कोरोनावायरस के नए वेरिएंट Omicron के भारत में तेजी से मामले बढ़ रहे हैं. एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं. इस वेरिएंट पर वक्त के साथ जितना डेटा मिल रहा है, उसके अध्ययन से इसे और समझने की कोशिश की जा रही है. फिलहाल जो पता है वो ये कि केस तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन अभी तक अस्पतालों में मरीजों की संख्या उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है. अधिकतर मामलों में लक्षण भी माइल्ड ही दिख रहे हैं. अभी तक मिले डेटा का हवाला देते हुए कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत संभव है कि हम अभी महामारी के थोड़ा कम चिंताजनक चरण में पहुंच रहे हैं.
Bloomberg की एक रिपोर्ट में कई वैज्ञानिकों और अध्ययनों का हवाला दिया गया है, जिनमें ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच उम्मीद की एक किरण की बात कही गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की इम्यूनोलॉजिस्ट मोनिका गांधी का कहना है कि 'हम अब बिल्कुल अलग चरण में पहुंच गए हैं. वायरस हमेशा हमारे साथ रहेगा, लेकिन मेरी उम्मीद ये है कि यह वेरिएंट इतनी प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर देगा कि इससे महामारी धीरे-धीरे दब जाएगी.'
क्या ओमिक्रॉन माइल्ड है और क्या इसकी बनावट है पीछे की वजह?
ओमिक्रॉन का पता चले एक महीने से कुछ ज्यादा वक्त हो रहा है. सबसे पहला केस साउथ अफ्रीका में मिला था, जहां पर अब ओमिक्रॉन से पैदा हुई कोरोना की चौथी लहर पीक से नीचे आ चुकी है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ओवरऑल ओमिक्रॉन को लेकर जो चीजें हमें पता हैं, उसकी स्थिति आने वाले वक्त में बदल भी सकती है, लेकिन पिछले हफ्ते का डेटा यह दर्शाता है कि कोरोना के खिलाफ अलग-अलग माध्यमों से पैदा हुई अलग-अलग तरह की प्रतिरोधक क्षमता और कई तरह के म्यूटेशन से ये ऐसा वेरिएंट पैदा हुआ है, जो पिछले वेरिएंट्स के मुकाबले कम गंभीर बीमारी पैदा करता है.
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ओमिक्रॉन वेरिएंट में वायरस के स्पाइक प्रोटीन, जिससे कि ये होस्ट सेल को भेदने की कोशिश करता है, उसमें अधिकतर म्यूटेशन पाया गया है. इसके चलते शुरुआती विश्लेषण में सामने आया था कि यह वैक्सीन की प्रतिरोधक क्षमता को भी भेद ले रहा है.
सबसे अहम बात जो सामने आ रही है, वो ये कि कोरोना के पिछले वेरिएंट, खासकर डेल्टा, फेफड़ों पर ज्यादा तेजी से वार करते हैं, लेकिन ओमिक्रॉन में ये बात नजर नहीं आ रही है. कोविड संक्रमण सामान्यतया नाक से शुरू होकर गले में फैलता है. अगर हल्का संक्रमण है तो इससे ऊपरी श्वसन नलिका से ज्यादा कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन अगर ये फेफड़ों तक पहुंच जाता है तब ज्यादा गंभीर लक्षण पैदा होते हैं.
T-Cells से मिल सकती है और सुरक्षा
हालांकि, पिछले हफ्ते में पांच ऐसे अध्ययन सामने आए हैं, जिनमें ऐसा सामने आया है कि ये वेरिएंट फेफड़ों तक पहुंचने या उनपर असर डालने में उतना सक्षम नहीं है, जितना कि पिछले वेरिएंट्स थे. शायद ऐसा वायरस की एनॉटमी बदलने की वजह से है. वहीं, ये भी कहा जा रहा है कि ओमिक्रॉन शरीर के दूसरे हथियार T-cells और B-cells के खिलाफ भी लड़ाई में उतना मजबूत नहीं है.
T-cells वो सेल होती हैं, जो बॉडी में पहले आ चुके वायरस को पहचान कर संक्रमण से पहले ही उसपर हमला करती हैं यानी बॉडी को प्रतिरोधक क्षमता देती हैं. रिसर्च में सामने आया है कि ऐसे लोगों को जिन्होंने वैक्सीन ले ली है या पिछले 6 महीनों में कोविड से संक्रमित हुए थे, संभव है कि उनकी बॉडी में T-cells ओमिक्रॉन को पहचान ले और उसको पहले ही कमजोर कर दे. हालांकि, अभी इसपर और रिसर्च की जरूरत है.