दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने रविवार को कहा कि अध्यादेश के माध्यम से केंद्र द्वारा स्थापित सिविल सेवा प्राधिकरण को ‘‘पूरी तरह से मजाक'' बना दिया गया है, जिससे नौकरशाहों को निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्णयों को पलटने की अनुमति मिल गई है और वे अपनी मर्जी चला रहे हैं. हालांकि, उपराज्यपाल सचिवालय ने सीएमओ के आरोपों का खंडन किया है. यह बयान राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की दूसरी बैठक के दो दिन बाद आया, जिसमें कहा गया कि बैठक के दौरान दो सदस्यों-नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रुख का ‘‘विरोध नहीं किया'', लेकिन बाद में उनके फैसले रद्द कर दिए.
हालांकि, उपराज्यपाल सचिवालय ने सीएमओ के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि उसका बयान लोक सेवा प्राधिकारियों की बैठक में हुए घटनाक्रमों की "सही तस्वीर" नहीं पेश करता है.
उपराज्यपाल सचिवालय ने कहा, ‘‘एक कहानी पेश की जा रही है कि अधिकारी सुन नहीं रहे हैं और उन्हें पूर्ण नियंत्रण की आवश्यकता है. एनसीसीएसए सार्वजनिक डोमेन में सच्चाई को सत्यापित करने के लिए प्रेस को मसौदे का ब्योरा जारी करेगा.''
तीन सदस्यीय एनसीसीएसए की स्थापना 19 मई को केंद्र द्वारा जारी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 के माध्यम से की गई थी. दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापना के लिए इसकी शुरुआत की गई.
मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष हैं, जबकि सदस्य के रूप में मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह) शामिल हैं. इसे साधारण बहुमत से निर्णय लेने की शक्तियां प्रदान की गईं.
सीएमओ ने बयान में कहा, ‘‘हालांकि, इस साधारण बहुमत ने नौकरशाहों को मुख्यमंत्री के फैसलों को पलटने में सक्षम बना दिया है, जिससे उन्हें प्राधिकरण के संचालन पर अनियंत्रित शक्ति मिल गई है. नतीजतन, चुनी हुई सरकार और दिल्ली के लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्यमंत्री की आवाज एनसीसीएसए के भीतर अल्पमत में हो गई है.''
बयान में कहा गया है कि 29 जून की बैठक के दौरान, केजरीवाल ने लंबित स्थानांतरण-पदस्थापना प्रस्तावों पर चिंता व्यक्त की और महिला अधिकारियों के स्थानांतरण के अनुरोध के संबंध में निर्देश जारी किए। उन्होंने शिक्षा विभाग से ‘‘सक्षम अधिकारियों'' को हटाने पर भी आपत्ति दर्ज की.
ग्यारह महिला अधिकारियों द्वारा सहानुभूति के आधार पर तबादले का अनुरोध किये जाने का उल्लेख करते हुए बयान में कहा गया कि मुख्यमंत्री ने इस बात पर गौर करते हुए इसका समर्थन किया कि कामकाजी महिलाएं कार्यालय और घर दोनों संभालती हैं, इसलिए उनके आवेदन पर उचित रूप से विचार किया जाना चाहिए.
बयान में दावा किया गया कि दोनों नौकरशाहों ने बैठक के दौरान मुख्यमंत्री के रुख का विरोध नहीं किया. बयान में कहा गया, ‘‘हालांकि, अफसोस की बात है कि बैठक के विवरण को अंतिम रूप देते समय मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह) ने अपने एजेंडे को आगे रखते हुए, मुख्यमंत्री के सभी निर्णय को पलट दिया.''
बयान में कहा गया है कि परिणामस्वरूप, 11 महिला अधिकारियों को बाध्यकारी कारणों के बावजूद तबादले से वंचित कर दिया गया है और सक्षम अधिकारियों को शिक्षा विभाग से हटाया जा रहा है, जिससे अब तक की प्रगति खतरे में पड़ गई है.
दिल्ली की शिक्षा क्रांति को कमजोर करने और चुनी हुई सरकार की उपलब्धियों में बाधा डालने के लिए ‘‘सावधानीपूर्वक'' योजना तैयार किए जाने का आरोप लगाते हुए बयान में कहा गया, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नौकरशाहों के साथ पूरी तरह से एक मजाक बन कर रह गया है, जो अपनी मर्जी चला रहे हैं और मुख्यमंत्री के फैसलों को पलट रहे हैं.''
उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की निर्वाचित सरकार को सौंपने के एक सप्ताह बाद केंद्र ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश जारी किया.
ये भी पढ़ें :
* दिल्ली : NDLS, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के बाद LNJP में करंट से मौत, खुले तारों ने ली मजदूर की जान
* दिल्ली :नर्स का अश्लील वीडियो बनाकर दो साल से दुष्कर्म कर रहा था डॉक्टर, गिरफ्तार
* दिल्ली में 2 पुलिसवालों पर सर्जिकल ब्लेड से हमला, पकड़े गए बदमाश