EXCLUSIVE: तवांग में झड़प के बाद अरुणाचल प्रदेश में ड्रोन, लड़ाकू विमानों से नज़र रख रहा चीन

MAXAR से ये तस्वीरें उस वक्त मिली हैं, जब चीन की बढ़ी हुई हवाई गतिविधियों की वजह से अरुणाचल प्रदेश के आकाश में भारतीय वायुसेना (IAF) भी लगातार युद्धक हवाई गश्त कर रही है...

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चीन के बांगदा एयरबेस से मिली तस्वीर में अत्याधुनिक डब्ल्यूज़ेड-7 'सोरिंग ड्रेगन' ड्रोन दिखाई देता है (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...
नई दिल्ली:

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में झड़प के कुछ ही दिन बाद NDTV द्वारा देखी गई हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीरों से संकेत मिलते हैं कि चीन ने तिब्बत के प्रमुख एयरबेसों पर बड़ी तादाद में ड्रोन और लड़ाकू विमान तैनात किए हैं, जिनकी रेंज में भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा है.

MAXAR से ये तस्वीरें उस वक्त मिली हैं, जब चीन की बढ़ी हुई हवाई गतिविधियों की वजह से अरुणाचल प्रदेश के आकाश में भारतीय वायुसेना (IAF) भी लगातार युद्धक हवाई गश्त कर रही है. पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय वायुसेना ने भी कम से कम दो मौकों पर अपने लड़ाकू विमानों को उड़ाया है, जब उन्होंने चीन के विमानों को अरुणाचल प्रदेश के आकाश में भारतीय सीमा का उल्लंघन करने के करीब देखा.

अरुणाचल प्रदेश की सीमा से 150 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित चीन के बांगदा एयरबेस से मिली तस्वीर में अत्याधुनिक डब्ल्यूज़ेड-7 'सोरिंग ड्रेगन' ड्रोन दिखाई देता है. वर्ष 2021 में पहली बार आधिकारिक रूप से जारी किए गए 'सोरिंग ड्रेगन', जो बिना रुके 10 घंटे तक उड़ सकता है, को जासूसी, निगरानी और सर्वेक्षण के कामों के लिए बनाया गया है, तथा यह डेटा को ट्रांसमिट भी कर सकता है, ताकि क्रूज़ मिसाइलें ज़मीनी लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम हो सकें.

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चीन के बांगदा एयरबेस से मिली तस्वीर में अत्याधुनिक डब्ल्यूज़ेड-7 'सोरिंग ड्रेगन' ड्रोन ऑपरेशन के लिए तैयार दिखता है (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

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भारत इस तरह के किसी ड्रोन को ऑपरेट नहीं करता है.

भारतीय सशस्त्र बलों के लिए नई पीढ़ी के ड्रोन विकसित करने की खातिर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स के साथ मिलकर काम कर रही कंपनी न्यूस्पेस (NewSpace) के समीर जोशी (IAF के पूर्व लड़ाकू पायलट) का कहना है, "उन्हें शामिल किया जाना, और उनका ऑपरेशनल इस्तेमाल संकेत देता है कि पूरी तरह सक्रिय व पूर्णतः काम कर रहा नेटवर्क स्थापित कर दिया गया है, ताकि पूर्वोत्तर भारतीय क्षेत्र में अक्साई चिन तथा मैकमहोन लाइन के आसपास जारी मिशनों को सपोर्ट किया जा सके..." दूसरे शब्दों में चीनी ड्रोन उस इन्टीग्रेटेड सिस्टम का हिस्सा हैं, जो रीयल-टाइम बेसिस पर वायुसेना को भारतीय ग्राउंड पोज़ीशनों पर सटीक तरीके से नज़र रखने में मदद करता है. इन पोज़ीशनों को फिर अन्य ड्रोनों या मिसाइलों व अन्य हथियारों से लैस लड़ाकू विमानों से निशाना बनाया जा सकता है.

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27 नवंबर को चीन ने केजे-500 अर्ली वॉर्निन्ग और कंट्रोल विमान के साथ-साथ शिगात्से हवाई अड्डे पर कम से कम 10 फ्लैन्कर-टाइप लड़ाकू विमान तैनात किए (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

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बांगदा एयरबेस की 14 दिसंबर की तस्वीर में दो फ्लैन्कर-टाइप लड़ाकू विमान भी फ्लाइट लाइन पर नज़र आते हैं. ये विमान भारतीय वायुसेना द्वारा उड़ाए जाने वाले रूस-निर्मित सुखोई एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों के चीन में बने वेरिएन्ट हैं.

सुखोई-30 के चीन में निर्मित वेरिएन्ट बांगदा एयरबेस पर, 14 दिसंबर को (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

तिब्बत क्षेत्र में बढ़ते चीनी सैन्य इन्सटॉलेशन पर बारीक नज़र रखने वाली फोर्स एनैलिसिस से जुड़े प्रमुख सैन्य विश्लेषक सिम टैक का कहना है, "अन्य हालिया रिपोर्टों के साथ-साथ उपग्रह की तस्वीरों में देखे गए प्लेटफॉर्म लंबे समय तक टिके रहने वाले प्लेटफॉर्म की एक विस्तृत शृंखला को ज़ाहिर करते हैं, जिनका उपयोग चीन द्वारा भारतीय गतिविधियों पर निगरानी करने, उन्हें थका डालने और उलझाने के लिए किया जा सकता है... इस क्षेत्र में चीन की हवाई युद्ध क्षमता में सुधार का निश्चित रूप से भारतीय वायुसेना पर बड़ा असर पड़ेगा और इस पर भी कि वह कैसे भविष्य के खतरे के लिए खुद को तैनात करता है..."

बांगदा से मिली तस्वीरें पिछले सप्ताह उसी वक्त की हैं, जब IAF भी अरुणाचल प्रदेश में अहम हवाई अभ्यास में जुटा था, और उनसे संकेत मिलता है कि चीन भारतीय युद्धक्षमताओं के प्रदर्शन पर निगरानी रख रहा है, IAF की रणनीतियों का आकलन कर रहा है, और भारतीय रडार और इलेक्ट्रॉनिक एमिशनों, कीमती डेटा की पहचान कर रहा है, जिन्हें वास्तव में युद्ध की स्थिति में IAF के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके.

चीन की सैन्य हवाई गतिविधियां उस वक्त बढ़ी हैं, जब अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से क्षेत्र (तवांग सेक्टर) में आमने-सामने हिंसक झड़पें हुई हैं, और 9 दिसंबर को भारतीय जवानों ने चीनी फौजियों के ऊंचाई पर मौजूद एक पोस्ट पर कब्ज़ा करने के मंसूबों को नाकाम कर दिया था. संसद में दिए बयान में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसे चीन की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर "यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश" करार दिया था, जिसे दूसरे शब्दों में भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश कहा जा सकता है. झड़प में दोनों तरफ के फौजियों को चोटें आई थीं, हालांकि घायलों की सही संख्या स्पष्ट नहीं है.

ल्हासा एयरपोर्ट पर रनवे का विस्तार, 24 नवंबर, 2022 को (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

2020 में भारत के साथ सीमा पर तनाव शुरू होने के बाद से चीन द्वारा अपने एयरबेसों और हवाई उपकरणों, जिनमें लड़ाकू विमान, ट्रांसपोर्ट विमान, ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सामग्री तथा टोही विमान शामिल हैं, का उन्नयन बेहद चौंकाने वाला रहा है. तभी से बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए रेललाइनें बिछाए जाने के साथ-साथ तिब्बत में ज़मीनी हवाई सुरक्षा, हेलीपोर्ट आदि का व्यापक विकास किया गया है.

भारतीय सीमा पर चीन के सैन्य और संबंधित बुनियादी ढांचे की तरक्की के दस्तावेज़ तैयार करने वाली इन्टेल लैब से जुड़े तस्वीरों के विश्लेषक डेमियन साइमन का कहना है, "पिछले कुछ सालों में हम भारत की सीमा पर चीन की हवाई ताकत का विस्तार ट्रैक कर रहे हैं... एयरबेसों का विस्तार और पुनरुद्धार होते देखा है, और नए एयरपोर्ट और हेलीपोर्ट भी बनते देखे हैं... यह विकास पिछले वर्षों में अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा है, नए सप्लाई रूट बनाए जा रहे हैं और तिब्बत और पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाई जा रही है..."

इस रिपोर्ट में मौजूद तस्वीरें तीन प्रमुख एयरबेसों - बांगदा (अरुणाचल सीमा से 150 किलोमीटर), ल्हासा (सीमा से 260 किलोमीटर) और शिगात्से (सिक्किम सीमा से 150 किलोमीटर) - के विकास को दर्शाती हैं. ल्हासा में, दूसरे रनवे के निर्माण सहित जारी विस्तार गतिविधियों के प्रमाण स्पष्ट हैं.

समीर जोशी कहते हैं, "संख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ लड़ाकू विमानों और एयरफील्ड की गुणवत्ता, और मानवरहित हवाई वाहनों (UAV) के एकीकरण की बदौलत चीनी वायुसेना उस फायदे को हासिल करने जा रही है, जो सालों तक भारतीय वायुसेना के पास रहा है..."

28 नवंबर, 2022 को ल्हासा एयरपोर्ट पर चार जे-10 विमान (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

भारत तेजपुर, मिसामारी, जोरहाट, हाशीमारा और बागडोगरा सहित असम और बंगाल के मैदानी इलाकों में प्रमुख एयरबेसों का संचालन करता है. दशकों तक, इन ठिकानों से काम करने वाले भारतीय लड़ाकू विमानों को चीनी लड़ाकू विमानों के मुकाबले फायदा था, क्योंकि वे मिसाइलों, बमों और ईंधन के साथ उड़ान भर सकते थे, जबकि चीनी जेट विमानों को तिब्बत की ऊंचाई के कारण टेक-ऑफ के दौरान गंभीर वज़न पाबंदियों से जूझना पड़ता था. ऐसा लगता था कि वास्तव में युद्ध होने की स्थिति में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों पर बेहतर हथियार मौजूद होंगे, और वे चीनी विमानों की तुलना में ज़्यादा देर तक उड़ान भर पाएंगे.

समीर जोशी के मुताबिक, अब यह फायदा तेज़ी से कम हो सकता है, क्योंकि चीन तिब्बत में अपनी संपूर्ण वायुरक्षा प्रणाली का उन्नयन कर रहा है. चीन का एन्गारी गुन्सा, शिगात्से, ल्हासा और बांगदा एयरबेसों पर "लड़ाकू विमानों और UAV (मानवरहित हवाई वाहन) का गहरा एकीकरण, तथा सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली से उसे जोड़ देने से PLAAF (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स) को इस इलाके में हो सकने वाले नुकसान को कम कर सकता है..." J-10C, J-11D और J-15 जैसे नई पीढ़ी के लड़ाकू जेट उन्नत चीनी एयरबेसों में लंबे रनवे के साथ मौजूद हैं और एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल (AWACS) विमान का साथ उन्हें मिलता हैं. इसका मतलब है कि तिब्बत से बाहर काम कर रहे चीनी लड़ाकू फॉर्मेशनों द्वारा भारतीय वायुसेना के जेट विमानों को रोकने की संभावना पहले की तुलना में अधिक है.

शिगात्से एयरपोर्ट की फ्लाइटलाइन पर UAV, 27 नवंबर, 2022 को (इनपुट : डेमियन साइमन की ओर से)... हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीर के लिए यहां क्लिक करें...

भारतीय वायुसेना, जिसे पिछले हफ्ते ही फ्रांस से अनुबंधित 36 राफेल लड़ाकू विमानों में से आखिरी भी हासिल हो गया है, बार-बार मिग-21 जैसे पुराने विमानों की वजह से अपनी गिरती स्क्वाड्रन ताकत के बारे में चेताती रही है. IAF के पास 42 स्क्वाड्रन (लगभग 18 विमान प्रति स्क्वाड्रन) की स्वीकृत शक्ति है, लेकिन मौजूदा समय में उसके पास सिर्फ 32 स्क्वाड्रन हैं, जो ज़रूरत से काफी कम हैं. विमानों की खरीद के लिए ऑर्डर किए जाने और उन्हें फोर्स में शामिल किए जाने की मौजूदा गति को देखते हुए इस बात की संभावना कम है कि भारत अगले एक दशक में भी अपनी ज़रूरतें पूरी करने के करीब पहुंच सकेगा.

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