मोना की हत्या कर 2 साल तक परिवार को बनाया बेवकूफ, ऐसा खुला राज...अब बहन मांग रही इंसाफ

मोना की बहन के मुताबिक सुरेंद्र ने मोना की हत्या के बाद किसी और लड़की को ले जाकर उसे मोना के नाम से कोरोना वैक्सीन भी लगवा दी और सर्टिफिकेट बन गया,जिससे ये लगे कि वह जिंदा है और जानबूझकर हमारे पास नहीं आ रही.

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महिला पुलिसकर्मी मोना

रविवार को दिल्ली पुलिस मुख्यालय की 14वीं मंजिल पर स्पेशल सीपी क्राइम रविन्द्र यादव के दफ्तर में ऐसा माहौल था जो वहां बैठे हर शख्स को झकझोर रहा था. सदमे से भरी एक महिला जो कुछ भी बोल रही थी, उसका हर एक शब्द सीधा सीने में चुभ रहा था. महिला बातचीत करते करते कई बार बेहोश हुई. उस समय दफ्तर में स्पेशल सीपी रविन्द्र यादव, डीसीपी क्राइम संजय भाटिया और महिला पत्रकारों समेत कुछ अन्य पत्रकार भी शामिल थे. जो महिला अपनी दास्तां सुना रही थी वह दिल्ली पुलिस की महिला कांस्टेबल मोना उर्फ मोनिका यादव की बड़ी बहन थी.

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मोना की दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल सुरेंद्र राणा ने सितंबर 2021 में गला घोंटकर हत्या कर दी थी और उसका शव नाले में फेंक दिया था. मोना उसे अपना पिता मानती थी लेकिन वह उसपर बुरी नजर रखता था.बड़ी बहन ने बताया कि उसका परिवार मूलरूप से बुलंदशहर का रहने वाला है. उसके पिता यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे, लेकिन 2011 में गोली लगने से वह शहीद हो गए थे. पिता के बाद तीन बहनों की पढ़ाई-लिखाई और देखरेख की सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई. मोना तीनों बहनों में सबसे छोटी थी और वह पापा के भी सबसे करीब थी. मोना पापा से इतना प्यार करती थी कि कमरे की दीवारों और अपनी नोट बुक पर अक्सर ' मिस यू पापा' लिखती रहती थी.

'कहता था बेटी, रखता था बुरी नजर'

बहन ने बताया कि मोना शुरुआत से ही पढ़ाई में होनहार थी. उसके यूपी बोर्ड के एग्जाम में 100 में 100 नंबर आए थे. वह गरीब बच्चों को फ्री में ट्यूशन भी पढ़ाती थी बीएस के एग्जाम में उसकी 25 वीं रैंक आई थी. पापा चाहते थे कि वो आईएएस बने इसलिए उसने तय कर लिया था कि उसे सिविल सर्विस एग्जाम पास करना है. इसी सोच के साथ वह अपनी नोटबुक में आईएएस मोना यादव लिखती थी. इसी बीच 2014 में उसका सिलेक्शन दिल्ली पुलिस में हो गया और फिर सुरेंद्र राणा उसके संपर्क में आया. वह मोना के साथ  परिवार के सदस्य की तरह ही व्यवहार करता और हमारे परिवार से अक्सर मिलता भी रहता था. कभी ऐसा नहीं लगा कि उसकी नीयत में क्या है.

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मोना का यूपी पुलिस में सबइंस्पेक्टर के लिए चयन हो गया और 2020 में उसने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी और मुखर्जी नगर में रहकर आईएएस की तैयारी करने लगी,इस दौरान भी सुरेंद्र उसको बेटा कहकर बुलाता था और उसकी देखरेख करता था. उस पर कभी किसी तरह का शक नहीं हुआ. लेकिन सितंबर 2020 में मोना गायब हो गई, सुरेंद्र से जब मोना के बारे में पूछा तो उसने बताया मोना के बारे में उसको कोई जानकारी नहीं है.

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'2 साल तक परिवार को बनाया बेवकूफ'

 अक्टूबर 2021 में मोना की बहन सुरेंद्र के साथ ही मुखर्जी नगर थाने में उसकी मिसिंग की शिकायत दर्ज कराने गई.  इसके बाद सुरेंद्र मोना के साथ बातचीत का ऑडियो घरवालों को भेजने लगा, जिसमें वह मोना से कह रहा है बेटा अपने घर जाओ तुम्हारे घरवाले तुम्हे खोज रहे थे. दरअसल मोना की उसके पास पहले की कुछ ऑडियो रिकॉर्डिंग थी जिसको वह एडिट करके भेज देता था. सुरेंद्र के कहने पर उसकी बहन 5 राज्यों में मोना की तलाश के लिए घूमती रही. जिस एटीएम से भी वह मोना के अकाउंट से पैसे निकालता, वह वहीं उसे ढूंढने चली जाती थी.  जब वह एटीएम की फुटेज चेक करती थी तो हेलमेट पहने कोई शख्स दिखता था. वह सुरेंद्र के कहने पर न जाने कितने होटलों और ढाबों पर गई.

 मोना की बहन का कहना है कि पेशे से वह एक स्कूल टीचर है. कई बार ऐसा भी हुआ कि वह मोना के बारे में जानकारी लेने के लिए रात-रात भर थाने में बैठी रही और फिर उन्हीं कपड़ों में सुबह ड्यूटी के लिए स्कूल चली गई.  बहन की तलाश के लिए हर रोज छुट्टी मिलना मुश्किल था फिर भी जहां से फोन आता वह तुरंत भागती थी.एक बार फोन आया कि अपकी बहन कर्नाटक में है, जिसके बाद किसी तरह से छुट्टी लेकर वह कर्नाटक भी गई. फोन पर झूठी सूचनाएं देने वाला कोई और नहीं सुरेंद्र राणा और उसका साला रॉबिन था.

'लोगों के ताने सुने लेकिन नहीं हारी हिम्मत...'

मोना की बहन के मुताबिक सुरेंद्र ने मोना की हत्या के बाद किसी और लड़की को ले जाकर उसे मोना के नाम से कोरोना वैक्सीन भी लगवा दी और सर्टिफिकेट बन गया,जिससे ये लगे कि वह जिंदा है और जानबूझकर हमारे पास नहीं आ रही. मैने किसी तरह वो सर्टिफिकेट भी निकलवाया लेकिन हमारे परिवार को ऐसा लगता था कि आखिर मोना जिंदा है तो वो बात क्यों नहीं कर रही, वह पढ़ी-लिखी लड़की थी. हमने उसे कभी किसी काम से नहीं रोका फिर आखिर बिना वजह हमसे बात क्यों नहीं कर रही. इसी वजह से हमें सुरेंद्र पर शक होने लगा था लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं था. 

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मुखर्जी नगर थाने की पुलिस उल्टा हम पर आरोप लगा देती थी कि तुम्हारी बहन किसी के साथ भाग गई है, यहां तक कि हमारे गांव के लोग कहने लगे की तुम्हारी बहन कहीं भाग गई है,इसके चलते मेरा पूरा परिवार बिखर गया. मेरे पिता ने हम तीनों बहनों को अच्छे संस्कार दिए थे और हमेशा बेटों की तरह पाला था, इसलिए ऐसे आरोप सुनकर हम लोग डिप्रेशन में आने लगे,लेकिन मैने हिम्मत नहीं हारी.

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ऐसा खुला शातिर सुरेंद्र राणा का राज

मुखर्जी नगर थाने की पुलिस ने करीब 8 महीने बाद अप्रैल 2022 में अपहरण का केस दर्ज किया लेकिन फिर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रही जबकि हर बार सुरेंद्र हमारे साथ थाने जाता था. लेकिन उन्होंने कभी सुरेंद्र से पूछताछ नहीं की इसके बाद मैं करीब 2 महीने पहले जन सुनवाई में पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा से मिली. उन्होंने केस को क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर किया और क्राइम ब्रांच ने बेहतरीन जांच कर 2 महीने में ही आरोपी को पकड़ा लिया. मोना की बहन अब परिवार के लिए इंसाफ चाहती है. उसने पुलिस अफसरों से कहा कि क्या उसे अपनी बहन की अस्थियां मिल सकती है जिससे वह अंतिम संस्कार कर सके...यह कहते-कहते वह बीच में एक बार फिर बेहोश हो गई.
 

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