नक्सलवाद के खिलाफ आखिरी जंग: अमित शाह की डेडलाइन से पहले बस्तर का सबसे खूनी अध्याय

गृहमंत्री अमित शाह की 31 मार्च 2026 की समयसीमा अब करीब है. लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या बस्तर वाकई शांति देख पाएगा, या यह आंकड़े अगले साल भी सिर्फ बढ़ जाएंगे?

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नक्सल फ्री भारत की डेडलाइन पास.
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  • गृहमंत्री अमित शाह की देश से 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद पूरी तरह खत्म करने की समयसीमा खत्म होने को है.
  • बस्तर क्षेत्र में 2001 से 2025 तक तीन हजार चार सौ चार मुठभेड़ें हुईं, जिसमें 1,541 नक्सली मारे गए हैं.
  • दो दशकों में 7,826 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, 2025 में यह संख्या सबसे अधिक थी.
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रायपुर:

जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने देश से 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद पूरी तरह खत्म करने की समयसीमा तय की, तो उन्होंने इसे “लाल आतंक के खिलाफ़ अंतिम चरण” कहा था.लेकिन अगर बस्तर रेंज जिसे रेड कॉरिडोर का दिल कहा जाता है के आंकड़े देखें, तो यह “अंतिम चरण” अब तक का सबसे खूनी अध्याय साबित हुआ है. दो दशक से अधिक चले इस संघर्ष ने सिर्फ नक्सलियों और सुरक्षाबलों को नहीं, बल्कि जंगलों, गांवों और उम्मीदों को भी निगल लिया है.

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3,404 मुठभेड़ें, 1,541 नक्सली मारे गए, बस्तर में अब भी जंग जारी 

2001 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से लेकर अब तक 3,404 मुठभेड़ें दर्ज हुई हैं. सुरक्षाबलों के नजरिये से सबसे बड़ी कामयाबी उन्हें 2025 में मिली, जब 89 मुठभेड़ों में 224 नक्सली मारे गए. यह दो दशक में सर्वाधिक आंकड़ा है. 2024 में भी 123 मुठभेड़ों में 217 नक्सलियों को ढेर किया गया. हालांकि 2006 में सबसे ज्यादा मुठभेड़ें (276) हुई थीं, उसमें 60 नक्सली मारे गए, जो इस संघर्ष की तीव्रता और बदलती रणनीति दोनों को दिखाता है.

1,315 जवानों की शहादत

हर ऑपरेशन के पीछे कई चेहरे ऐसे हैं जो कभी लौटे नहीं. 2001 से 2025 तक कुल 1,315 सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में शहीद हुए. सबसे जानलेवा साल रहे 2007 (200 जवान शहीद) और 2010 (171 शहादतें) जब दंतेवाड़ा और बुरकापाल जैसे नरसंहारों ने पूरे देश को झकझोर दिया. 2025 में भी 20 जवानों ने जान गंवाई यह बताने के लिए काफी है कि जंगल में अब भी जंग जारी है.

सामूहिक आत्मसमर्पण की लहर: 7,826 नक्सलियों ने हथियार डाले

दो दशकों की थकान और टूटते भ्रम ने नक्सली ढांचे में विद्रोह पैदा किया. 2001 से 2025 तक 7,826 नक्सलियों ने हथियार छोड़े. सबसे बड़ी लहर आई 2025 में (1319 आत्मसमर्पण). उससे पहले 2016 में जब (1208 आत्मसमर्पण) हुआ था, जिनमें एरिया कमांडर और जोनल सचिव स्तर के कई बड़े नाम शामिल थे.

13,416 नक्सली गिरफ्तार, फिर भी ख़त्म नहीं हुआ लाल नेटवर्क

बीते 25 सालों में 13,416 नक्सली गिरफ्तार हुए. सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं 2018 (1,136), 2017 (1,016) और 2024 (929) में, जो बड़े हमलों के बाद चली जवाबी कार्रवाई का परिणाम थीं. लेकिन गिरफ्तारियों के बावजूद, जंगल से भर्ती की नई लहरें आती रहीं. गरीबी, बेरोज़गारी और बदले की भावना से भरे युवा इस हिंसक चक्र का हिस्सा बनते चले गए.

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नागरिकों ने चुकानी कीमत: 1,817 निर्दोष मारे गए

इस जंग की सबसे बड़ी कीमत उन लोगों ने चुकाई जिन्होंने न हथियार उठाए थे, न विचारधारा अपनाई थी. 2001 से 2025 तक 1,817 आम नागरिक बस्तर में नक्सली हिंसा के शिकार हुए. 2006 सबसे भयावह साल रहा, जब 279 नागरिकों की हत्या हुई. इसके बाद 2007 (152 मौतें) और 2005 (122 मौतें) भी बस्तर के लिए खून से लथपथ साल रहे. अक्सर इन्हें “सूचना देने वाला-इंफॉर्मर” बताकर गांव के बीच गोली मार दी जाती थी.

जंगल में छिपे बम और बारूद: 4,312 IED बरामद, 3,327 हथियार जब्त

2001 से अब तक सुरक्षाबलों ने नक्सल ठिकानों से 4,312 IED और विस्फोटक बरामद किए हैं. 2025 में सबसे ज्यादा 820 आईडी बरामद हुए. यह बताता है कि बस्तर का जंगल अब भी बारूद के जाल में तब्दील है. इसके अलावा 3,327 हथियार बरामद हुए, जो यह साबित करते हैं कि नक्सली कैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं.

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नक्सल आंदोलन जो कभी विचारधारा के नाम पर शुरू हुआ था, अब हिंसा, भय और प्रतिशोध का व्यापार बन चुका है. हर गोली की गूंज किसी गांव में एक बच्चे की चीख बनकर लौटती है. हर “एनकाउंटर” किसी परिवार की आंखों में अधूरी नींद छोड़ जाता है.

क्या बस्तर अब वाकई शांति देख पाएगा?

गृहमंत्री अमित शाह की 31 मार्च 2026 की समयसीमा अब करीब है. लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या बस्तर वाकई शांति देख पाएगा, या यह आंकड़े अगले साल भी सिर्फ बढ़ जाएंगे? क्योंकि ये सिर्फ नंबर नहीं हैं, 3,404 मुठभेड़ें, 1,541 नक्सली मारे गए, 1,315 जवान शहीद, 1,817 आम नागरिक मारे गए, 7,826 आत्मसमर्पण, 13,416 गिरफ्तारियां, 4,312 विस्फोटक बरामद हो चुके हैं. बस्तर अब भी आंकड़े गिन रहा है और जंगल अब भी जल रहा है.

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