समलैंगिक विवाह पर क्यों मचा है बवाल? केंद्र सरकार ने क्या दिया हलफनामा? LGBTQ एक्टिविस्ट की राय

केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि संविधान में पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

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समलैंगिक विवाह पर केंद्र सरकार के हलफनामे पर LGBTQ एक्टिविस्ट ने प्रतिक्रिया दी है.
तिरुवनंतपुरम:

देश में समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) पर चल रही बहस के बीच एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) एक्टिविस्ट प्रिजिथ पीके ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर 'होमोफोबिक' (समलैंगिकों को लेकर डर) रवैये का प्रदर्शन कर रही है. वह आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपने पारंपरिक वोट बैंक को साध रही है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपने हलफनामे में, समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि समान-लिंग वाले जोड़ों के एक साथ रहने की प्रथा अब गैर-अपराध है, मगर समलैंगिक विवाह को मंजूरी नहीं दी जा सकती.

केंद्र सरकार का हलफनामा
केंद्र सरकार ने हलफनामे कहा कि ये भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ है. परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से होती है. भागीदारों के रूप में एक साथ रहना और समान-लिंग वाले व्यक्तियों के साथ यौन संबंध रखना पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा के साथ तुलनीय नहीं है. संविधान में अनिवार्य रूप से एक जैविक पुरुष को एक 'पति', एक जैविक महिला को एक 'पत्नी' और दोनों के मिलन से पैदा हुए जीव को बच्चे के रूप में माना जाता है. इसमें जैविक पुरुष को पिता के रूप में और जैविक महिला को मां के रूप में देखा जाता है. 

एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट की राय
प्रिजित ने कहा "समान-सेक्स विवाह के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया हलफनामा आश्चर्यजनक है. एक राजनीतिक दल और सरकार के रूप में, वे (भाजपा) हमेशा एलजीबीटीक्यू लोगों के हितों के खिलाफ खड़े होते हैं. उन्होंने ऐसा हलफनामा आगामी चुनावों पर नजर रखते हुए किया है. उनका यह होमोफोबिक रवैया केवल उनके पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट रखने करने के उद्देश्य से है." केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे का विरोध करते हुए, प्रिजिथ ने कहा कि विविधता और समावेश भारतीय संस्कृति का आधार है. प्रिजीत ने कहा, "वे किस संस्कृति की बात कर रहे हैं? भारत की संस्कृति विविधता और समावेश पर आधारित है. जब वे समलैंगिक अधिकारों को स्वीकार करते हैं, तो उन्हें एलजीबीटीक्यू लोगों के विवाह अधिकारों को भी स्वीकार करना चाहिए. उन्हें कानून को स्वीकार करना चाहिए, जिसने LGBTQ लोगों के विवाह, गोद लेने के अधिकार और मौलिक अधिकारों को स्वीकार किया है और उन्हें बरकरार रखा है. 

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56 पेज के हलफनामे में यह भी तर्क
केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि ऐसी याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है. समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिन्हें समान रूप से नहीं माना जा सकता है. यह भारतीय परिवार के विचार के अनुरूप नहीं है.अपने 56 पेज के हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए. क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है. मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?

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अब इस दिन होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली विभिन्न याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ की संविधान पीठ को समान लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.

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