब कोई प्रदूषण नहीं होता था, ऐसा लगता था कि वो सीधे अपने चेहरे के पास हैं. तारों को इतना चमकीला देखने के साथ मेरे मन में जिज्ञासा पैदा हुई, कि ये कहां, मैं उनके बीच में जाना चाहता था."

34 साल की श्रीषा बांदला अमेरिका में पली बढ़ीं और वहां उन्होंने अपने सपने को पूरा किया. आंखों की कमजोर रोशनी के कारण वो नासा की अंतरिक्षयात्री नहीं बन सकती थीं और उन्होंने इंजीनियरिंग का रास्ता इसके लिए चुना. युवा एयरोस्पेस इंजीनियर रिचर्ड ब्रानसन के साथ के साथ उनकी वर्जिन गैलेक्टिक की अंतरिक्ष में पहली उड़ान का हिस्सा थीं. धरती से 90 किलोमीटर की ऊंचाई पर उनकी इस उड़ान ने उन पर गहरा प्रभाव डाला.

श्रीषा ने अपने अनुभव को लेकर कहा, "इतनी ऊंचाई से धरती को देखना और वायुमंडल की पतली नीली रेखा को देखना -मैं इसको लेकर बेहद खुशकिस्मत समझती हूं. यह मेरे लिए बेहद अविश्वसनीय क्षण था. -मैं अमेरिका के दक्षिणपश्चिम हिस्से की ओर देख रही थी. हम राज्यों की बात कर रहे थे, लेकिन मुझे कोई सीमा नहीं दिखी. यह दिखाता हैकि हम कितने विभाजित हो गए हैं.इस खूबसूरत धरती को काले रंग के आसमान से देखना अकल्पनीय है. लिहाजा धरती पर वापस लौटने को लेकर बेहद ऊर्जावान महसूस कर रही हूं."

श्रीषा ने कहा, यह बेहद भावुक कर देने वाला दृश्य था, जिसका शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है. मैं चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस यात्रा का अनुभव करें. मैं उस वक्त तक का इंतजार नहीं कर सकती कि ज्यादा  से ज्यादा पेशेवर अंतरिक्ष में जाएं और अपने अनुभवों के बारे में हमें विस्तारपूर्वक बताएं. कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद श्रीषा भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं, जो अंतरिक्षयात्री बनी हैं

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