'GDP का 1% गरीबों को कैश देने पर हो खर्च, करेंसी छापे सरकार', उदय कोटक की केंद्र को सलाह

उदय कोटक ने NDTV से बातचीत में कहा, 'मेरे विचार से, यही वक्त है कि सरकार, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सपोर्ट के साथ करेंसी छापने का अपना बैलेंस शीट बढ़ाए. वक्त आ गया है कि हम थोड़ा वो भी करें...अगर अब नहीं करेंगे, तो कब करेंगे?'

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कोटक के CEO उदय कोटक ने दिया करेंसी नोट छापने का सुझाव. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

कोरोनावायरस से जूझ रही अर्थव्यवस्था (economy amid covid) को बचाने के लिए सरकार को और करेंसी नोट छापने (printing new money) का बड़ा कदम उठाना चाहिए. भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष और भारत के सबसे बड़े बैंकरों में शामिल उदय कोटक (Uday Kotak) ने सरकार को यह सलाह दी है. कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने NDTV से बातचीत में कहा कि यही वक्त है कि इकोनॉमी को बचाने के लिए सरकार बड़े कदम उठाए. उन्होंने कहा कि सरकार को कैश प्रिटिंग का विस्तार दो भागों में करना होगा- पहला उनके लिए जो संसाधनों के पिरामिड में सबसे नीचे आते हैं, दूसरा महामारी से प्रभावित हुई नौकरियों और सेक्टरों के लिए.

'GDP का 1% गरीबों ेके हाथों में पैसे देने पर खर्च हो'

कोटक ने कहा, 'मेरे विचार से, यही वक्त है कि सरकार, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सपोर्ट के साथ करेंसी छापने का अपना बैलेंस शीट बढ़ाए. वक्त आ गया है कि हम थोड़ा वो भी करें...अगर अब नहीं करेंगे, तो कब करेंगे?' गरीब वर्ग के हाथों में डायरेक्ट पैसे देने को लेकर उन्होंने सलाह दी कि सरकार को इसके लिए जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी या 1 लाख करोड़ से 2 लाख करोड़ के बीच खर्च करना चाहिए. इससे निचले स्तर पर उपभोग बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. उन्होंने गरीबतम वर्ग के लिए मेडिकल बेनेफिट्स की भी मांग की.

महामारी की दूसरी लहर ने पहली लहर से रिकवर हो रही अर्थव्यवस्था पर फिर से हमला किया है. अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे पूरी तरह खोला जा रहा था, लेकिन मार्च में फिर से बढ़ते मामलों के चलते फिर से नए प्रतिबंध लगाने पड़े, जिससे कि बहुत से सेक्टरों और बिजनेस पर ब्रेक लग गया है.

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'बिजनेसेस के लिए निकालने होंगे रास्ते'

कोटक ने कहा कि दो तरीके के बिजनेस हैं- पहला जो कोविड के चलते बदलाव से गुजर रहे हैं और संभव है कि महामारी के बाद संभल जाएं, लेकिन दूसरे ऐसे हैं, जिनके सामने कोविड ने संरचनात्मक चुनौतियां पैदा की हैं, बिजनेस मॉडल इतना बदल गया है कि अब वो काम के नहीं रह गए हैं. उन्होंने कहा कि 'पहले तरह के बिजनेस के लिए जो किया जा सकता है करना चाहिए. दूसरा वाला मुश्किल है. अगर वो बदली हुई दुनिया में नहीं चल सकते हैं तो हमें ऐसा उचित हल निकालना होगा कि उनकी भी मदद हो सके, लेकिन आप न टिकने वाले बिजनेस को बहुत सपोर्ट करके इसका बोझ इकोनॉमी पर लंबे समय तक के लिए नहीं डाल सकते.'

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उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार ने पिछले साल संकट में चल रहे सेक्टरों के लिए जो क्रेडिट स्कीम का ऐलान किया था. उसमें 3 लाख करोड़ की स्कीम को बढ़ाकर 5 लाख करोड़ का किया जाए. वहीं, इसमें और भी सेक्टरों को जोड़ा जाए.

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