टीकाकरण केंद्रों (Vaccination centres) पर अब ज़्यादा लोग नज़र आने तो लगे हैं लेकिन अब भी कुछ-कुछ इलाक़ों में लोग टीके से परहेज़ कर रहे हैं. मुंबई (Mumbai) में जहां मुस्लिम बहुल बस्तियों में मुस्लिम लीडर्स घूम घूमकर समझा रहे हैं. वहीं महाराष्ट्र के नांदेड ज़िले में आदिवासी बहुल एक गांव भी टीके को लेकर ख़ौफ़ में है. मुंबई की मुस्लिम बहुल बस्तियों में माहिम-हाजी अली दरगाह समिति (Mahim-Haji Ali Dargah Committee) के सदस्य घूम-घूम कर लोगों के दिलों दिमाग से वैक्सीन का ख़ौफ़ हटाने की कोशिश कर रहे हैं. इन बस्तियों में शिराज़ अहमद, नौमान ख़ातिब जैसे कई लोग हैं जो सुनी सुनायी बातों पर यकीन करके टीका लगवाने को लेकर असमंजस में हैं.
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शिराज़ अहमद का कहना है कि वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की बातें सुनी हैं, जब ये डर-ख़ौफ़ निकल जाएगा तो फ़ैमिली के साथ हम सब इंशाल्लाह लगवाएँगे. वहीं नौमान ख़ातिब का कहना है कि बहुत सुना है की वैक्सीन से कुछ लोगों पर बुरा प्रभाव दिखा है, एक दोस्त ने भी बताया की उनके किसी जानने वाले कपल ने वैक्सीन ली थी और उनकी मौत हो गयी. इसलिए दिमाग़ में ज़रा उलझन है, मुझे कुछ हो गया तो मेरे परिवार का क्या होगा?
वहीं, मुस्लिम लीडर्स की ओर से कलेक्टर, BMC को ख़त भेजकर माँग की गयी है कि मुंबई की माहिम-हाजी अली दरगाह, माटुंगा मस्जिद जैसी जगहों पर वैक्सिनेशन सेंटर शुरू हो, ताकि लोगों में भरोसा बनाकर इन्हें टीका लगाया जा सके.
माहिम-हाजी अली दरगाह के मैनेजिंग ट्रस्टी सुहैल खंडवानी ने कहा कि ये सोसायटी को पे-बैक करने का टाइम है. इस बीमारी का कोई तय उपचार तो है नहीं, एक चीज़ हमारे सामने है और वो है वैक्सीन, जो हमें कुछ समय के लिए सुरक्षित रख सकती है, हम रेजिस्टर्ड बॉडी हैं, हमारे पैनल पर डाक्टर्ज़ भी हैं और इसकी स्टडी की है, ये सेफ़ है. लोगों को ग़लत धारणा से निकलना चाहिए और वैक्सीन से खुद शील्ड करना चाहिए.
इधर, महाराष्ट्र के नांदेड ज़िले में आदिवासी बहुल बावनगुडाखेड़ी गाँव टीके को ना कह चुका है. यहां के निवासी मालकुबाई तोड़सा का कहना है कि नहीं हम लोग डरते हैं, कहते हैं कि बुख़ार आता है, लोग मर जाते हैं, व्हाट्सऐप आता है, टीवी पर देखते हैं, हम घबराए हुए हैं. सरकारी डॉक्टरों की टीम, ग्राम पंचायत सदस्य के समझाने के बावजूद टीके पर भरोसा नहीं बन पाया है.
ग्राम पंचायत सदस्य देवेंद्र टोबे ने कहा कि अनपढ़ लोग हैं, डर रहे हैं की टीके के बाद बीमार पड़ते हैं और दो चार दिन में मौत हो जाती है आदमी नपुंसक हो जाता है, ऐसा डर है इनमें, डॉक्टर की टीम आयी थी तो गांव वालों ने कहा कि हमको लिख कर दो की अगर कुछ हुआ तो ज़िम्मेदारी आपकी. डॉक्टर सरोजा आढ़े के मुताबकि, ''हम बार बार कोशिश कर रहे हैं उनको, वहाँ जाकर समझाने की कोशिश कर रहे हैं, उनको बता रहे हैं की उनके पास के जो दूसरे गांव हैं वो लगवा चुके हैं, उनको कोई तकलीफ़ नहीं हुई है, ये हम इनको बता रहे हैं लेकिन ये मानने को तैयार नहीं हैं.''
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वैसे इस लहर से पहले की तस्वीर और टीका केंद्रों पर अब की तस्वीर में बहुत फ़र्क़ है, भरोसा बढ़ रहा है और बढ़ाने की ज़रूरत है.
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