कोरोना से रोजी-रोटी पर संकट : नौकरी जाने के बाद कर्ज पर हो रहा गुजारा, खत्म हो रही जमापूंजी

पिछले साल कोविड की पहली लहर और लॉकडाउन के दौरान बहुत लोगों की नौकरियां चली गईं. थिंक टैंक CMIE जो नौकरियां जाने के डेटा छापता रहता है. उनके अनुमान के मुताबिक अप्रैल 2020 में ही 11 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई.

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नई दिल्ली:

देश भर से लोगों की नौकरियां खत्म होने की खबरें सुनने को मिलती रही हैं. नौकरियां जाने के बाद साल भर से ज़्यादा का अर्सा गुजर चुका है, लेकिन नौकरियों का बाजार ठंडा पड़ा है. लोगों की बरसों से जुटाई जमा-पूंजी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है और कई लोग कर्ज पर गुजारा कर रहे हैं. खाने तक में कटौती करने तक पर लोग मजबूर हैं. 49 साल के देवेंद्र परदेशी मुंबई के एक फ्लोरिंग शोरूम में सेल्स मार्केटिंग का काम करते थे. पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान इनकी नौकरी चली गई. उसके बाद लाख कोशिशों के बाद दूसरी नौकरी नहीं ढूंढ़ पाए. उनका कहना है कि अभी घर चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है. घर में राशन नहीं है, तेल नहीं है. बहुत दिक्कतें होती हैं, किससे कहूं और किससे ना कहूं.

देवेंद्र ने बताया, 'मुझे 20 हजार रुपए हर महीने सैलरी मिलती थी. लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया और मेरे बॉस ने मुझे अप्रैल से जून तक हर महीने पांच-पांच हजार रुपए दिए. जून में उनके पिताजी की कोरोना की वजह से मौत हो गई. तब उन्होंने कहा कि अब वो और ज्यादा नहीं कर सकते और कहा कि दूसरी नौकरी ढूंढ लूं. मैं पिछले एक-डेढ़ साल से काफी कोशिश कर रहा हूं, लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिला.'

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पिछले साल कोविड की पहली लहर और लॉकडाउन के दौरान बहुत लोगों की नौकरियां चली गईं. थिंक टैंक CMIE जो नौकरियां जाने के डेटा छापता रहता है. उनके अनुमान के मुताबिक अप्रैल 2020 में ही 11 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई. लेकिन इस डेटा में यह बात नहीं आती कि बहुत सारे लोग अभी भी बेरोजगार हैं. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में चल रही एक स्टडी में पाया गया कि भारत में अप्रैल 2020 में नौकरियां गंवाने वाले 27 फीसदी लोगों को अप्रैल 2021 में रोजगार नहीं मिला था. 

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परदेसी परिवार का गुजारा अब कर्ज पर हो रहा है. पत्नी एक एनजीओ में काम करती हैं, जहां से कुछ पैसे मिल जाते हैं. और निजी वित्तिय कंपनी में काम करने वाली बड़ी बेटी भी मदद कर देती है. इनका कहना है कि राशन की दुकान से बहुत खराब किस्म के चावल खरीद काम चला रहे हैं. बेहतर किस्म का चावल मेहमानों और खास दिनों के लिए बचाकर रखा है.

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बच्चों के लिए जो मंसूबे बनाए थे, वो फिलहाल ताक पर रख दिए हैं. छोटी बेटी इंटीरियर डिजाइनिंग में डिग्री करना चाहती है. देवेंद्र ने बताया कि बेटी की इस डिग्री के लिए करीब 1.5 लाख रुपए फीस लगेगी. इसलिए मैंने उससे कहा कि अभी कुछ और कर लो. तब कुछ इंतजार करो. 

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परदेशी परिवार जैसे हजारों ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार के लोग हैं, जिनकी बेहतर जिंदगी का सपना खराब आर्थिक हालात और घटती नौकरियों ने चूर-चूर कर दिया. फिलहाल उम्मीद की कोई किरण भी नजर नहीं आती. महाराष्ट्र में बेरोजगारी की दर इस साल मार्च में 3.5% थी जो मई में बढ़कर 5.7% तक आ गई. वैसे पिछले साल अप्रैल में बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा 20.9% थी.

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महाराष्ट्र के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री नवाब मलिक ने बताया, 'पूरी इकॉनमी ठप है. मुंबई में सर्विस सेक्टर में काम करने वाले लोग बड़े पैमाने पर हैं. लॉकडाउन की वजह से बड़े स्तर पर लोगों के रोजगार गए हैं. सरकार ने जितना संभव था, उतना किया. लेकिन राज्य सरकार की भी अपनी एक सीमा है.' साथ ही नवाब मलिक ने बताया कि वो जल्द ऐसी योजनाएं लाएंगे, जिससे नौकरियां दी जा सकें. इसके लिए कंपनियां 25% ज़्यादा नौकरियां 'On Job Training' के तहत निकालेंगी. और 5,000 रुपये तक का 50 फ़ीसद वेतन सरकार देगी.

ये योजना अगस्त में आएगी, लेकिन एक महीने का वक्त भी बहुत होता है. बहुत से लोग काफी परेशान हैं.

मुंबई की अम्बुजवाड़ी इलाके की झुग्गी बस्ती में रहने वाले मोहम्मद जमील अख्तर शेख पिछले साल एक कपड़ा बनाने की फैक्टीर में दर्जी का काम करते थे. वह जिस फैक्ट्री में काम कर रहे थे, वो अब बंद हो गई है. तब से इन्हें कोई और काम नहीं मिला. जमील के परिवार का दारोमदार अब 11वीं में पढ़ रहे बेटे पर है, उसकी जब क्लास नहीं होती तो निर्माण कार्य से रोजाना 200 से 300 रुपये कमा लेता है. एक NGO में काम कर रही बेटी को हर दूसरे महीने करीब 2 हजार रुपए मिल जाते हैं. कहीं से आमदनी नहीं हो रही है, इसलिए घर चलाने के लिए मोटी ब्याज दरों पर जमील को मजबूरी में साहुकरों से कर्ज लेना पड़ा है.

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