दिल्ली में कूड़े का पहाड़ खत्म करने के लिए 550 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. उसके बावजूद भलस्वा लैंडफिल बीते चार दिन से ज्वालामुखी बनकर धुंआ उगल रहा है. 2024 तक कूड़े के इस पहाड़ को खत्म करना था लेकिन सुप्रीम कोर्ट से लेकर NGT तक के आदेशों के बावजूद क्यों नहीं इस कूड़े के पहाड़ से निजात मिली. भलस्वा लैंड फिल का ये पहाड़ चार दिन से धुंआ उगल रहा है...इस जलते पहाड़ ने दिल्ली का तापमान तो बढ़ाया ही 4 से 5 किमी के इलाके में रहने वाले लोगों का सांस लेना तक दूभर कर दिया है. 2024 तक इस कूड़े के पहाड़ को खत्म करना है. दूसरे लिए 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा का अनुमान लगाया गया है. लेकिन जानकारों का मानना है कि जिस रफ्तार से इसमें नया कूड़ा डंप किया जा रहा है उससे इसको खत्म करना लगभग नामुमकिन सा है.
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सीएसई साइट प्रोजेक्ट डायरेक्टर रिचा सिंह ने कहा, जितना वेस्ट ट्रीट कर रहे हैं. उससे कहीं ज्यादा डंप कर रहे हैं. आंकड़ों पर जाएं तो गाजीपुर डंप साइट पर 1 हजार टन ट्रीट करते हैं जबकि हर रोज डंप हम 2500 टन कर रहे हैं तो ऐसे तो कभी भी हम इन पहाड़ों को नहीं खत्म कर पाएंगे. हैरानी की बात ये है कि इस कूड़े के पहाड़ को हटाने के मामला दिल्ली हाइकोर्ट से लेकर NGT और सुप्रीम कोर्ट तक में चल रहा है. बीते चार साल से भलस्वा कूड़े का पहाड़ हटाने को लेकर एनजीटी में कानूनी लड़ाई लड़ रहे गौरव बंसल से हम मिले.
एनजीटी ने 2021 में सुनाए गए अपने आदेश में सरकार की लापरवाही भी मानी लेकिन उसके बावजूद युद्ध स्तर पर इसे हटाने का काम क्यों नहीं हो पाया? NGT अधिवक्ता गौरव बंसल ने 2021 में कहा कि सरकार की ये नाकामी है उसके काम करने का तरीका सही नहीं है करोड़ों रुपए का जुर्माना भी लगा है अगर सरकार चाहती है तो वो वसूले. हालात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली में हर दिन 11 हजार टन कूड़ा निकलता है लेकिन केवल 6 हजार टन का ही अच्छे से निस्तारण हो पा रहा है.
बाकी 1 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा पुराना कूड़ा मुसीबत का पहाड़ साबित हो रहा है. पीटीसी वेस्ट मैनेजमेंट के डानकारों से बात करके फिलहाल मुझे यही समझ आया कि नए कूड़े को नई साइट पर ले जाकर साइंटिफिक तरीके से ट्रीट किया जाए और पुराने कूड़े को हटाने की कोशिश की जाए. लेकिन दिल्ली में दिक्कत ये हा कि नए कूड़े के लिए जमीन खोजना भूसे से सुई खोजने जैसा है.