महाराष्ट्र सरकार ने फ़ैसला किया है कि अहमदनगर जिले का नाम अब अहिल्यानगर होगा. अहिल्याबाई होलकर की 298वीं जयंती के अवसर पर महाराष्ट्र सरकार ने यह फ़ैसला किया है. दिलचस्प है कि दोनों नामों से एक लंबा इतिहास जुड़ा हुआ है.
कैसे पड़ा था अहमदनगर नाम...?
इतिहास के पन्ने पलटें, तो पता चलता है की अहमदनगर, जिसका प्राचीन नाम भीनर (कुछ स्थानों पर भिंगर भी लिखा जाता है) रहा है, कई शासनकालों का हिस्सा रहा है. अहमदनगर की सरकारी वेबसाइट बताती है कि अहमदनगर प्राचीन काल में, यानी क़रीब 240 ईसापूर्व के सम्राट अशोक के साम्राज्य में एक छोटा-सा गांव हुआ करता था और आने-जाने के लिए अहम बाईपास भी. फिर आंद्रभृत्य राजवंश, राष्ट्रकूट राजवंश ने अहमदनगर को अपना हिस्सा बनाया. जब यह इलाक़ा चालुक्य साम्राज्य में आया, तो यहां कई मंदिर और गुफ़ाएं बनीं, जिनमें हरीशचंद्रगढ़ के मंदिर और गुफ़ा नामी हैं.
1170 से 1310 के बीच यह देवगिरी यादवों के अधीन भी रहा. अलाउद्दीन ख़िलजी के भारत में आने के बाद इन इलाक़ों में निज़ाम बदलते रहे. पहले अहमदनगर बहमनी साम्राज्य का हिस्सा बना, फिर निज़ामशाही के दौरान एक स्वतंत्र राज्य था अहमदनगर. बहमनी शासक मलिक अहमद निज़ाम शाह के नाम पर इस जिले का नाम अहमदनगर पड़ा था. पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब में भी इसका ज़िक्र किया गया है.
अहिल्याबाई होलकर का इतिहास...
अहिल्या बाई होलकर अहमदनगर के चौंडी गांव में पैदा हुई थीं, और उनके पिता मानोकोजी राव शिंदे ने उस ज़माने में उन्हें पढ़ाया-लिखाया, जब लड़कियों के पढ़ने-लिखने की मनाही थी. अहिल्याबाई का विवाह आठ साल की उम्र में पेशवा बाजीराव के सेनाप्रमुख मल्हार राव होलकर के बेटे खांडेराव होलकर से हुआ था. 1754 में पति के निधन के बाद अहिल्याबाई ने मालवा की देखरेख करनी शुरू की. पेशवा की अनुमति लेकर अहिल्याबाई ने इंदौर में 1767 में मालवा की राजगद्दी संभाली. मालवा पर क़रीब 30 साल तक होलकरों का राज रहा.
- 1849 में अहिल्याबाई के बारे में स्कॉटलैंड की कवयित्री जोआना बेली ने लिखा था, "जिसका हृदय कोमल और जिसका नाम उज्ज्वल - उसका नाम अहिल्या था..."
- ब्रिटिश सामाजिक कार्यकर्ता ऐनी बेसेंट ने भी लिखा, "हिन्दू और मुसलमान, दोनों रानी का सम्मान करते थे..." ऐनी बेसेंट बताती हैं, "अहिल्याबाई ने गरीबों, बेघरों, अनाथों - सबके लिए बहुत काम किया..."
- हैदराबाद के निज़ाम ने कहा था, "कोई महिला नहीं अहिल्या बाई जैसी - कोई शासक नहीं अहिल्या बाई जैसा..."
- अमेरिकी इतिहासकार गॉर्डन लिखते हैं, "18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई का शासन सबसे स्थिर था..."
- 'भारत - एक खोज' पुस्तक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अहिल्याबाई को अच्छी शासक और संगठनकर्ता माना था.
अहिल्याबाई का नाम मध्यकाल की उन गिनी-चुनी महिला शासकों में आता है, जिन्होंने अपने लोगों के लिए बहुत काम किया. ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कियास ने अहिल्याबाई का नाम 'फ़िलॉस्फ़र क्वीन' (दार्शनिक रानी) रखा, जिसे राजनीति की अच्छी समझ थी. अहिल्याबाई ने न सिर्फ़ मालवा में, बल्कि देशभर में मंदिर और धर्मशाला बनवाने में बड़ा योगदान दिया था.
हाल ही के दिनों में अहमदनगर महाराष्ट्र का तीसरा शहर है, जिसका नाम बदला जा रहा है. इससे पहले, इसी साल फरवरी में औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव रखा जा चुका है. अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से शहरों के नाम बदलना कोई नई बात नहीं है, लेकिन उससे जुड़े इतिहास को सहेजकर रखना बड़ी ज़िम्मेदारी है, क्योंकि यह भी सच है कि नाम बदलने से इतिहास नहीं बदला करते.