हिरासत में मौत मामला: SC ने हिमाचल के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक की जमानत बहाल करने से किया इनकार

SC ने कहा कि एक गवाह, जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी है, को प्रभावित करने की कोशिश ‘‘अत्यंत महत्वपूर्ण’’ आरोप है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक गवाह को प्रभावित करने की कोशिश ‘‘अत्यंत गंभीर’’ आरोप है (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले (Custodial death case) में हिमाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक जहूर हैदर जैदी की जमानत बहाल करने से मंगलवार को इनकार कर दिया. SC ने कहा कि एक गवाह, जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी है, को प्रभावित करने की कोशिश ‘‘अत्यंत महत्वपूर्ण'' आरोप है. हिमाचल प्रदेश में शिमला जिले के कोठखाई में 2017 में एक स्कूल छात्रा से गैंगरेप के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों में से हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में प्रमुख आरोपियों में से एक जैदी को शीर्ष अदालत ने छह अप्रैल 2019 को जमानत दे दी थी और बाद में मामले को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया था.

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चंडीगढ़ स्थित विशेष निचली अदालत ने जनवरी 2020 में जैदी की जमानत तब रद्द कर दी थी जब अभियोजन पक्ष की गवाह एवं आईपीएस अधिकारी सौम्या संबासिवन ने आरोप लगाया कि जैदी मुकदमे को प्रभावित करने के लिए उनपर दबाव बना रहे हैं. बाद में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जैदी की जमानत रद्द करने के निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की अवकाशकालीन बेंच ने जैदी की जमानत बहाल करने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘आप सर्वोच्च आईपीएस अधिकारी (राज्य के) रहे हैं. आप दूसरे आईपीएस अधिकारी को कैसे धमका सकते हैं.यदि आप एक आईपीएस अधिकारी को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं तो आप अन्य गवाहों को भी प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं.''

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जैदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वीके गुप्ता ने कहा कि सभी अन्य आरोपी जमानत पर हैं, जबकि आईपीएस अधिकारी द्वारा दबाव बनाए जाने का आरोप लगाए जाने के बाद पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एक साल से अधिक समय से जेल में हैं. उन्होंने कहा कि अभी मामले में कई गवाहों से जिरह की जानी है और इसके अतिरिक्त जैदी के खिलाफ मुख्य आरोप सबूत मिटाने का है जिसमें अधिकतम सात साल कैद की सजा का प्रावधान है. पीठ ने कहा, ‘‘आप इसे मामूली चीज मान सकते हैं, लेकिन जहां तक आपराधिक मुकदमों की बात है तो किसी गवाह को प्रभावित करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज है. हम मामले का गुण-दोष नहीं देख रहे, बल्कि यह देख रहे हैं कि आपने निचली अदालत द्वारा लगाई गईं जमानत शर्तों का किस तरह पालन नहीं किया.''जैदी के वकील ने इसके बाद शीर्ष अदालत से याचिका वापस ले ली.

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शीर्ष अदालत ने मामले को सात मई 2019 को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित करते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के इस अभिवेदन को संज्ञान में लिया था कि यद्यपि आरोपत्र दायर कर दिया गया है, लेकिन मामले में मुकदमे में प्रगति नहीं दिखी है, इसलिए मामले को तेजी से निपटाने के लिए दूसरी अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए. गौरतलब है कि जैदी और सात अन्य को सूरज की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था जो 18 जुलाई 2017 को कोठखाई थाने में मृत मिला था. कोठखाई में चार जुलाई 2017 को 16 वर्षीय एक लड़की लापता हो गई थी और दो दिन बाद छह जुलाई को उसका शव हलाइला वन से मिला था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई थी तथा फिर इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया गया. राज्य में लोगों के आक्रोश के चलते वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जैदी के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की थी.एसआईटी ने मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया था और आरोपी सूरज की हिरासत में मौत के बाद हाईकोर्ट ने दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.सीबीआई ने हिरासत में मौत के मामले में जैदी, एक पुलिस उपायुक्त और अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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