Kisan Aandolan: कृषि कानूनों (Farm Laws) पर सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत का दौर जारी है लेकिन कोई सर्वसम्मत हल पर सहमति नहीं बन पा रही है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने शु्क्रवार को राजधानी के विज्ञान भवन में 11वें राउंड की बैठक (Talk Between government and Farmers) में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से वार्ता की. कृषि मंत्री तोमर (Narendra singh Tomar) ने कहा, 'पिछली बैठक में सरकार की ओर से किसान संगठनों के समक्ष ठोस प्रस्ताव रखा गया था, जिसमें सरकार ने सुधार कानूनों के क्रियान्वयन को एक से डेढ़ साल तक स्थगित करने की बात कही थी. इस दौरान किसानों और सरकार के प्रतिनिधि, विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से विचार करके समाधान पर पहुंच सकते थे, इस पर संगठनों ने 21 जनवरी की अपनी आंतरिक बैठक में विचार करके 22 जनवरी को सरकार के साथ बैठक के दौरान अपनी राय बताने की बात कही थी.'
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कृषि मंत्री के अनुसार, सरकार ने आज की बैठक के दौरान किसान संगठनों से उनके निर्णय से अवगत कराने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि हमने, किसान संगठनों को आंदोलन समाप्त करने हेतु समाधान की दृष्टि से श्रेष्ठतम प्रस्ताव दिया है.सरकार लगभग दो माह से देशभर के किसानों के व्यापक हित में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ लगातार बातचीत कर रही है. इस दौरान किसान संगठनों को कई अच्छे प्रस्ताव दिए तथा किसानों के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त की. सरकार की तरफ से यह कहा गया कि वह खुले मन से किसानों द्वारा उठाये जाने वाले सभी मुद्दों पर संवेदनशीलता से विचार को तैयार है. नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार द्वारा प्रस्ताव दिये गये, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि कृषि सुधार कानूनों में कोई खराबी थी फिर भी आंदोलन तथा किसानों का सम्मान रखने के लिए और उनके प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए ये प्रस्ताव दिए गए.सरकार की ओर से सभी दौर की बैठकों में संगठनों को सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कहा गया परन्तु संगठन कानूनों को रद्द (रिपील) करने की जिद पर अड़े रहे. यह भी प्रस्ताव दिया गया कि रिपील के अलावा यदि कोई भी अन्य विकल्प संगठनों द्वारा दिया जाता है तो उस पर सरकार खुले मन से विचार करने के लिए तैयार है.
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उन्होंने कहा कि 10वें दौर की बातचीत में यह प्रस्ताव भी दिया गया कि सरकार कानूनों को एक से डेढ़ वर्ष तक स्थगित करने पर विचार कर सकती है और कानूनों के समस्त पहलुओं पर विचार के लिए कमेटी का गठन कर सकती है. सहमति के आधार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एफिडेविट भी इस संबंध में दिया जा सकता है. इस पूरे दौर में आंदोलनकर्ता किसान संगठनों द्वारा वार्ता के मुख्य सिद्धान्त का पालन नहीं किया गया क्योंकि हर बार उनके द्वारा नए चरण का आन्दोलन घोषित होता रहा जबकि वार्ता के दौरान नए आंदोलन की घोषणा सौहार्द्रपूर्ण चर्चा को प्रभावित करती है.तोमर ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है वार्ता के दौर में मर्यादाओं का पालन तो हुआ लेकिन किसान के हक में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भावना का अभाव था. इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे खेद है.'' विज्ञप्ति के अनुसार, 'मंत्रीजी' ने आज बैठक के आखिरी सत्र में बड़े ही खेद के साथ और भारी मन से सभी आंदोलनकर्ता किसान संगठनों के समक्ष अपनी बात रखी और उन्हें पुन: विचार करने का आह्वान किया. यह भी प्रस्ताव दिया है कि यदि उनके (किसानों के) द्वारा सहमति दी जाती है तो वह बताएं, हम कल इस समझौते पर आगे बढ़ सकते हैं. सरकार ने समस्त आंदोलनकर्ता किसान संगठनों के नेताओं को शान्तिपूर्ण आंदोलन संचालित करने के लिए धन्यवाद दिया. कृषि मंत्री ने आभार प्रकट करते हुए वार्ता समाप्ति की घोषणा की.
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