अदालत ने उमर अब्दुल्ला को अलग हुई पत्नी को 1.5 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का दिया निर्देश 

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के पास ‘‘अपनी पत्नी और बच्चों को ‘‘उचित जीवन स्तर’’ प्रदान करने की वित्तीय क्षमता है और उन्हें एक पिता के रूप में अपने कर्तव्यों का त्याग नहीं करना चाहिए.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला को अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर अलग रह रही पत्नी को हर महीने 1.5 लाख रुपये देने का निर्देश दिया.
अदालत ने उन्हें अपने दोनों बेटों की शिक्षा के लिए हर महीने 60-60 हजार रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया.

अदालत का आदेश पायल अब्दुल्ला और दंपति के बेटों की 2018 की निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ याचिकाओं पर आया, जिसमें लड़कों के वयस्क होने तक उन्हें क्रमशः 75,000 रुपये और 25,000 रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता दिया गया था.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के पास ‘‘अपनी पत्नी और बच्चों को ‘‘उचित जीवन स्तर'' प्रदान करने की वित्तीय क्षमता है और उन्हें एक पिता के रूप में अपने कर्तव्यों का त्याग नहीं करना चाहिए.

अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी (उमर अब्दुल्ला) एक साधन संपन्न व्यक्ति है और उसकी वित्तीय विशेषाधिकार तक पहुंच है, जिससे आम आदमी वंचित रह जाता है. हालांकि यह समझ में आता है कि नेता होने के नाते, वित्तीय संपत्तियों से संबंधित सभी जानकारी का खुलासा करना खतरनाक हो सकता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी के पास अपनी पत्नी और बच्चों के लिए संसाधन हैं.''

अदालत ने कहा, ‘‘(यह अदालत निर्देश देती है) याचिकाकर्ता (पायल अब्दुल्ला) के लिए याचिका की तारीख से अंतरिम रखरखाव राशि 75,000 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 1,50,000 रुपये प्रति माह की जाए...परिणामस्वरूप, यह न्यायालय प्रतिवादी को उनकी शिक्षा के उद्देश्य के लिए प्रत्येक पुत्र के लिए 60,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश देता है.''

उमर अब्दुल्ला ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि वह बच्चों के भरण-पोषण का अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और उनकी पत्नी लगातार अपनी वास्तविक वित्तीय स्थिति को गलत बता रही हैं.

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अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बेटे के वयस्क होने से पिता को अपने बच्चों के भरण-पोषण और उनकी उचित शिक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं होना चाहिए और पालन-पोषण तथा पढ़ाई के खर्च का बोझ उठाने वाली मां अकेली नहीं हो सकती.

अदालत ने स्पष्ट किया कि मुआवजे की अवधि उस दिन से शुरू होगी जब बच्चों ने अपने लॉ कॉलेज में दाखिला लिया था, और वहां से स्नातक होने तक जारी रहेगी.न्यायमूर्ति प्रसाद ने टिप्पणी की, ‘‘इस अदालत को यह जानकर दुख हुआ है कि ऐसी कटु कार्यवाही में, माता-पिता खुद को सही साबित करने के लिए अपनी खुशियों को दरकिनार करते हुए अपने बच्चों को अपना मोहरा बनाते हैं.''

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हालांकि, अदालत ने पायल अब्दुल्ला के इस अनुरोध को खारिज कर दिया कि इस स्तर पर, उसके वर्तमान आवास के किराए के भुगतान के लिए राशि बढ़ाई जाए.

याचिकाकर्ताओं द्वारा भरण-पोषण याचिका वर्ष 2016 में दायर की गई थी, इसका उल्लेख करते हुए अदालत ने पारिवारिक अदालत से इसे यथासंभव मुख्यत: 12 महीने के भीतर निपटाने को कहा.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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