- भोपाल के जगदीशपुरा इलाके में छापे में करोड़ों की मेफेड्रोन ड्रग्स और 541 किलो केमिकल्स बरामद हुए थे.
- दाऊद इब्राहिम के गुर्गे अब मध्यप्रदेश में मेफेड्रोन ड्रग्स का नेटवर्क चला रहे हैं और तुर्की से जुड़े हैं.
- तुर्की में कुख्यात तस्कर सलीम डोला इस ड्रग ऑपरेशन को फंडिंग और ट्रेनिंग दे रहा है.
भोपाल के हज़ारों घरों में से एक साधारण-सा मकान, जगदीशपुरा इलाके में मकान नंबर-11, दरअसल करोड़ों की ड्रग्स फैक्ट्री थी और जिसके तार डी-गैंग से जुड़े थे. 16 अगस्त को राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) की टीम ने छापा मारा तो भीतर से बरामद हुआ 61.20 किलो लिक्विड मेफ़ेड्रोन (एमडी), जिसकी क़ीमत करीब ₹92 करोड़ आँकी गई। साथ ही 541 किलो से अधिक केमिकल्स भी मिले, जिनसे इस घातक ड्रग को तैयार किया जाता था.
इस सनसनीखेज़ खुलासे ने साफ कर दिया है कि दाऊद इब्राहिम के पुराने गुर्गे अब मध्यप्रदेश तक अपने नेटवर्क फैला चुके हैं. इस छापे से तुर्की से लेकर भोपाल तक फैला हुआ अंडरवर्ल्ड का जाल अब खुलकर सामने आ गया है. तुर्की में बैठे कुख्यात तस्कर सलीम डोला ने इस नेटवर्क को फंडिंग और ट्रेनिंग दी, जबकि भोपाल में उसके साथी फैक्ट्री चलाकर मेफेड्रोन तैयार कर रहे थे. यह वही डोला है जो कभी दाऊद के करीबी इकबाल मिर्ची का सहयोगी रहा है और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रग तस्करी का बड़ा खिलाड़ी बन चुका है.
कभी मुंबई पर दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गों का ख़ौफ़ था. सुपारी, रंगदारी और गैंगवार उनकी पहचान थी. लेकिन अब खुफिया एजेंसियों का दावा है कि डी-कंपनी ने अपना धंधा बदल लिया है. सूत्रों के मुताबिक़,दाऊद, सलीम उर्फ़ इस्माइल उर्फ़ डोला और उमैद-उर-रहमान पाकिस्तान और दुबई से आने वाले पैसों के सहारे भारत में मेफ़ेड्रोन (एमडी) का नेटवर्क खड़ा कर रहे हैं. सलीम डोला, जो पहले स्मगलर इक़बाल मिर्ची का साथी रहा है, अब तुर्की से इस पूरे ऑपरेशन को चला रहा है. उसका भांजा मुस्तफ़ा कुब्बावाला, जिस पर इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है, इस धंधे में दाएँ हाथ की तरह काम कर रहा है.
छापे में जो फैक्ट्री मिली, वह किसी लोकल जुगाड़ से नहीं, बल्कि इंडस्ट्रियल-ग्रेड लैब थी. अंदर से ड्रग मिक्सिंग मशीनें, तापमान नियंत्रित रिएक्टर और पूरा सेटअप मिला. इस ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी थी अशोकनगर के फै़सल कुरैशी पर, जिसने फार्मेसी में डिप्लोमा किया गुजरात से फार्मा की ट्रेनिंग ली थी. उसके साथ था विदिशा का रज़्ज़ाक़ खान, जिसने फैक्ट्री के लिए सुरक्षित ठिकाना और ज़रूरी इंतज़ाम किए। दोनों को यही काम सौंपा गया था कि वे एक सुरक्षित ठिकाना खोजें और वहां से मेफेड्रोन तैयार करें.
जाँच में खुलासा हुआ कि ज़रूरी केमिकल्स मिथिलीन डाइक्लोराइड, एसीटोन, मोनोमेथिलएमीन, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और 2-ब्रोमो मुंबई के भिवंडी और ठाणे से लाए जा रहे थे. गिरफ़्तार आरोपियों ने कबूल किया कि 400 किलो तक कच्चा माल पहले ही मुंबई से भोपाल पहुँच चुका था, सलीम डोला के इशारों पर. अजहरुद्दीन इदरीसी नामक शख्स को इसके लिए पैसे का लालच देकर इस्तेमाल किया गया.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह मकान पिछले 7 साल से बंद पड़ा था. फिर भी 14 अगस्त को, छापे से सिर्फ़ दो दिन पहले, यहां बिजली का मीटर रिकॉर्ड तेज़ी से लगवा दिया गया. फाइल बिना किसी फील्ड वेरिफिकेशन के पास कर दी गई और चंद घंटों में कनेक्शन दे दिया गया. अब एजेंसियां इस बात की जांच कर रही हैं कि किस अफ़सर ने मोटी रकम लेकर यह सुविधा दिलाई.
एजेंसियों का मानना है कि इस फैक्ट्री से तैयार माल सिर्फ़ मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों में सप्लाई होना था. सूरत और मुंबई से भी पांच और आरोपियों को पकड़ा गया है, जिससे साफ़ है कि यह सिर्फ़ एक फैक्ट्री नहीं, बल्कि पैन-इंडिया नेटवर्क का हिस्सा है.
यह मामला सिर्फ़ एक ड्रग फैक्ट्री का नहीं, बल्कि उस अंडरवर्ल्ड की वापसी का सबूत है जिसे कभी मुंबई ने झेला था. फर्क सिर्फ़ इतना है कि अब यह गैंग बंदूक और गोली छोड़कर केमिकल और कैश पर दांव खेल रहा है.भोपाल से निकली ₹92 करोड़ की यह खेप दिखाती है कि दाऊद का भूत अभी जिंदा है और अब वह देश के दिल से खेल रहा है.