नवरात्रि की शुरुआत इस बार बेहद शुभ मानी जा रही है क्योंकि इस दिन शुक्ल और ब्रह्म योग जैसे सकारात्मक संयोग बन रहे हैं. इन योगों में पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. कलश स्थापना के बाद से ही मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का क्रम शुरू होता है. हर दिन अलग-अलग रूपों का पूजन किया जाता है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना होती है. पूजा के साथ-साथ ये समय शॉपिंग और बिजनेस के लिहाज से भी बेहद अहम होता है. यही कारण है कि छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल और यहां तक डिजिटल मार्केट भी कई तरह के लुभावने ऑफर देते हैं. 23 सितंबर से शुरू होने वाली Flipkart Big Billion Days और Amazon Great Indian Festival इसका उदाहरण हैं. दोनों कंपनियां शॉपिंग करने का एक बेहतरीन मौका दे रही हैं. Myntra तो इन दोनों से आगे निकलते ही पहले ही ऑफर ले आया. Myntra Big Fashion Festival 20 सितंबर से ही शुरू हो गया.
नवरात्रि के 9 दिन, 9 शक्तियां क्या, जानिए
- पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है और ये आत्मबल के साथ ही स्थिरता का प्रतीक हैं. घोड़े पर सवार पर्वतराज हिमालय की पुत्री के हाथ में त्रिशूल और कमल विद्यमान है. प्रतिपदा यानी नवरात्र का पहला दिन और किसी भी यात्रा की शुरुआत आत्मबल यानी खुद पर विश्वास के साथ होती है. नौ दिन का ये पर्व भी तो यात्रा ही है.
- दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का है, जो संयम और साधना की शक्ति मानी जाती हैं. हाथ में जप माला और कमंडल, तपस्विनी स्वरूप मां की आराधना का सहज संदेश धैर्य और अनुशासन है, ऐसे गुण जिनसे जीवन में धीरज का संचार होता है.
- तीसरा दिन भय हारिणी योद्धा मां चंद्रघंटा का है, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र है और जो दस भुजाओं से संपन्न हैं. शक्ति, साहस, सुरक्षा और आत्मरक्षा है. संदेश सिर्फ एक है कि जीवन डर से नहीं हिम्मत से जिया जाता है.
- चौथा दिन, सृजन की देवी के नाम से विख्यात मां कूष्मांडा का है. 'कू' का मतलब होता है छोटा, 'ऊष्मा' का मतलब है ऊर्जा, और “अंडा” का मतलब है ब्रह्मांड. यह वह अवतार है जिसमें मां ने इस दुनिया को रचा है. ये स्वरूप एक नए जीवन की रचना करने वाला है. मां कूष्मांडा के हाथों में एक मटका है, जिसे सृजन का प्रतीक माना जाता है. मटके को अक्सर गर्भ के रूप में देखा जाता है, जिसमें एक नया जीवन पलता है. इस अवतार से हमें सबक मिलता है कि जीवन में नए सृजन के लिए हमें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाना चाहिए.
- पांचवां दिन मां स्कंदमाता का है. भगवान कार्तिकेय की माता, गोद में बाल रूप स्कंद लिए हुए देवी मातृत्व और करुणा का प्रतीक हैं. इनकी आराधना से सिर्फ एक संदेश मिलता है कि प्यार, ममता और सेवा किसी भी मनुष्य की बड़ी शक्तियां हैं.
- छठा दिन न्याय की देवी मां कात्यायनी को समर्पित है. सिंह पर सवार, चार भुजा और युद्ध मुद्रा इस अवतार की पहचान है. साहस,न्याय और शक्ति का प्रतीक मां अन्याय के खिलाफ बेखौफ डटे रहने की सीख देती हैं.
- सातवां दिवस मां कालरात्रि का है. जो अंधकार में प्रकाशोन्मुख होने के लिए प्रेरित करती हैं. खुले बाल, अंधेरे के समान काले रंग और विकराल मुखी काली शुभकारी हैं. मां अज्ञान, डर और बुराई का विनाश करने वाली मानी जाती हैं.
- आठवां दिन, मां महागौरी शांति और सौंदर्य की मूरत हैं. अत्यंत दौर वर्ण, सफेद वस्त्र और बैल पर सवार हैं. ये शुद्धता, करुणा और आत्मशांति की प्रतीक हैं.
- नौवां दिवस मां सिद्धिदात्री को समर्पित है, जिनकी चार भुजाएं हैं. कमल पर विराजमान रहने वाली देवी सभी सिद्धियों की दात्री हैं. संदेश देती हैं कि जब समर्पण पूर्ण हो तो सफलता अपने आप आती है.
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गुजरात में गरबा की खास तैयारी
नवरात्रि के पावन अवसर पर गुजरात के सूरत में गरबा पंडालों में इस बार खास तैयारी देखने को मिल रही है. पंडालों में इस बार 'ऑपरेशन सिंदूर' की धुन पर लोग गरबा कर रहे हैं. इसके लिए हर पंडाल में तैयारी पूरी हो गई है. सूरत में नवरात्रि के दौरान दुर्गा प्रतिमा स्थापित करने के लिए पूजा समितियों ने आकर्षक पंडाल तैयार किए हैं. इस वर्ष 'ऑपरेशन सिंदूर' से प्रेरित होकर मां दुर्गा के पंडाल को तैयार किया गया है. पंडाल में राफेल फाइटर जेट, रॉकेट लॉन्चर जैसी आकृतियों को दर्शाया गया है. क्षेत्र में इस पंडाल की चर्चा हो रही है. इसी के साथ यहां पर श्रद्धालु गरबा कर रहे हैं. पूजा समितियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' और भारतीय सेना की वीरता को हृदय से सराहा है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो कर दिया, वो आज तक नहीं हुआ था, आतंकवादियों को उन्हीं के घर में घुसकर मारा जा रहा है.
वाराणसी के प्रसिद्ध शैलपुत्री मंदिर में सुबह से भीड़
वाराणसी के प्रसिद्ध शैलपुत्री मंदिर में सुबह से ही भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. हजारों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचे और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना की. यह मंदिर मां दुर्गा के प्राचीन स्थानों में से एक है. मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को विशेष पुण्य मिलता है. मंदिर के पुजारी गिरीश तिवारी ने बताया कि आज मां का विशेष श्रृंगार किया गया है. सुबह नहलाने-धुलाने के बाद आरती हुई, जो लगभग डेढ़ घंटे चली. इस दौरान भारी भीड़ रही। उसके बाद थोड़ी शांति हुई. रातभर दर्शन का सिलसिला जारी रहने की उम्मीद है. मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और भगवान शिव की पत्नी के रूप में जानी जाती हैं. उनका नाम 'शैल' यानी पर्वत से जुड़ा है. नवरात्रि में मां के पहले स्वरूप के रूप में उनकी पूजा से भक्तों को शांति और शक्ति मिलती है. माता जी हाथी पर आई हैं, और उस पर ही जाएंगी, और वैसे भी हाथी तो शुभ माना गया है, और माता आई हैं, तो भक्तों पर अपनी कृपा तो बरसाएंगी.
श्री जीवदानी देवी मंदिर में भारी भीड़
महाराष्ट्र के विरार स्थित प्रसिद्ध श्री जीवदानी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है. सुबह से ही भक्तगणों की माता के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में लंबी-लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं. राज्य के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, मुंबई, ठाणे, पालघर और कोंकण क्षेत्र से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर पहुंच रहे हैं. मंदिर प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने दर्शन व्यवस्था को सुव्यवस्थित और सुचारू बनाए रखने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है. महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
झंडेवालान मंदिर में श्रद्धालुओं का लगा तांता, जयकारों से गूंज उठा दरबार
देश की राजधानी दिल्ली के प्रसिद्ध झंडेवालान देवी मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. तड़के 5 बजे से ही मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं. पूरा मंदिर प्रांगण 'जय माता दी' के जयकारों से गूंज उठा और वातावरण भक्तिमय हो गया. मंदिर प्रशासन और सेवादारों ने श्रद्धालुओं के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। सेवादार लगातार व्यवस्था में जुटे हैं, ताकि किसी भी भक्त को कोई असुविधा न हो. दिल्ली के अधिकांश मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का रेला देखने को मिल रहा है.
हिमाचल के नैना देवी में उमड़े भक्त
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की ऊंची पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत बड़े धूमधाम और आस्था के माहौल के बीच हुई. सोमवार सुबह मां की आरती और मंत्रोच्चार के साथ नवरात्रि का शुभारंभ हुआ। नवरात्रि के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की जा रही है. इस अवसर पर सुबह से ही माता के दरबार में श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया. पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों से भक्त मां के दरबार में पहुंचकर पूजा-पाठ कर रहे हैं.
नागपुर : प्राचीन कोराडी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता
नागपुर के करीब समूचे विदर्भ तथा मध्य भारत का प्राचीन देवी मंदिर कोराडी स्थित माता महालक्ष्मी जगदंबा मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से लोग पहुंचने लगे हैं.
बिहार में अजब परंपरा
बिहार के नवादा जिले के वारिसलीगंज प्रखंड के गांवों में दुर्गा पूजा को लेकर अनोखी परंपराएं हैं. ग्रामीणों की आस्था है कि माता उनकी हर मुराद पूरी करती हैं. यही कारण है कि यहां पर दुर्गा पूजा की जिम्मेदारी हर साल अलग-अलग लोग निभाते हैं और बाकायदा इसके लिए बुकिंग होती है. यहां पर लोग दुर्गा पूजा के दौरान प्रतिमा स्थापना के लिए दशकों तक इंतजार करना पड़ता है. यहां के माफी गांव में जहां 2067 तक और रेवार गांव में 2046 तक श्रद्वालुओं के नामों की बुकिंग हो चुकी है.
किस वाहन पर इस बार आईं मां दुर्गा
हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की सवारी वैसे तो मुख्य रूप से शेर की मानी जाती है लेकिन नवरात्रि में उनका आगमन अलग-अलग वाहन पर होता है. जैसे इस साल देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही है, जिसे हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि माता के हाथी पर आने से विश्व का कल्याण होगा और सुख-समृद्धि फैलेगी. अन्न-धन में वृद्धि होगी. इसी प्रकार इस साल मां दुर्गा पालकी पर सवार होकर अपने लोक को प्रस्थान करेंगी. इसे भी हिंदू धर्म में शुभ संकेत माना गया है. मान्यता है कि पालकी से प्रस्थान करने पर मंगलदायक कार्य संपन्न होते हैं और हर जगह सुख-शांति बनी रहती है.
किस-किस वाहन पर आती हैं मां दुर्गा
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता का वाहन हमेशा सप्ताह के वार से तय होता है. कहने का तात्पर्य यह कि यदि नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से होती है तो माता का वाहन गज या फिर कहें हाथी होता है, जो कि शुभता का संकेत होता है. इसी प्रकार यदि देवी का यह महापर्व मंगलवार या शनिवार के दिन प्रारंभ होता है तो माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं जिसे सनातन परंपरा में शुभ नहीं माना जाता है. वहीं जब नवरात्रि का पर्व बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार के दिन शुरू होता है तो माता डोली पर सवार होकर आती हैं. इसका संकेत भी शुभ नहीं माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार यह अशांति और रोग आदि का संकेत होता है.
मां दुर्गा के प्रस्थान वाहन का संकेत
हिंदू मान्यता के अनुसार यदि माता बृहस्पतिवार को विदा हों या फिर कहें उनका विसर्जन इस दिन हो तो माता पालकी पर सवार होकर जाती हैं, जिसे शुभ माना जाता है.लेकिन रविवार और सोमवार के दिन माता भैंसा पर सवार होकर जाती है, जो अशुभ संकते होता है. मंगलवार और शनिवार के दिन माता घोड़े पर सवार होकर जाती हैं तो उसे आपदा आदि का संकेत माना जाता है. इसी प्रकार बुधवार और शुक्रवार के दिन माता हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं, जिसे बेहद शुभ संकेत माना जाता है.
भारत ही नहीं विदेशों में भी विराजती हैं मां दुर्गा, जानिए कहां है कौन सा शक्ति पीठ
माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं, जो हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भारत के बाहर यानी विदेशों में भी देवी के कई शक्तिपीठ हैं, जिनमें बांग्लादेश में 7, नेपाल में 2, पाकिस्तान में 1, श्रीलंका में 1 और तिब्बत में 1 शक्तिपीठ शामिल हैं.
- मनसा शक्ति पीठ, तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील के किनारे स्थित है. यहां माता सती का दाहिना हाथ गिरा था और इसे दाक्षायनी रूप में पूजा जाता है. यह स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है और यहां श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं.
- कोट्टरी शक्तिपीठ, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंगलाज नदी के तट पर स्थित है. यहां माता सती का ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा था. इस स्थान पर माता को कोट्टरी नाम से पूजा जाता है और यह स्थल पाकिस्तानी हिंदू समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र है.
- नेपाल में दो शक्तिपीठ स्थित हैं. गण्डकी चंडी शक्तिपीठ पोखरा में गण्डकी नदी के किनारे मुक्तिनाथ मंदिर के पास है. माना जाता है कि यहां माता सती का मस्तक गिरा था और माता को गंडकी चंडी के रूप में पूजा जाता है. वहीं, काठमांडू के पास महाशिरा या गुह्येश्वरी शक्तिपीठ में माता के दोनों घुटने गिरे थे. इसे महाशिरा स्वरूप में श्रद्धालु पूजते हैं.
- श्रीलंका में इंद्राक्षी शक्तिपीठ जाफना के नैनातिवु द्वीप पर स्थित है, जहां माता सती की पायल गिरी थी. इस स्थान पर माता को इंद्राक्षी के रूप में पूजा जाता है और यह हिंदू श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थल है.
- बांग्लादेश में सात शक्तिपीठ प्रसिद्ध हैं. मां भवानी शक्तिपीठ, बांग्लादेश के ही चिट्टागौंग जिले में चंद्रनाथ पर्वत के शिखर पर मां की दायीं भुजा गिरी थी, यहां मां सती को भवानी नाम से जाना जाता है.
- सुनंदा शक्तिपीठ, मान्यताओं के अनुसार, बांग्लादेश के बरिसल के शिकारपुर में माता सती की नाक गिरी थी. यहां पर माता का सुनंदा रूप विराजमान है.
- श्रीशैल महालक्ष्मी शक्तिपीठ, बांग्लादेश के सिलहट जिले में ही एक और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जहां माता सती का गला गिरा था. इस स्थान पर माता को महालक्ष्मी स्वरूप में पूजा जाता है और यहां हर समय भक्तों की भीड़ रहती है.
- यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिले के यशोर क्षेत्र में स्थित है. धार्मिक मान्यता है कि यहीं माता सती की बाईं हथेली गिरी थी. यह स्थान भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और श्रद्धा का केंद्र माना जाता है.
- अर्पण शक्तिपीठ या अपर्णा शक्तिपीठ बांग्लादेश के ही भवानीपुर गांव में है, यहां माता सती की बाएं पैर की पायल गिरी थी. जहां उनके अर्पण रूप की पूजा की जाती है.
- देवी जयंती शक्तिपीठ बांग्लादेश के जयंतिया परगना में है. यहां मां सती की बाईं जांघ गिरी थी और यहां पर देवी जयंती नाम से विराजमान हैं.
- माता सती का मुकुट बांग्लादेश के मुर्शिदाबाद जिले के किरीटकोण ग्राम में गिरा था, जिसके कारण इस स्थान को किरीटेश्वरी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. यहां माता के विमला स्वरूप की पूजा की जाती है.
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
आज घटस्थापना का शुभ समय सुबह 06:09 बजे से 08:06 बजे तक था. इसके अलावा, अगर कोई इस समय पूजा न कर सका है, तो अभिजीत मुहूर्त में यानी 11:49 से 12:38 तक भी घटस्थापना की जा सकती है.
आज माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर पहुंचेंगे पीएम मोदी
त्रिपुरा में 524 साल पुराने शक्तिपीठ माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर परिसर का पुनर्विकास हो गया है. सोमवार को नवरात्रि के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माताबाड़ी में माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर परिसर के विकास कार्य का उद्घाटन करेंगे. यह मंदिर हिंदुओं द्वारा पूजे जाने वाले 51 शक्तिपीठों में से एक है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री सोमवार दोपहर अरुणाचल प्रदेश से अगरतला पहुंचेंगे और फिर 65 किलोमीटर दक्षिण में बने इस पुनर्विकसित मंदिर का उद्घाटन करने के लिए उदयपुर के माताबाड़ी जाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी मंदिर में पूजा-अर्चना भी करेंगे. पर्यटन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की प्रसाद (तीर्थयात्रा पुनरुद्धार एवं आध्यात्मिक विरासत संवर्धन अभियान) योजना के तहत 52 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का पुनर्विकास किया गया है.
त्रिपुरा सरकार ने भी इस परियोजना में 7 करोड़ रुपए का योगदान दिया है. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर गोमती जिले के मुख्यालय उदयपुर में स्थित है. यह मंदिर राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 में इस मंदिर का निर्माण कराया था. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, कोलकाता के कालीघाट स्थित काली मंदिर और गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर के बाद पूर्वी भारत में तीसरा ऐसा मंदिर है. हर साल दीपावली का पर्व मनाने के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं. 15 अक्टूबर, 1949 को महारानी कंचन प्रभा देवी और भारतीय गवर्नर जनरल के बीच एक विलय समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद त्रिपुरा की पूर्ववर्ती रियासत भारत सरकार के नियंत्रण में आ गई.
बस्तर दशहरा: 700 साल पुरानी परंपरा
पर्व की शुरुआत काछन गादी की विशेष रस्म के साथ हुई, जो करीब 700 साल से चली आ रही है. यह परंपरा आज भी पूरे आस्था और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है. इस रस्म में अनुसूचित जाति के एक विशेष परिवार की नाबालिग कुंवारी कन्या कांटों से बने झूले पर लेटकर बस्तर राजपरिवार को दशहरा शुरू करने की अनुमति देती है. मान्यता है कि इस कन्या के भीतर स्वयं काछनदेवी प्रवेश कर महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने का आशीर्वाद देती हैं. इस वर्ष 10 साल की पीहू ने काछनदेवी का रूप धारण कर पर्व शुरू करने की अनुमति दी. बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि हर साल नवरात्रि से एक दिन पहले पितृमोक्ष अमावस्या को काछन गादी रस्म निभाकर राजपरिवार दशहरा मनाने की अनुमति प्राप्त करता है. इस दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों लोग इस परंपरा का साक्षी बनने काछन गुड़ी पहुंचते हैं. उन्होंने कहा कि बस्तर दशहरा अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के लिए विश्व में प्रसिद्ध है. यह पर्व 75 दिनों तक चलता है और इसमें 12 से अधिक रस्में निभाई जाती हैं, जो अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए जानी जाती हैं.
बस्तर दशहरा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है. इस पर्व में शामिल होने के लिए न केवल देश, बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में सैलानी जगदलपुर पहुंचते हैं. काछन गादी के बाद आने वाली रस्मों में मां दंतेश्वरी की पूजा, रथ यात्रा, मुरिया दरबार और जोगी बिठाई जैसी परंपराएं शामिल हैं, जो बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं. ये रस्में स्थानीय आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. बस्तर दशहरा का आकर्षण इसकी अनूठी परंपराओं और सामुदायिक सहभागिता में निहित है. यह पर्व न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक पहचान को विश्व पटल पर उजागर करता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह महापर्व क्षेत्र में सुख, समृद्धि और शांति लाता है. इस वर्ष भी बस्तर दशहरा अपनी भव्यता और परंपराओं के साथ पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है.
गुजरात सरकार का नवरात्रि तोहफा
गुजरात में नवरात्रि और दीपावली के पर्वों को लेकर राज्य सरकार ने व्यापक तैयारियां शुरू कर दी हैं. इन त्योहारों के दौरान यात्रियों की सुविधा के लिए गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम (जीएसआरटीसी) ने 1600 अतिरिक्त बसों की व्यवस्था की है. यह पहल प्रदेश के विभिन्न शहरों में यात्रा करने वाले लोगों के लिए आवागमन को सुगम बनाने के उद्देश्य से की गई है. गुजरात के गृह एवं परिवहन मंत्री हर्ष संघवी ने बताया कि इस बार नवरात्रि और दीपावली के दौरान यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विशेष इंतजाम किए गए हैं. उन्होंने कहा, "यह पहली बार है जब जीएसआरटीसी ने ग्रुप बुकिंग की सुविधा शुरू की है, जिसमें सरकारी बसें यात्रियों को उनके घर से पिकअप करेंगी और गंतव्य पर ड्रॉप करेंगी." यह सुविधा यात्रियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगी, जो त्योहारों के दौरान अपने परिवार और दोस्तों के साथ यात्रा करना चाहते हैं.