भारतीय राजनीति में चुनाव जीतने के लिए मुफ़्त सुविधाओं का वादा करना 'रेवड़ी कल्चर' कहा जाता है, और उसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क रखे जाते हैं. माहौल ऐसा है कि देश की कई राजनीतिक पार्टियों का वोटबैंक ही 'रेवड़ी कल्चर' पर टिका नज़र आता है, लेकिन भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल तथा जाने-माने वकील हरीश साल्वे इसे भ्रष्टाचार का ही एक रूप मानते हैं, और उन्होंने चुनाव जीतने के लिए रेवड़ी कल्चर (मुफ्त में पैसा बांटना या सुविधाएं देने का ऐलान करना) को सस्ता राजनीतिक कदम बताया है. NDTV के एडिटर-इन-चीफ़ संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में हरीश साल्वे ने चुनावी हथकंडे के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली मुफ्तखोरी पर जमकर हमला बोला.
हरीश साल्वे ने कहा, "रेवड़ी कल्चर भी एक तरह का भ्रष्टाचार है... आप करदाताओं का पैसा दोनों हाथों से बांटो, चुनाव जीतने के लिए, इससे ज़्यादा घटिया राजनीति नहीं हो सकती... इस पर मैं एक ही बात कहूंगा कि भारत अकेला देश नहीं है, जहां यह हो रहा है... कई देशों में ऐसा हो रहा है... यूरोप में आप देख लीजिए, समाजवाद के नाम पर जो कुछ किया गया है, उससे वहां की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है... वेतन बढ़ा दिए हैं, कर्मचारियों के लिए जो नियम बनाए हैं, वे अर्थव्यवस्था के अनुकूल नहीं हैं... इससे उत्पादन की लागत बढ़ गई है, कर्मचारी काम नहीं करते..."
साल्वे ने अन्य देशों का भी उदाहरण देते हुए कहा, "फ्रांस में आप देखें, किस तरह का माहौल चल रहा है... हर दूसरे दिन वहां हड़ताल हो जाती है... यहां UK में आप देख लीजिए, क्या हाल है... डॉक्टर हड़ताल पर चले जाते हैं, नर्सें हड़ताल पर चली जाती हैं, ट्रेन कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं और पूरा देश ऊपर से नीचे हो जाता है... लंदन जैसे शहर में एक-तिहाई जनसंख्या 'मोबाइल पॉपुलेशन' है, जो रोज़ काम करने आती है और चली जाती है... यहां ट्रेन सिस्टम, अंडरग्राउंड सिस्टम रुक जाए, तो शहर पूरी तरह पैरालाइज़ हो जाता है... यहां हर दूसरे दिन ऐसे ही हालात देखने को मिलते हैं... क्यों हो रहा है यह, क्योंकि यहां की राजनीति में भी यही चल रहा है... करदाताओं का पैसा बांटा जा रहा है..."
हरीश साल्वे ने कहा कि रेवड़ी कल्चर में भारत अलग ही रफ़्तार से दौड़ रहा है. उन्होंने कहा, "भारत में तो 'रेवड़ी कल्चर' को हम एक अलग स्तर पर ले गए हैं... मैं आज पढ़ रहा था कि एक राज्य के मुख्यमंत्री अपने विधायकों से कह रहे थे कि वह पहले साल में उनके क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करना है... हमने जनता से कहा था, चुनाव जिता दो, तो 40 हज़ार करोड़ रुपये देंगे... अब हम चुनाव जीत गए हैं, तो पैसा उन्हें देना है..."
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