क्या पश्चिम बंगाल में CPM को 'शून्य' से निकाल पाएंगे मोहम्मद सलीम, कितनी बड़ी है चुनौती

पश्चिम बंगाल सीपीएम ने एक बार फिर मोहम्मद सलीम को अपना सचिव चुना है. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां सीपीएम शून्य पर है. ऐसे में सलीम की जिम्मेदारी सीपीएम को 'शून्य' से बाहर निकालने की होगी.

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नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने मोहम्मद सलीम पर फिर भरोसा जताया है. उन्हें पार्टी की राज्य इकाई का सचिव दोबारा चुना गया है. इसका फैसला हुगली में चल रहे पार्टी के राज्य अधिवेशन में हुआ. सलीम को पश्चिम बंगाल का इकाई का सचिव बनाने का फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब अगले ही साल वहां विधानसभा चुनाव होने हैं. पश्चिम बंगाल की विधानसभा में अभी सीपीएम का कोई सदस्य नहीं है. सीपीएम का यह हाल उस राज्य में है, जहां 2011 तक उसकी सरकार थी. पश्चिम बंगाल में सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चा ने 1977 से 2011 तक सरकार चलाई थी.  आइए देखते हैं कि पश्चिम बंगाल में मोहम्मद सलीम के लिए चुनौती कितनी बड़ी है. 

सीपीएम का राज्य अधिवेशन

हुगली के दनकुनी में चल रहा सीपीएम का अधिवेशन 27 फरवरी तक चलेगा. इसमें मंगलवार को मोहम्मद सलीम को पार्टी की राज्य इकाई का सचिव चुना गया. वो इस पद पर 2022 से हैं. सलीम से पहले सूर्यकांत मिश्रा राज्य इकाई के सचिव हुआ करते थे. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम का विधानसभा से सुपड़ा साफ हो गया था. उस चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. उसका वोट शेयर भी इस सदी में पहली बार गिरकर एक अंक में आ गया था(देखें टेबल.).पिछले साल हुए लोकसभा के चुनाव में मोहम्मद सलीम को मुर्शीदाबाद सीट पर एक लाख 64 हजार से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद भी पार्टी ने मोहम्मद सलीम को एक बार फिर राज्य सचिव इसलिए चुना है, क्योंकि उसे उम्मीद है कि वो युवाओं को पार्टी की तरफ आकर्षित करने में कामयाब होंगे. उनके कार्यकाल में कई युवा नेता पार्टी में उभरें हैं और युवाओं के मोर्चे पर पार्टी ने कई बड़े धरना-प्रदर्शन आयोजित किए हैं. सीपीएम की राज्य कमेटी में कुल 80 सदस्य हैं. इसमें छह नए चेहरों को शामिल किया गया है. इसमें पार्टी के पांच वरिष्ठ नेताओं विमान बोस, सूर्यकांत मिश्रा, राबिन देव, अमिय पात्रा और जीबेश सरकार को भी जगह दी गई है. 

बंगाल में कैसे फिर खड़ी होगी पार्टी

इस अधिवेशन में सीपीएम ने अपनी राज्य और जिला इकाइयों को पुनर्गठित करने का फैसला किया है.राज्य में पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए पार्टी यह कवायद कर रही है. सीपीएम ने राज्य स्तर पर एक रिसर्च विंग स्थापित करने का फैसला किया है. यह कमेटी विधानसभा चुनाव अभियान के लिए शोध कर प्रचार सामग्री तैयार करेगी और प्रचार अभियान की निगरानी करेगी. इसके साथ ही यह सोशल मीडिया पर पार्टी की पहुंच भी बढ़ाएगी. इसके अलावा सीपीएम जिला स्तर पर डिस्ट्रिक टास्क फोर्स और डिस्ट्रिक वार रूम का गठन करेगी.बंगाल में जिला स्तर पर बनने वाले डिस्ट्रिक टास्क फोर्स का काम डेटा मैनेजमेंट का होगा. इस डेटा के आधार पर ही पार्टी प्रचार अभियान चलाएगी. वहीं डिस्ट्रिक वार रूम का काम डेटा जुटाने और पार्टी के प्रचार अभियान का प्रबंधन देखेगी. यह उन विधानसभा क्षेत्रों की भी पहचान करेगी, जिन पर पार्टी को ध्यान देने की जरूरत है. 

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इस अधिवेशन से पार्टी ने राज्य के राजनीतिक हालात पर एक सर्वे भी कराया था. इसके मुताबिक सीपीएम के सामने एक बड़ी चुनौती बूथ स्तर पर संगठन का विस्तार करने की है. यह बूथ मैनेजमेंट ही एक समय उसकी सबसे बड़ी ताकत हुआ करती थी. इसी के दम पर पार्टी ने दशकों तक बंगाल में शासन किया.इस सर्वे के आधार पर सीपीएम विधानसभा चुनाव का अभियान का संचालन करेगी. इस सर्वे के जरिए उसने राज्य के जातीय और सामाजिक समिकरणों का आंकड़ा भी जुटाया है. 

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पश्चिम बंगाल की विधानसभा में इस समय सीपीएम का कोई भी सदस्य नहीं है.

चुनावों में सीपीएम का प्रदर्शन 

पश्चिम बंगाल की राजनीति में सीपीएम इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इस समय बंगाल की 294 सदस्यों वाली विधानसभा में सीपीएम का कोई भी सदस्य नहीं है. सीपीएम ने 2021 का चुनाव 139 सीटों पर लड़ा था. इनमें से 120 सीटों पर उसकी जमानत तक जब्त हो गई थी. उसे 4.71 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2016 का चुनाव सीपीएम ने 148 सीटों पर लड़ा था. उसे 26 सीटों पर सफलता मिली थी. उसका वोट शेयर 19.75 फीसदी था. साल 2011 के चुनाव में सीपीएम ने 213 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने 40 सीटें जीती थीं और दो सीटों पर अपनी जमानत गंवा दी थी. उसे 30.08 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2006 के चुनाव में उसने शानदार प्रदर्शन करते हैं 176 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसने कुल 212 सीटों पर चुनाव लड़ा था. एक सीट पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. उसे 37.13 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2001 का चुनाव भी सीपीएम ने 212 सीटों पर लड़ा था. उसने 36.59 फीसदी वोट के साथ 143 सीटें जीती थीं. एक सीट पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. 

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सीपीएम के राज्य अधिवेश को संबोधित करते पार्टी के राष्ट्रीय नेता प्रकाश करात.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जैसे-जैसे मजबूत हुई, वैसे-वैसे सीपीएम कमजोर होती गई है. सीपीएम के कमजोर होते ही बीजेपी को राज्य में पांव जमाने का मौका मिल गया. साल 2011 के चुनाव में बीजेपी को कोई सीट तो नहीं मिली थीं. लेकिन उसे चार फीसदी से अधिक वोट मिले थे. वहीं 2016 के चुनाव में बीजेपी ने 10 फीसदी से अधिक वोट लाकर तीन सीटें जीती थीं. बीजेपी 2021 के चुनाव में और मजबूत होकर उभरी. उसे करीब 38 फीसदी वोट और 77 सीटें मिली थीं. इसी चुनाव में सीपीएम शून्य पर पहुंच गई. बंगाल में केवल सीपीएम ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी उतनी ही कमजोर हुई है. दोनों का विधानसभा में कोई सदस्य नहीं है और दोनों का वोट एक अंक में पहुंच गया है. सीपीएम का कांग्रेस से याराना है. लेकिन विधानसभा चुनाव में सीपीएम को ममता की तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी से भी निपटना है. बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश भर में घूम-घूम कर चुनाव जीत रही है. ऐसे में मोहम्मद सलीम की चुनौती काफी बड़ी हो जाती है. इसका मुकाबला वो कैसे कर पाएंगे, इसका पता आने वाले समय में चलेगा. 

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