प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में दिल्ली के एक ज़मीन सौदे में बड़ी धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है. ईडी ने पाया है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जावद अहमद सिद्दीकी से जुड़े तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन ने फर्जी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करके करोड़ों रुपये की ज़मीन हासिल की. ईडी के मुताबिक, इस पूरे मामले में सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा यह है कि ज़मीन बेचने के लिए जो दस्तावेज़ इस्तेमाल किए गए, उनमें से कई पर उन लोगों के दस्तखत या अंगूठे लगाए गए, जिनकी मौत दशकों पहले हो चुकी थी.
'मरे हुए लोग' बने जमीन के विक्रेता
जांच एजेंसी ने पाया कि दिल्ली के मदनपुर खदर इलाके की खसरा नंबर 792 वाली ज़मीन को बेचने के लिए एक जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) का इस्तेमाल किया गया, जो पूरी तरह फर्जी थी. जांच में सामने आया कि इस GPA में जिन व्यक्तियों के दस्तखत दिखाए गए, उनमें से कई लोगों की मौत 1972 से 1998 के बीच हो चुकी थी.
फर्जी GPA से 'सेल डीड' तैयार
फर्जी GPA को विनोद कुमार के नाम पर बनाया गया. इसी फर्जी दस्तावेज़ के आधार पर विनोद कुमार ने ज़मीन को आगे बेच दिया, जिसमें मृतक व्यक्तियों की हिस्सेदारी को भी 'सह-मालिक' बताकर बेचा गया. फर्जी GPA के नौ साल बाद, 27 जून 2013 को एक रजिस्टर्ड सेल डीड (Sale Deed) तैयार की गई. दस्तावेजों में जमीन की कीमत 75 लाख रुपए दिखाई गई. जमीन खरीदने वाला कोई और नहीं, बल्कि तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन था. ED के अनुसार, इस पूरे फर्जीवाड़े का अंतिम लाभार्थी यही फाउंडेशन था, जिसने फर्जी GPA और जाली हस्ताक्षरों की मदद से जमीन अपने नाम दर्ज करा ली.
पूरा सौदा गैरकानूनी
ED ने साफ किया है कि मृत व्यक्ति के नाम पर बनाई गई GPA कानूनी रूप से अमान्य होती है, और ऐसे अमान्य दस्तावेज़ों पर आधारित सेल डीड भी गैरकानूनी मानी जाती है. यानी, यह पूरा लेनदेन शुरू से अंत तक धोखाधड़ी और जालसाजी पर आधारित था. ईडी अब इस मामले में फर्जी दस्तावेज बनाने वालों, GPA तैयार करने वाले दलालों, और इस सौदे का फायदा उठाने वाले तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी के तहत कड़ी कार्रवाई कर रही है.














