पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और CPI (M) नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. 8 अगस्त को उनके निधन के साथ ही वामपंथी राजनीति का एक चैप्टर खत्म हो गया. बुद्धदेव भट्टाचार्य बढ़ती उम्र से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित थे. बालीगंज स्थित पाम एवेन्यू आवास पर उन्होंने आखिरी सांसें ली. उनके परिवार में उनकी पत्नी मीरा भट्टाचार्य और बेटे सुचेतन हैं. सुचेतन पहले लड़की थे. बाद में उन्होंने अपना सेक्स चेंज कराया है.
बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 तक यानी 11 साल पश्चिम बंगाल में CPI (M) की सरकार के मुखिया रहे. इससे पहले 1977 से 2000 तक ज्योति बसु के नेतृत्व में CPI (M) की सरकार थी. 34 साल सत्ता में रहने के बाद 2011 में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी को बंगाल की सत्ता से हटाया था.
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का 80 वर्ष की आयु में निधन
बुद्धदेव भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल की औद्योगिक क्रांति के लिए जाना जाता है. वो सही मायनों में 'बंगाली भद्रलोक' (Bengali Gentalman) थे. वो प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स और सिंपल लाइफस्टाइल के उदाहरण भी थे. वो ताउम्र बालीगंज के पाम एवेन्यू स्थित दो बेडरूम वाले फ्लैट में ही रहे. लग्जरी से उनका दूर तक कोई नाता नहीं था.
आइए जानते हैं बुद्धदेव भट्टाचार्य की जिंदगी की 5 कहानियां, जो सही मायनों में उन्हें 'बंगाली भद्रलोक' साबित करती हैं:-
1. नेता से इतर एक कवि, नाटककार और गायक
बुद्धदेव भट्टाचार्य जानेमाने बंगाली वामपंथी कवि सुकांतो भट्टाचार्य के भतीजे थे. 1944 में जन्में भट्टाचार्य की दिलचस्पी राजनीति के साथ-साथ साहित्य, थिएटर, सिनेमा और संगीत तक में थी. वो घंटों कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएं और संगीत सुनते थे. पाब्लो नेरूदा की कविताओं का ज़िक्र करना उनकी रोजमर्रा के कामों में आम बात थी. मंत्री रहते हुए उन्होंने कई नाटक लिखे, जिनका मंचन भी हुआ. आर्थिक उदारवाद लागू करने और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के लिए कुछ कॉमरेड उन्हें 'बंगाली गोर्बाचोव' भी कहते थे.
बुद्धदेव भट्टाचार्य को फिल्मों से खासा लगाव था. कोलकाता में नंदन कल्चरल कॉप्लेक्स के निर्माण के पीछे बुद्धदेव भट्टाचार्य ही थे. इस सेंटर में दुनिया भर की बेहतरीन फिल्मों का कलेक्शन है. यहां ऑस्कर अवॉर्डी सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक जैसी बंगाली फिल्मकारों की फिल्में भी दिखाई जाती रही हैं.
2. सादा जीवन उच्च विचार के सच्चे उदाहरण थे बुद्धदेव दादा
निजी ज़िंदगी में बुद्धदेव भट्टाचार्य हमेशा 'सादा जीवन उच्च विचार' के सिद्धांत पर काम करते थे. वो जिंदगीभर सरकारी खर्चे और तामझाम से दूर रहे. उनके साथी प्रबीर मुखर्जी बताते हैं, "मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी दो कमरों वाले फ्लैट में रहते थे. ज्यादातर मौके पर वो धोती और कुर्ता पहनते. जिससे उनकी बंगाली भद्रलोक की छवि साफ झलकती थी. हालांकि, उन्हें लंबी फिल्टर सिगरेट पीने की आदत थी."
मोदी सरकार ने 2022 में राजनीति में उनके योगदान को देखते हुए बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्मभूषण से सम्मानित करने की घोषणा की थी. लेकिन वामपंथी नेता ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था.
बुद्धदेव भट्टाचार्य:आर्थिक उदारीकरण का समर्थक वामपंथी नेता, जिसने ठुकरा दिया था 'पद्मभूषण'
बुद्धदेव भट्टाचार्य के पास बहुत थोड़ी सेविंग थी. पार्टी में उनके करीबी बिकास (जो कोलकाता के पूर्व मेयर रह चुके हैं) ने बताया, "बुद्धदेव भट्टाचार्य अपनी सैलरी का ज्यादातर हिस्सा पार्टी फंड में जमा करा देते थे. उनके पास थोड़े पैसे रहते थे. पत्नी की सैलरी से घर-परिवार का खर्च चलता था."
3. एगरोल खाना पसंद था, मिर्ची नहीं कर पाते थे बर्दाश्त
पेशे से ग्राफिक डिजाइनर इंद्रोलीना बिश्वास बताती हैं, "मेरे पिता भट्टाचार्य जेठू (अंकल) के घर के पास फास्ट फूड की दुकान चलाते हैं. हमारे दुकान से अक्सर 59 पाम एवेन्या के ग्राउंड फ्लोर में फ्लैट नंबर 1 में ऑर्डर जाता था. बुद्धदेव भट्टाचार्य अक्सर हमारी दुकान में एग रोल का ऑर्डर देते थे. कभी-कभी प्रॉन फाइड राइस और फिश के आइटम भी मंगवाते थे. लेकिन उन्हें मिर्ची पसंद नहीं थी. वो तीखा बिल्कुल भी खा नहीं पाते थे. आखिरी बार उन्होंने हमारी शॉप से डोसा ऑर्डर किया था."
4. 30 साल चलाई उनकी कार
मोहम्मद उस्मान 30 साल तक बुद्धदेव भट्टाचार्य के ड्राइवर रहे हैं. वो 1982 से उनकी कार चला रहे हैं. गुरुवार को बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन के बाद उस्मान ने उनके बेटे सुचेतन भट्टाचार्य से कहा, "सर नहीं हैं. लेकिन मैं हमेशा आपके लिए हूं. मेरा सर के साथ 30 साल का रिश्ता था. वो मुझे बहुत मानते थे. उनके व्यवहार में हमेशा एक अपनापन था."
उस्मान बताते हैं, "उन्हें बिरायनी पसंद थी. हर ईद या दूसरे मौकों पर मैं उनके लिए घर से बिरयानी बनवाकर लाता था. वो बड़े चाव से खाते थे. वो भी मुझे बंगाली खाना और मिष्टी दोई खिलाते थे. उनके जाने के बाद जिंदगी आसान नहीं होगी."
5. बंगाल में औद्योगिक सुधार के सूत्रधार
बुद्धदेव भट्टाचार्य व्यक्तिगत तौर पर मानते थे कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर बंगाल की बस छूट चुकी है. 1960-70 के दशक की नक्सली हिंसा के चलते बंगाल में निवेश भी नहीं रहा. इसे वापस लाने की ज़रूरत है. वे हमेशा लोगों को प्रोत्साहित किया करते थे. हालांकि, जब पश्चिम बंगाल की पुलिस ने नंदीग्राम की जमीन को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं. तब ये सिलसिला थम गया.
स्मृति शेष : औद्योगीकरण के मुद्दे पर भारतीय लेफ्ट को 'राइट' करना चाहते थे बुद्धदेव भट्टाचार्य
प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनकी क्लासमेट रहीं फ़िल्म एक्ट्रेस और डायरेक्टर अपर्णा सेन ने नंदीग्राम में पुलिस कार्रवाई के खिलाफ मीडिया से कहा था, "मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि बुद्धदेव भट्टाचार्य की पुलिस ऐसा कर सकती है." बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बंगाल में उद्योग और निवेश को लाने के लिए नारा दिया था, 'डू इट नाउ...' यानी इसे अभी करो.
भट्टाचार्य ने कृषि आय पर आश्रित पश्चिम बंगाल को अद्यौगिकीकरण की राह पर लाने का रिस्क लिया था. ये उनके राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा रिस्क भी रहा. उद्योग धंधों की स्थापना के लिए उन्होंने मार्क्सवादी सिद्धांतों से समझौता भी किया.
मौत के बाद भी दो लोगों को दे गए रोशनी
बुद्धदेव भट्टाचार्य अपनी आंखें डोनेट करके गए हैं. उनकी कॉर्निया को दो व्यक्तियों में सफलतापूर्वक प्रतिरोपित किया गया है, जिससे उन्हें फिर से रोशनी मिल जाएगी. जिन दोनों व्यक्तियों में कॉर्निया प्रतिरोपित किया गया है, उनमें से एक पुरुष और एक महिला है. दोनों को कॉर्निया की दिक्कत थी.
क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. असीम कुमार घोष ने कहा कि गुरुवार रात को की गई सर्जरी सफल रही. दोनों मरीज अब ठीक हो रहे हैं. उन्होंने भट्टाचार्य के फैसले की प्रशंसा की और इसे एक प्रेरणादायक कार्य बताया.