तिरुवनंतपुरम: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) नवीन चावला ने कहा है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार से चुनाव खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है, लेकिन उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यापक राजनीतिक परामर्श और संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी, जो आसान काम नहीं है. ‘मनोरमा ईयरबुक 2024' के लिए एक लेख में, चावला ने कहा कि इस कदम का एक कारण चुनाव खर्च को कम करने के साथ-साथ निर्वाचन आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता लागू करने की आवृत्ति को कम करना है.
बुधवार को यहां मलयाला मनोरमा द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में उनके हवाले से कहा गया कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव' (ओएनओई) के लिए व्यापक राजनीतिक परामर्श और बड़े संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी, जो आसान काम नहीं है. चावला भारत के 16वें सीईसी थे. उन्होंने बताया कि सितंबर, 2023 में आयोजित संसद के छह दिवसीय विशेष सत्र और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति के गठन के बाद एक बार फिर एक साथ चुनाव के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया गया है.
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा वर्षों से लंबित है. उन्होंने कहा कि इसे भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई), सांसदों, विधायकों और मतदाताओं के दृष्टिकोण से परखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग के दृष्टिकोण से, ओएनओई का कार्यान्वयन तकनीकी रूप से संभव है. उन्होंने कहा, ‘‘मतदाताओं की संख्या वही रहेगी, लेकिन अधिक साजो-सामान की जरूरत होगी. कम से कम दो-तिहाई अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और ‘वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल' (वीवीपैट) का निर्माण करना पड़ेगा.''
उन्होंने कहा कि एक और महत्वपूर्ण मुद्दा मतदान कर्मचारियों की संख्या होगी, जो काफी बढ़ जाएगी और प्रक्रियाओं का सही ढंग से पालन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण देना होगा. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र, संसदीय और राज्य विधानसभा में अपेक्षित जनशक्ति (जिला मजिस्ट्रेट/निर्वाचन अधिकारी और सहायक कर्मचारी) की आवश्यकता होगी.
चावला ने कहा कि भारत में आम चुनाव दुनिया में सबसे बड़ी कवायद है. उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग एक अरब मतदाता होंगे. उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में सभी मतदाताओं के लिए ईवीएम/वीवीपैट मशीनों की व्यवस्था करनी होगी.
उन्होंने कहा कि इन संवैधानिक बदलावों के लिए मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो कि आसान काम नहीं है. चावला ने कहा कि एक साथ चुनाव का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है कि इससे खर्च कम होगा. उन्होंने कहा कि इन लोगों का यह भी तर्क होता है कि चुनाव की घोषणा होने पर ईसीआई द्वारा बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करने से विकास कार्य बाधित होते हैं.
उन्होंने कहा कि कानूनी विशेषज्ञों के लिए विचार करने के लिए कुछ मुद्दे भी होंगे. उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिर जाती है, तो केंद्र में वैकल्पिक सरकार नियुक्त करने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है.
चावला ने कहा, ‘‘अगर सरकार 13 दिन के भीतर गिर जाती है, जैसा कि एक बार हुआ था, तो क्या तत्काल दोबारा चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी? जर्मनी के विपरीत हमारे पास अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने वाली सरकार के स्थान पर ‘रचनात्मक' सरकार गठित करने का कोई प्रावधान नहीं है.''