जनरल मनोज पांडे भारत के पूर्व आर्मी चीफ रह चुके हैं. अपने लंबे और उपलब्धि भरे करियर में, पूर्व आर्मी चीफ ने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया, जिसमें पूर्वी कमान के कमांडर-इन-चीफ (2021-2022) और सेना के उप-प्रमुख (2022) शामिल हैं. पूर्व चीफ मनोज पांडे को सेना में ट्रांसफॉर्मेशन, मॉडर्नाइजेशन और टेक्नोलॉजी इनफ्यूजन के लिए जाना जाता है. उन्होंने फोर्स रिस्ट्रक्चरिंग और सेनाओं के बीच जॉइंटनेस व इंटीग्रेशन को बढ़ावा देने पर जोर दिया. पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे ने एनडीटीवी संग एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए ऑपरेशन सिंदूर, भारत की सैन्य तैयारियों और चीन से मिलती चुनौती जैसे प्रमुख मुद्दों पर क्या कुछ कहा जानिए-
आपने अपने कार्यकाल में सेना में बदलाव, ट्रांसफॉर्मेशन और मॉडर्नाइजेशन पर जोर दिया. आपकी सोच और अप्रोच क्या थी, और किन पहलुओं पर आपने ध्यान दिया?
पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे का जवाब: हमने दो साल पहले ट्रांसफॉर्मेशन की एक रूपरेखा तैयार की थी, क्योंकि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और युद्ध की प्रकृति में बदलाव, नई तकनीकों का प्रभाव और सामाजिक परिवर्तनों को देखते हुए यह जरूरी था. हमने पांच प्रमुख स्तंभों पर काम किया: पहला, फोर्स रिस्ट्रक्चरिंग और रिऑर्गेनाइजेशन; दूसरा, मॉडर्नाइजेशन और टेक्नोलॉजी इनफ्यूजन; तीसरा, ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में सुधार, जिसमें अग्निपथ स्कीम शामिल थी; चौथा, प्रोसेस, सिस्टम्स और फंक्शन्स को सक्षम बनाकर ऑपरेशनल एफिशिएंसी बढ़ाना; और पांचवां, तीनों सेनाओं के बीच जॉइंटनेस और इंटीग्रेशन को बढ़ावा देना. इनके तहत हमने अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित किए और अच्छी प्रोग्रेस की. हमारा उद्देश्य सेना को सशक्त, सक्षम और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में प्रभावी बनाना था.
1971 के बाद पहली बार तीनों सेनाओं ने मिलकर ऑपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. इसकी प्लानिंग और महत्व को आप कैसे देखते हैं?
पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे का जवाब: ऑपरेशन सिंदूर का बहुत महत्व है. सबसे पहले, इससे देश का स्ट्रैटेजिक आउटलुक बदला है. हमने आतंकवाद के खिलाफ नए मानदंड स्थापित किए और यह दिखाया कि हमारा रवैया और पोश्चर क्या होना चाहिए. पॉलिटिकल और नेशनल लीडरशिप के साथ सेनाओं के बीच सामंजस्य और स्पष्टता इस ऑपरेशन में साफ दिखी. यह एक कैलिब्रेटेड रिटेलिएशन था, जिसमें मजबूत राष्ट्रीय नेतृत्व की अहम भूमिका रही. हमने संयम के साथ शक्ति (रिस्ट्रेन विद स्ट्रेंथ) और सटीकता के साथ उद्देश्य (प्रसीजन विद पर्पस) को जोड़ा. ऑपरेशन सिंदूर पिछले 10 सालों में रक्षा क्षेत्र में किए गए कार्यों का एक निचोड़ है, और यह इसकी वैलिडेशन भी है.
पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को पनाह देता रहा है. पहले और अब की हमारी अप्रोच में आप क्या बदलाव देखते हैं?
पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे का जवाब: आतंकवाद के प्रति हमारा रवैया बहुत बदल गया है. ऑपरेशन सिंदूर में हमने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए एक कैलिब्रेटेड, जिम्मेदार और संतुलित रिस्पॉन्स दिया, ताकि स्थिति एस्केलेट न हो और हम अपने उद्देश्यों को हासिल कर सकें. यह एक अच्छा उदाहरण है, और मुझे लगता है कि आने वाले समय में विश्व भर के स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट इसका गहराई से अध्ययन करेंगे.
पिछले कुछ सालों में चीन और पाकिस्तान करीब आए हैं, क्या यह भारत के लिए सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती है?
पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे का जवाब: चीन और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता कई विशेषज्ञ एक गठजोड़ मानते हैं, जो स्वाभाविक है और हमें इसे स्वीकार करना होगा. इसे टू-फ्रंट वॉर की बजाय टू-फ्रंट चैलेंज कहना बेहतर होगा. भविष्य की प्लानिंग में हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि दोनों देश एक-दूसरे की मदद कैसे कर सकते हैं—चाहे वह हथियार, सपोर्ट, सस्टेनेंस या इंटेलिजेंस शेयरिंग के जरिए हो, हमें इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा.
LAC पर चीन लगातार निर्माण कर रहा है. भारतीय सेना की रणनीति और डिप्लॉयमेंट को आप कैसे देखते हैं?
पूर्व आर्मी चीफ मनोज पांडे का जवाब: गलवान के बाद से पूर्वी सीमा पर तनाव बना हुआ है, लेकिन अभी थोड़ी शांति है. मैं कहना चाहूंगा कि LAC पर तैनात हमारे जवान पूरी तरह से प्रेरित हैं और अपना काम बखूबी कर रहे हैं. किसी भी आपात स्थिति के लिए हम पूरी तरह सक्षम और तैयार हैं. साथ ही, सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर भी सही मात्रा में ध्यान दिया जा रहा है, हमारी तैयारी LAC पर बहुत अच्छी है.