क्रेन संचालक (Crane Operator) दयानंद तिवारी (Dayanand Tiwari) दिल्ली के मुंडका (Mundka) इलाके की एक चार मंजिला इमारत में लगी आग के दौरान जिंदा बचे बहुत से लोगों के लिए किसी ‘मसीहा' से कम नहीं हैं. हालांकि, आग से घिरे 50 लोगों को बचाने वाले क्रेन संचालक तिवारी ने कहा कि उन्होंने जो कुछ किया, वह इंसान होने के नाते उनका कर्तव्य था. पिछले हफ्ते इस इमारत में लगी भीषण आग से 27 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हो गये थे.
इस घटना के वक्त 45 वर्षीय दयानंद तिवारी अपने भाई के साथ वहां से गुजर रहे थे. लेकिन आग देखकर उन्होंने दमकल की गाड़ियों के आने का इंतजार नहीं किया. इसके बाद तिवारी ने आग से घिरे 50 से अधिक लोगों को बचाया. आग लगने के शुरुआती घंटों के दौरान बचाव अभियान शुरू करने के लिए उन्हें किस चीज ने प्रेरित किया? इस सवाल के जवाब में दयानंद कहते हैं, ‘‘एक इंसान के रूप में यह मेरा कर्तव्य था कि मैं दूसरों की मदद करूं. ''उस दिन को याद करते हुए दयानंद ने कहा कि दिन का काम खत्म करने के बाद इलाके से गुजरते समय उन्होंने और उनके भाई अनिल तिवारी ने इमारत से धुआं निकलते देखा, जहां लोगों के बीच दहशत की स्थिति थी.
तिवारी ने कहा, ‘‘मैंने देखा कि धुआं उठ रहा है और इमारत के लोगों के बीच चीख-पुकार मची हुई है. मैंने और अनिल ने वहां जाने और कुछ करने की कोशिश करने का फैसला किया, लेकिन आग के कारण ट्रैफिक धीमा था, इसलिए हमने डिवाइडर तोड़ा और मौके पर पहुंच गए. '' उन्होंने कहा कि बचने का कोई रास्ता नहीं था इसलिए क्रेन की मदद से उन्होंने इमारत के कांच के पैनल को तोड़ दिया. उन्होंने कहा कि इसके बाद वह चार-छह के समूह में लोगों को बाहर निकालने में सफल रहे. उन्होंने कहा कि उन्हें 50 लोगों की जान बचाने में सफलता मिली. दो बच्चों के पिता दयानंद बिहार के मूल निवासी हैं, जो करीब 25 साल पहले दिल्ली में आये थे और तब से मुंडका में रह रहे हैं. लेकिन उनका कहना है कि उन्होंने कुछ असाधारण नहीं किया. मालती उन लोगों में से एक हैं, जिन्हें दयानंद ने बचाया था.
मालती ने कहा, ‘‘मैं कल्पना नहीं कर सकती कि अगर बचाव अभियान चलाने के लिए क्रेन आसपास मौजूद नहीं होती तो क्या होता. वह एक ‘मसीहा' की तरह आए और इतने लोगों को बचाया. ''तिवारी द्वारा बचाई गई एक अन्य महिला ने कहा कि अगर वह नहीं होते, तो वह जीवित नहीं होती. ममता ने कहा, ‘‘हम बचने के रास्ते की तलाश कर रहे थे. लेकिन सीढ़ी के रास्ते पर धुआं भरा था. तभी मुझे वहां क्रेन होने की जानकारी मिली और मैं क्रेन की तरफ दौड़ी. मुझे लगता है कि अगर दयानंद तिवारी नहीं होते, तो मैं जीवित नहीं होती. ''
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