"कर्नाटक की पाठ्यपुस्‍तकों में 'संशोधन' को वापस नहीं लिया गया तो सड़कों पर उतरूंगा" : पूर्व सीएम सिद्धारमैया

बीजेपी नीत कर्नाटक सरकार, आरएसएस संस्‍थापक केबी हेडगेवार के भाषण को स्‍कूली पाठ्यपुस्‍तकों में शामिल करके विवादों में घिर गई है

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कांग्रेस नेता सिद्धारमैया इस समय राज्‍य की बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रामक मूड में हैं
बेंगलुरू:

कर्नाटक के पूर्व सीएम और दिग्‍गज कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ( Siddaramaiah)इस समय राज्‍य की बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रामक मूड में हैं. सिद्धारमैया ने कहा है कि यदि कर्नाटक सरकार ने संशोधित स्‍कूली पाठ्यपुस्‍तकों को वापस नहीं लिया तो उनकी सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेगी. उन्‍होंने कहा कि इससे कन्‍नड़ों की भावनाओं को ठेस पहुंची है. पूर्व सीएम ने बेंगलुरू में कहा, "रोहित चक्रतीर्थ (पाठ्यपुस्‍तक संशोधन समिति के प्रमुख) की ओर यह बदलाव किए गए हैं जो परंपरागत RSS कार्यकर्ता हैं. मैं उम्‍मीद करता हूं कि सरकार इसमें बदलाव पर विचार करेंगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम सड़कों पर उतरेंगे. "

गौरतलब है कि राज्‍य पाठ्यपुस्‍तक समीक्षा समिति को भंग करने के बाद सीएम बासवराज बोम्‍मई ने पहले नया पैनल गठित करने से इनकार कर दिया था और RSS के संस्‍थापक केबी हेडगेवार का अध्‍याय शामिल करने के फैसले का बचाव किया था. पाठ्यपुस्‍तक विवाद पर संवाददाताओं से बात करते हुए बोम्‍मई ने कहा था,, "नई कमेटी गठित करने का सवाल ही नहीं है. पुरानी कमेटी को इसका काम पूरा होने के बाद भंग किया गया है. हम उन विद्वानों से बात करेंगे जिन्‍होंने पाठ्यपुस्‍तकों में बासवन्‍ना के संदर्भ में मुझे पत्र लिखे थे. मैं पहले ही कर चुका हूं कि हमारी बासव पथ वाली सरकार है."   

बोम्‍मई ने कहा, "बारागुर रामचंद्र कमेटी का गठन, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 2015 में किया था. हमारी कमेटी ने पाठ्यपुस्‍तक संशोधन पर ध्‍यान दिया था. लिंगा दीक्षे (linga deekshe)को छोड़कर, दोनों ही कमेटियों की एक जैसी सिफारिशें थीं. मुझे पत्र लिखने वाले सभी धर्मगुरुओं/विद्वानों की हम राय लेंगे." गौरतलब है कर्नाटक सरकार ने इस माह की शुरुआत में राज्‍य पाठ्यपुस्‍तक समीक्षा समिति (state textbook review committee) को भंग करने का ऐलान किया था. पाठ्यपुस्‍तक में संशोधन पर विवाद के बीच यह कदम उठाया गया था. बीजेपी नीत कर्नाटक सरकार, आरएसएस संस्‍थापक केबी हेडगेवार के भाषण को स्‍कूली पाठ्यपुस्‍तकों में शामिल करके विवादों में घिर गई है जबकि कथित तौर पर स्‍वाधीनता सेनानियों, साहित्‍यकारों और समाज सुधारकों के अध्‍यायों को छोड़ दिया गया है.  

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