श्रद्धा और भक्ति ऐसा अनूठा संगम और कहां, मानसरोवर झील पहुंचे पहले जत्थे ने क्या कहा

जैसे ही तीर्थयात्री मानसरोवर झील पहुंचे, उन्होंने इसके पवित्र जल से आचमन किया और पूजा-अर्चना की. इस झील का शांत, निर्मल जल और सामने दिखाई देने वाला कैलाश पर्वत हर किसी को भाव-विभोर कर रहा था.

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  • भारतीय तीर्थयात्रियों का पहला जत्था कैलाश मानसरोवर पहुंचा
  • तीर्थयात्रियों ने मानसरोवर झील के पवित्र जल की पूजा-अर्चना की
  • हिंदू धर्म में कैलाश मानसरोवर यात्रा का विशेष महत्व
  • इस साल 750 श्रद्धालु मानसरोवर की पवित्र यात्रा पर हैं
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पांच साल के लंबे इंतज़ार के बाद, भारतीय तीर्थयात्रियों का पहला जत्था कैलाश मानसरोवर की पवित्र भूमि पर पहुंचा. यह वह स्थान है, जहां स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती का निवास माना जाता है, और जहां मानसरोवर झील का पवित्र जल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. इस साल 750 श्रद्धालु इस यात्रा पर निकले हैं, जिनमें से 500 नाथुला और 250 लिपुलेख मार्ग से इस पवित्र धाम तक पहुंचेंगे.

मानसरोवर झील पर लोगों की पूजा

जैसे ही तीर्थयात्री मानसरोवर झील पहुंचे, उन्होंने इसके पवित्र जल से आचमन किया और पूजा-अर्चना की. इस झील का शांत, निर्मल जल और सामने दिखाई देने वाला कैलाश पर्वत हर किसी को भाव-विभोर कर रहा था. एक श्रद्धालु ने कहा, "यहां खड़े होकर लगता है कि हम ब्रह्मांड के केंद्र में हैं, जहां कैलाशपति शिव का वास है. इसके आगे हम बोल भी नहीं सकते, बस उनकी कृपा को महसूस करते हैं."

भाव-विभोर हो गए तीर्थयात्री

एक यात्री ने बताया, "हमें भगवान शिव का सबसे बड़ा सहारा मिला. कहीं बारिश नहीं हुई, हर जगह धूप थी, जिससे हमारी यात्रा सुगम रही." इस जत्थे में 20 साल के युवा से लेकर 69 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे, और सभी ने परिक्रमा और यात्रा को पूर्ण भक्ति के साथ पूरा किया. इनमें से एक महिला तीर्थयात्री ने मौन व्रत धारण किया था, वह अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकती थीं, लेकिन उनके चेहरे की चमक और आंखों की नमी बता रही थी कि कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन ने उन्हें कितना आनंद और शांति दी.

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मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत की क्या अहमियत

मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत हिंदुओं के लिए असीम आस्था का केंद्र हैं. मान्यता है कि इस झील का जल पापों को धो देता है और कई रोगों को दूर करता है. हालांकि, अब यहां नहाने की अनुमति नहीं है, लेकिन जल का सेवन और दर्शन ही श्रद्धालुओं के लिए पर्याप्त हैं. कोरोना महामारी और भारत-चीन के बीच तनाव के कारण यह यात्रा पांच साल तक बंद रही थी. लेकिन अब, दोनों देशों की सरकारों के बीच सहमति के बाद, जून 2025 के आखिरी हफ्ते में तीर्थयात्रियों का पहला दल यहां पहुंचा. आने वाले समय में 10 और जत्थे इस पवित्र यात्रा को पूरा करेंगे.

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