विपरीत परिस्थितियों में भी सांसदों ने जनता के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वहन किया : ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे किए, इस मौके पर एनडीटीवी ने उनसे खास बातचीत की

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लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर लिए हैं.

नई दिल्ली:

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Om Birla) ने अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे किए हैं. इन तीन सालों में संसद (Parliament) में जहां कई बिल पारित हुए, कई नए कानून अस्तित्व में आए वहीं संसद के सामने कई चुनौतियां भी आईं. विपक्ष और सत्ता के बीच रस्साकशी के चलते संसद की कार्यवाही में गतिरोध भी बना रहा. इसके बावजूद संसद में काफी कामकाज हुआ. एनडीटीवी ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से  खास बातचीत की. स्पीकर ने कहा, तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों और चुनौतियों में भी हमारे जनप्रतिनिधियों ने जनता के प्रति एक गहरे उत्तरदायित्व बोध का निर्वहन किया. इसके लिए मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं. 

सवाल : आपके तीन साल के  कार्यकाल में दो साल कोरोना में बर्बाद हो गए और एक साल किसानों के मुद्दों पर जबर्दस्त हंगामा होता रहा. आप अपने तीन साल के कार्य-निष्पादन को कैसे देखते हैं? 

इस तीन साल के कार्यकाल में माननीय सदस्यों की देर रात्रि तक चर्चा, बहस,कानून बनाने में सक्रिय भागीदारी 106 प्रतिशत रही. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में जब पूरी दुनिया में वर्चुअल संसद चल रही थी उस समय हमारे देश में संसद का वास्तविक सत्र चल रहा था. इस दौरान सांसदों ने अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह किया और इस समय सांसदों की 167% प्रोडक्टिविटी रही.

सवाल : अपने तीन साल के कार्यकाल में आपने सांसदों को बोलने का भरपूर अवसर दिया, पर विधायी कामकाज के मामले में कितने सफल रहे? खासकर विपक्षी सांसदों का आरोप है कि कई विधेयक जल्दबाजी में पारित करवाए गए और अंतिम समय में विधेयक लाया गया. 

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इस तीन साल में प्रश्नकाल, बजट, संयुक्त अभिभाषण, अनुदानों की मांगों और अनेक विधाई कार्यों में सांसदों ने शिरकत की. आवंटित समय से अधिक अवधि तक संसद का चलना और उसमें सांसदों की सक्रिय भागीदारी ने जनता में एक सकारात्मक संदेश प्रेषित किया है. आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के 130 करोड़ लोगों की आशाओं-उम्मीदों को हम नई नीतियों, कार्यक्रमों के द्वारा खरा उतरने का गंभीर प्रयास करेंगे. हम कार्यशील लोकतंत्र और अपने रचनात्मक प्रयासों के माध्यम से पूरे देश को दुनिया की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने का प्रयास करेंगे. हमने 37 दिन में 35 विधेयक पारित करने का कार्य किया है और 14वीं लोक सभा से लेकर अभी तक 8 सत्र में सबसे अधिक विधेयक पारित किए हैं. हर्ष की बात यह है कि सदस्यों ने बेहद सक्रिय  भागीदारी निभाई. नागरिकता कानून पर 4 घंटे आवंटित थे और इस पर 7 घंटे चर्चा हुई. इस मुद्दे पर हर संसद सदस्य को बोलने का अवसर दिया गया. कृषि कानून पर भी चार घंटे आवंटित थे और हमने साढ़े पांच घंटे चर्चा कराई. हर विधेयक पर पर्याप्त चर्चा होनी चाहिए और इन 8 सत्रों में इसकी कभी उपेक्षा नहीं की गई. 

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सवाल : संसदीय समिति में बहुत सारे विषयों को भेजने की परंपरा है, अब वहां भी कम ही विषय भेजे जाते हैं जैसे जल्दबाजी में नागरिकता कानून पारित किया गया, लेकिन एक साल बाद अभी तक उसका पता नहीं? 

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संसदीय समिति में श्रम, वन और पर्यावरण मंत्रालय के कई कानून भेजे गए. सरकार का मानना है कि बहुत सारे कानून समय पर पारित होने चाहिए ताकि देश की जनता को अधिकार संपन्न बनाया जा सके. मुझे नहीं लगता कि सदन में किसी माननीय सदस्य और दल के नेता ने यह कहा हो कि मुझे बोलने का पर्याप्त समय नहीं मिला. किसी मुद्दे पर सरकार और प्रतिपक्ष की सहमति बनने पर भी चर्चा होती है. संसदीय समितियां संसद की कार्यप्रणाली का एक हिस्सा हैं जिसमें सभी दलों के सदस्य होते हैं और संसदीय कार्य मंत्री की अहम भूमिका होती है. मेरी कोशिश यह रहती है कि हर ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा हो. जैसे अभी हाल में यूक्रेन और पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा, जिस पर 9 घंटे की चर्चा हुई. कोविड-19 के दौरान 12 घंटे चर्चा हुई. 

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सवाल : आप सांसदों की आवाज तो बुलंद करते रहे हैं लेकिन उनके अधिकारों की कितनी रक्षा कर पा रहे हैं? सांसदों की विशेषाधिकार के हनन की शिकायतें मिल रही हैं. पहले नवनीत राणा और फिर दिल्ली में कांग्रेसी सांसदों की ओर से.

संसद और सांसदों का विशेषाधिकार संसद के कामकाज के लिए है. सांसदों को कार्य करने में कोई दिक्कत न हो, किसी तरह का गतिरोध न पैदा हो, इसके लिए सांसदों को विशेषाधिकार मिले हुए हैं. सांसदों के विशेषाधिकार की रक्षा के लिए विशेषाधिकार समिति बनी हुई है. विशेषाधिकार हनन के किसी मामले के सामने आने पर समिति छानबीन और जांच करती है और रिपोर्ट प्रस्तुत करती है. विधि व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का विषय है और संसद के किसी काम में रुकावट या अड़चन डालने पर विशेषाधिकार का मामला बनता है. यदि इस तरह के मामले हमारी जानकारी में आते हैं तो विशेषाधिकार समिति इसकी जांच करती है. संसदीय कार्य के अलावा कोई भी कार्य हमारे क्षेत्राधिकार में नहीं आता है.

सवाल : क्या संसद का शीतकालीन सत्र नए भवन में होगा? सुना है बहुत हाईटेक है. इस भवन की क्या-क्या विशेषताएं हैं? 

माननीय प्रधानमंत्री ने संसद भवन के नए संसद भवन की आधारशिला जब रखी थी तो 2 वर्षों का समय इसे पूरा करने में निर्धारित किया गया था. नए संसद भवन का निर्माण कार्य बहुत तेजी से चल रहा है और अगर इसी तरह से कार्य चलता रहा तो उम्मीद है कि शीतकालीन सत्र-नवंबर दिसंबर में नए संसद भवन में होगा.

नया संसद भवन हमारी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है. नई टेक्नोलॉजी के साथ यह भवन ग्रीन बिल्डिंग होगा जिसमें पानी और ऊर्जा का संरक्षण होगा तथा सांसदों तथा सचिवालय को कार्य करने में बेहद सुविधा होगी. इससे संसद सदस्यों की कार्यकुशलता बढ़ेगी, एफिशिएंसी बढ़ेगी. उसी तरीके से हमारे संसद के सचिवालय की भी कैपेसिटी बढ़ेगी. डिजिटल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग होगा और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग के कारण माननीय संसद सदस्यों को यह नया संसद भवन निश्चित रूप से उपयोगी होगा. मुझे लगता है कि आने वाले 100 वर्षों की आवश्यकताओं की पूर्ति को ध्यान रखते हुए इस संसद भवन का निर्माण हुआ है. निश्चित रूप से पूरी दुनिया के लिए भारत की संसद एक विशाल लेकिन जीवंत कार्यशील संसद होगी जो देश की 130 करोड़ जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेगी. 

उन्होंने कहा कि हमारे यहां पर एक सभापति पैनल की व्यवस्था होती है और सभापति पैनल के अंदर हमारे कई वरिष्ठ सदस्य हैं जो सभी दलों के सदस्य हैं और ठीक से संसद का, सभा का संचालन करते हैं. सभी माननीय का सभापति पैनल का मुझे पूर्ण सहयोग मिलता है और हम एक छोटे कार्यकर्ता के रूप में आए, इसलिए हमें कोई काम का बोझ नहीं होता. काम हमारे जीवन का हिस्सा है और यह हमारी जिम्मेदारी है तो हम इस जिम्मेदारी को और बेहतर कैसे निभा सकते हैं इसके लिए जितना भी देश की जनता का, आप सब लोगों का जो फीडबैक आता है उसके आधार पर संसद की कार्यकुशलता को और बेहतर बनाने का काम करने की प्रणाली की व्यवस्था है. व्यवस्था जो जिम्मेदारी नेताओं ने बनाई है उसको ठीक ही बनाया है.

कोशिश रहती है कि जो मुझे दायित्व मिला है उससे और बेहतरीन काम करूं. देश की जनता की अपेक्षा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संसद में और क्या परिवर्तन कर सकते हैं, हमारी कोशिश रहती है और माननीय संसद सदस्यों का भी उसी तरीके का सहयोग रहता है तो यह जिम्मेदारी निभा रहा हूं. अभी मेरे को जो जिम्मेदारी मिली है उस जिम्मेदारी को भी निभा रहा हूं. मैं सोचता हूं कि इसमें और काम करने की आवश्यकता है. जो निर्णय होता है वह देश के हित में होता है और यह बड़े संवैधानिक पद का दायित्व है और यहां राष्ट्रपति जी  संसद के दोनों सदनों के संरक्षक भी होते हैं. इस नाते मुझे लगता है कि एक अच्छा निर्णय होगा और देश हित में होगा.