नई दिल्ली: विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को तभी जमानत मिले जब वे उनके द्वारा किये गये नुकसान के बराबर धनराशि जमा करा दें और यह कदम निश्चित रूप से ऐसे कृत्यों के खिलाफ निवारक कदम के रूप में काम करेगा. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता में आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान लंबे समय तक सार्वजनिक स्थानों और सड़कों को अवरुद्ध करने के मुद्दे से निपटने के लिए एक व्यापक कानून बनाया जाना चाहिए.
आयोग ने सिफारिश की कि लंबे समय तक सार्वजनिक स्थानों को अवरुद्ध करने से निपटने के लिए एक नया व्यापक कानून बनाया जाए या संशोधन के माध्यम से भारतीय दंड संहिता या भारतीय न्याय संहिता में इससे संबंधित एक विशिष्ट प्रावधान पेश किया जाये.
इसने सरकार से कहा, ‘‘सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा का डर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिए एक निवारक कदम साबित होगा.''
इसने जमानत की शर्त को सख्त बनाने के लिए 1984 के कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा. आयोग ने कहा, ‘‘किसी संगठन द्वारा आहूत प्रदर्शन, हड़ताल या बंद के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होता है तो ऐसे संगठन के पदाधिकारियों को इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध के लिए उकसाने के अपराध का दोषी माना जाएगा.''
इसने कहा है कि सार्वजनिक संपत्ति किसी देश के बुनियादी ढांचे का आधार है, जो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक ढांचा प्रदान करती है. आयोग ने मणिपुर में हाल की ‘‘जातीय हिंसा'', कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे, 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन और अन्य का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे प्रकरण देश को होने वाली क्षति और तबाही की कहानी हैं.
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