स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सोशल मीडिया की आजादी पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए : अटॉर्नी जनरल 

शीर्ष न्यायालय के फैसलों की ट्विटर पर आलोचना या उन पर सवाल उठाए जाने के बीच वेणुगोपाल ने कहा, "स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सोशल मीडिया पर खुली चर्चा पर रोक नहीं लगानी चाहिए.

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नई दिल्ली:

स्वस्थ लोकतंत्र में सोशल मीडिया पर बहस या बोलने की आजादी पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए. इससे मुकदमेबाजी बढ़ेगी. सरकार के शीर्ष विधि अधिकारी ने सोमवार को यह बात कही. अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने एनडीटीवी से कहा कि सुप्रीम कोर्ट केवल दुर्लभ मामलों (Rarest of Rare Cases) में ही अवमानना (Contempt) ​​की पहल करता है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तभी अवमानना शुरू करता है जब रेखा पार हो जाती है. 

शीर्ष न्यायालय के फैसलों की ट्विटर पर आलोचना या उन पर सवाल उठाए जाने के बीच वेणुगोपाल ने कहा, "स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सोशल मीडिया पर खुली चर्चा पर रोक नहीं लगानी चाहिए. आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करता है जब तक सीमा रेखा पार नहीं होती."

उन्होंने आगे कहा, "न्यायपालिका और सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया और मीडिया में बहुत आलोचना हो रही है. हमें खुले लोकतंत्र और खुली चर्चा की जरूरत है. सोशल मीडिया या बोलने की आजादी पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए. स्वस्थ लोकतंत्र में सोशल मीडिया पर बहस पर सरकार को अंकुश नहीं लगाना चाहिए. इस पर अंकुश लगाना अनावश्यक होगा." 

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार को इस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाना चाहिए. अगर कोई बताता है कि कुछ छूट गया है तो शीर्ष अदालत इससे निपटकर खुश होगी. सुप्रीम कोर्ट तब तक अपने रास्ते से नहीं हटेगा जब तक अवमानना ​​नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट दुर्लभ मामलों में ही अवमानना ​​की पहल करता है.

वीडियो: जमानत से लेकर अवमानना का मापदंड क्यों नहीं?

  

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