गैस चैंबर से भी खतरनाक हुई दिल्ली की हवा, प्रदूषण से ब्रेन स्ट्रोक का बढ़ा खतरा

दिल्ली में बीते दो दिनों में प्रदूषण का स्तर वेरी पूअर से सिवियर कैटेगरी में चला गया है. इसी को देखते हुए गुरुवार को दिल्ली सरकार ने ग्रीन वॉर रूम में पर्यावरण वैज्ञानिकों के साथ बैठक की. बैठक के बाद पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने सभी सम्बंधित विभागों को ग्रेप दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं.

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नई दिल्ली:

दिल्ली की वायु गुणवत्ता काफी खराब स्तर पर पहुंच गई है. दिल्ली का एक्यूआई लेवल गुरुवार को 400 के पार पहुंच गया. प्रदूषण के इस स्तर को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने 15 नवंबर से ग्रेप 3 लागू करने का फैसला किया है.
इससे निर्माण से संबंधित कामों को प्रदूषण नियंत्रण में आने तक बंद किया जा सकता है. भवन व इमारतों में तोड़फोड़, खनन से जुड़ी सभी प्रकार की गतिविधियां निलंबित कर दी जाएंगी. सरकार प्राथमिक विद्यालयों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं जैसे निर्णय भी ले सकती है.

दिल्ली में बीते दो दिनों में प्रदूषण का स्तर वेरी पूअर से सिवियर कैटेगरी में चला गया है. इसी को देखते हुए गुरुवार को दिल्ली सरकार ने ग्रीन वॉर रूम में पर्यावरण वैज्ञानिकों के साथ बैठक की. बैठक के बाद पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने सभी सम्बंधित विभागों को ग्रेप दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं.

देखा जाए तो राजधानी दिल्ली की हवा में सांस लेना अब सेहत के लिए खतरनाक हो गया है. बढ़ते प्रदूषण और पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने के धुएं से राजधानी गैस चेंबर में तब्दील हो गई है.
  1. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड यानी CPCB के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI 452 हो गया है. यानी अब दिल्ली की हवा 'बेहद गंभीर कैटेगरी' में पहुंच गई है.
  2. CPCB ने बुधवार देर रात दिल्ली के अलग-अलग इलाकों के एयर क्वालिटी इंडेक्स जारी किए हैं. आंकड़ों के मुताबिक, नजफगढ़ की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित है.
  3. यहां AQI 482 रिकॉर्ड हुआ है. दूसरे नंबर पर नेहरू नगर है, जहां AQI 480 तक पहुंच गया है. इसके बाद आनंद विहार इलाके की हवा में प्रदूषण है.
  4. दिल्ली की हवा के गिरती क्वालिटी के बाद भी CAQM यानी कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने अब तक ग्रैप का तीसरा फेज लागू नहीं किया है. 
  5. उनका मानना है कि तेज हवा के चलते प्रदूषण कम होकर बहुत खराब श्रेणी में आ जाएगा.

कहां कितना AQI?

दिल्ली के अलीपुर का AQI 443, आनंद विहार का 474, अशोक विहार का 478, बवाना का 464, चांदनी चौक का 416, CRRI मथुरा रोड का AQI 425, इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट का 457, दिलशाद गार्डन का 407 रिकॉर्ड हुआ.

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नरेला का AQI 447, नेहरू नगर का AQI 480, दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस का 448, द्वारका का 444, ओखला फेज-2 का 461, पटपड़गंज का 475, पंजाबी बाग का 462, पूसा का 448, आरके पुरम का 477 और रोहिणी का AQI 458 रिकॉर्ड हुआ. इसके साथ ही ITO दिल्ली का AQI 446, जहांगीरपुरी का 468, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम का 444, लोधी रोड का 349, नजफगढ़ का AQI 482 रिकॉर्ड हुआ.

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PM10 में 5% की बढ़ोतरी

CPCB के लेटेस्ट आंकड़ों में सामने आया कि इस साल 1 जनवरी से 12 नवंबर के बीच दिल्ली का वार्षिक औसत PM 10 पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 5% और PM 2.5 7% ज्यादा रहा है. इस साल PM10 का औसत 193.25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जो पिछले वर्ष के 184.25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा है.

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रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जनवरी से 12 नवंबर के बीच राष्ट्रीय राजधानी में 116 दिन ऐसे रहे, जब AQI ‘खराब', ‘बहुत खराब' या ‘गंभीर' श्रेणी में दर्ज किया गया. आंकड़ों में सामने आया कि 201 दिन एक्यूआई ‘अच्छा', ‘संतोषजनक' या ‘मध्यम' श्रेणी में रहा. दिल्ली में पिछले साल 110 दिन वायु गुणवत्ता ‘खराब' और 206 दिन ‘अच्छी', ‘संतोषजनक' और ‘मध्यम' श्रेणी में रही.

NCR की हवा भी हुई खराब

गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम और ग्रेटर नोएडा सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में मंगलवार को वायु गुणवत्ता ‘खराब' रही थी. वहीं, फरीदाबाद में एक्यूआई ‘मध्यम' श्रेणी में दर्ज किया गया. CPCB के मुताबिक, दिल्ली के 36 निगरानी केंद्रों में से 30 ने वायु गुणवत्ता को ‘गंभीर' करार दिया.

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पॉल्यूशन से हो रहा ब्रेन स्ट्रोक और हार्टफेल

साइंस मैगजीन लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में पब्लिश एक हालिया स्टडी के मुताबिक, एयर पॉल्यूशन से सबराकनॉइड हैमरेज (Subarachnoid Haemorrhage) यानी SAH के मामले बढ़ रहे हैं. यानी लोगों में ब्रेन स्ट्रोक के मामले आ रहे हैं. विकलांगता और कई मामलों में हार्टफेल के लिए भी एयर पॉल्यूशन एक कारण होती है.

 दिल्ली एनसीआर के कई इलाके ऐसे हैं, जहां का एक्यूआई 300 से ज्यादा है. स्थिति को देखते हुए दिल्ली सरकार ने एनसीआर में ग्रैप का पहला चरण लागू कर दिया है. ऐसे में आईए जानते हैं कि ग्रैप के कितने चरण होते हैं और किस चरण में किन-किन चीजों पर पाबंदी होती है.

ग्रैप का पहला चरण कब लागू होता है?

एक्यूआई 201 से 300 के बीच रहने पर ग्रैप का पहला चरण लागू किया जाता है. इसमें निर्माण और विध्वंस से निकलने वाली धूल और मलबे के प्रबंधन से संबंधित निर्देश लागू होते हैं. खुली जगहों पर कचरा जलाने और फेंकने पर रोक लगाई जाती है. नियमित रूप से कूड़ा उठाने के निर्देश दिए जाते हैं. सड़कों पर धूल उड़ने से रोकने के लिए कुछ दिनों के अंतराल पर पानी का छिड़काव किया जाता है. डीजल जनरेटर सेट के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाती है और पीयूसी के नियमों को सख्ती से लागू किया जाता है. वाहनों से निकलने वाले धुएं पर सख्ती बरती जाती है.

ग्रैप का दूसरा चरण कब लागू होता है?

एक्यूआई 301 से 400 के बीच होने पर ग्रैप का दूसरा चरण लागू किया जाता है. इसमें अस्पतालों, रेल और मेट्रो सेवाओं को छोड़कर अन्य जगहों पर डीजल जनरेटर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जाता है. रोजाना सड़कों की साफ-सफाई और पानी का छिड़काव किया जाता है. फैक्ट्रियों में केवल उचित ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. लोगों को सार्वजनिक परिवहन का अधिकतम इस्तेमाल करने के लिए पार्किंग फीस बढ़ाई जाती है, निर्माण स्थलों पर निरीक्षण बढ़ा दिया जाता है.

ग्रैप का तीसरा चरण कब लागू होता है?

एक्यूआई 401 से 450 के बीच होने पर तीसरा चरण लागू किया जाता है. इसमें हर दिन सड़कों की सफाई की जाती है, नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाता है. निर्माण और विध्वंस से निकलने वाले धूल और मलबे का सही तरीके से निष्पादन किया जाता है. दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में पेट्रोल से चलने वाले बीएस-3 इंजन और डीजल से चलने वाले बीएस-4 चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाती है.

ग्रैप का चौथा चरण कब लागू होता है?

एक्यूआई 450 से अधिक होने पर ग्रैप का चौथा चरण लागू किया जाता है. इस चरण में ट्रक, लोडर जैसे भारी वाहनों को दिल्ली में प्रवेश करने पर रोक लगा दी जाती है. केवल आवश्यक सामग्री वाली आपूर्ति करने वाले वाहनों को प्रवेश दिया जाता है. सभी प्रकार के निर्माण और विध्वंस कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. राज्य सरकार स्कूली छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं और सरकारी तथा निजी कार्यालयों के लिए घर से काम करने का निर्णय भी ले सकती है. ऑड-ईवन का निर्णय भी चौथे चरण में लिया जा सकता है, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन ऐसा करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार दिए गए हैं.

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