17 सितंबर को भारत में चीता लाने की तैयारी पूरी हो चुकी है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीता छोड़ने के समय मौजूद रहेंगे. नामीबिया की राजधानी विंडहोक से 16 सितंबर को एक चार्टर्ड हवाई जहाज से आठ चीतों को भारत लाया जा रहा है. इनमें तीन नर चीते और पांच मादा चीते हैं. ये अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक बने क्रेट में लाए जाएंगे और सीधा जयपुर पहुंचेंगे. इसमें करीब 11 घंटे का वक्त लगेगा. फिर जयपुर से चार्टर्ड हेलीकॉप्टर के जरिए इन्हें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क ले जाया जाएगा. जहां पर नया हेलीपैड भी तैयार है. यहां ये 17 तारीख को ही पहुंचेंगे.
इस पूरे प्रोजेक्ट की देखरेख कर रहे अधिकारियों का कहना है कि इस लंबी यात्रा के दौरान इन्हें बेहोश नहीं किया जाएगा और बीच में खिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि एक बार भर पेट खाने के बाद चीते दो से तीन दिन बाद ही खाते हैं. कूनो पहुंचने के बाद तीन चरणों में इन्हें यहां रखा जाएगा.
पहले चरण में इन्हें 30 दिनों तक एक-एक बाड़े में रखा जाएगा. उन पर करीब से नज़र रखी जाएगी, ताकि किसी बीमारी या वायरस वगैरह जो बाकी इको सिस्टम पर असर है उनसे वो ग्रसित ना हों. 30 दिनों तक उनके स्वास्थ्य पर नज़र रखने के बाद उससे बड़े इलाके में उन्हें छोड़ा जाएगा और उसके बाद पूरे पार्क में वो स्वछंद घूम सकेंगे. पहले नर चीता बड़े बाड़े में छोड़े जाएंगे और फिर मादा. लेकिन इकोलॉजिकल बैलेंस बनाए रखने के लिए कम से कम 25-30 चीता यहां होने चाहिए. इसलिए पांच साल में और चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से यहां लाए जाएंगे.
माना जा रहा है कि चीते यहां पर सही तरीके से बस गए तो प्रजनन के जरिए धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ेगी. इस पूरे प्रोजेक्ट पर 91 करोड़ रूपये का खर्च है. कूनो के मौजूदा हालात में यहां पर 21 चीतों के लिए जगह है, लेकिन बाकी पार्क में उनके खाने के लिए प्रजातियों के लाने के बाद 36 चीते यहां पर रह सकते हैं. इस वक्त जो चीते यहां लाए जा रहे हैं उनके लिए यहां पर काफी संख्या में शिकार जैसे चीतल, सांभर वगैरह मौजूद हैं.
कई जानकारों ने अफ्रीका से चीता भारत में लाने पर सवाल खड़े किए हैं. कहा है कि वो यहां ज़िंदा नहीं रह पाएंगे, क्योंकि यहां के जंगल उनके लिए अनुकूल नहीं हैं. आरोप ये भी है कि दूसरे प्रोजेक्ट की अनदेखी कर इस प्रोजेक्ट पर पैसे लगाए जा रहे हैं. इस पर पत्रकारों से बात करते हुए वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि चीता शुरू से भारत में थे और उस विरासत को वापस ला रहे हैं. साथ ही चीता के आने से बाकी इकोसिस्टम को सहेजने में मदद मिलेगी.
अधिकारियों के मुताबिक भारत में बेहद ज्यादा शिकार और पालतू के तौर पर रखने और उनके शिकार कम होने के कारण चीते विलुप्त हो गए. आखिरी बार चीते 1947 में छत्तीसगढ में कोरिया के जंगल में देखे गए थे, जिनका शिकार हुआ. ये अवधारणा है कि चीते सिर्फ ग्रासलैंड में ही रह सकते हैं. कई तरह के लैंडस्केप में वो रहते हैं और भारत का एक बहुत बड़ा इलाका ऐसा था, जहां वो रहते थे.
भूपेंद्र यादव ने ये भी कहा कि इस प्रोजेक्ट को महज 91 करोड़ में किया जा रहा है और किसी भी प्रोजेक्ट की अनदेखी नहीं हुई है. इस पूरे प्रोजेक्ट में इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों का भी योगदान है.
इस सवाल पर कि इरान से एशियटिक चीते क्यों नहीं लाए गए, बताया गया वहां अब महज 13 से 15 चीते बचे हैं, वो भी जंगल में नहीं. ऐसे में ये संभव नहीं था. दूसरी तरफ अफ्रीका के जंगल से चीते लाए जा रहे हैं और वो अफ्रीकी चीता से बहुत अलग नहीं हैं. अफ्रीका से आकर जिन जानकारों ने यहां कूनो का जायजा लिया, उनके मुताबिक यहां शानदार इंतजाम हैं.
एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या चीते लाने से मैन-ऐनिमल कॉनफ्लिक्ट होगा. अधिकारियों ने जानकारी दी कि चीता के कारण ऐसा होने की आशंका बेहद कम है. अगर कभी पालतू मवेशी को चीता मारता है, तो उसके लिए मुआवजा दिया जाएगा. जहां तक कूनो के आसपास के गांवों की बात है, तो 24 गांव दूसरी जगहों पर बसाए जा चुके हैं. आसपास के लोगों को इस प्रोजेक्ट से इको टूरिज़्म बढ़ने और जीविका की बेहतर उम्मीद है.