मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जेल में बंद शिवसेना नेता संजय राऊत ने 8 अगस्त को सत्र न्यायालय में अपनी मां को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसे आज उनके ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है. संजय राउत ने मां को लिखी चिट्ठी, कहा कि आज राज्य षडयंत्रकारियों के हाथ लग गया है. वे शिवसेना के अस्तित्व और महाराष्ट्र के गौरव को कुचलना चाहते हैं. दो पन्नो की चिट्ठी इस प्रकार है.
प्रिय मां,
जय महाराष्ट्र!
कई वर्षों तक पत्र लिखने का अवसर नहीं मिला. रोज सामना के लिए हेडलाइन, कॉलम लिखे, लेकिन जब टूर पर नहीं होता तो आप और मैं रोज मिलते थे. जब यात्रा पर रहता था. तब आप से सुबह और शाम फोन पर बात कर ता था. इसलिए आपको एक विस्तृत पत्र लिखना छूट गया था. अब केंद्र सरकार ने पत्र लिखने का मौका दिया है.
अभी-अभी मेरी ईडी हिरासत समाप्त हुई है. मैं आपको यह पत्र न्यायिक हिरासत में जाने से पहले कोर्ट के बाहर बेंच पर बैठे हुए लिख रहा हूं. आपको पत्र लिखे हुए कई साल हो गए हैं.रविवार (1 अगस्त) को जब 'ईडी' के अधिकारी घर में दाखिल हुए तो आप माननीय बालासाहेब ठाकरे की फोटो के नीचे मजबूती से बैठी थीं. जब आपका कमरा और मंदिर, साथ ही रसोई में नमक, मसाले और आटे के बक्से की तलाशी ली, तब भी आप सब कुछ त्याग के भाव से सहन कर रही थीं.आपको शायद यकीन हो गया था कि यह घटना आपके साथ होने वाली है.लेकिन शाम को जब ईडी वाले मुझे ले जाने लगे तब तुमने मुझे गले से लगा लिया और रो पड़ी. आपका गला भर आया. कई शिवसैनिक बाहर नारे लगा रहे थे. उन दहाड़ में भी आपका दर्द मेरे मन में घुस गया. आपने कहा 'जल्दी वापस आ जाओ'.
तुमने मुझे खिड़की से हाथ दिखाया. ठीक वैसे ही जैसे आप हर दिन किसी 'मैच' में या टूर पर करते हैं. उस कठिन परिस्थिति में भी आपने अपने आंसू रोक लिए और बाहर जमा हुए शिवसैनिकों को हाथ दिखाया. आपका हाथ तब तक ऊपर था जब तक मुझे ले जाने वाली कार बाहर नहीं आ गई.
मां, मैं अवश्य वापस आऊंगा. महाराष्ट्र और हमारे देश की आत्मा को इतनी आसानी से नहीं मारा जा सकता. देश के लिए लड़ रहे हजारों सैनिक सीमा पर खड़े हैं और महीनों घर नहीं आते. कुछ कभी नहीं आते. लड़ाई में ऐसा ही होता है. मैं भी अन्याय के आगे नहीं झुक सकता, शिवसेना के महाराष्ट्र के दुश्मन. मैं अन्याय के खिलाफ लड़ रहा हूं. इसलिए मुझे तुमसे दूर जाना पड़ा. क्या मुझे आपसे ही ये आत्मबल नही मिला ?
भुजबल, राणे के शिवसेना छोड़ने के बाद भी मैंने आपका गुस्सा देखा है. अब फिर जब शिंदे नाम का एक गुट फूट पड़ा और उद्धव ठाकरे पर हमला करने लगा, ''कुछ करो, शिवसेना को बचाओ!'' आप ही थे जिन्होंने ऐसा कहा था. "ये लोग क्यों टूट गए? वे क्या चाहते थे?
" आप भी खबर देखकर ऐसा सवाल पूछ रही थीं. शिवसेना को बचाने के लिए हमें लड़ना होगा. वीर शिवाजी हर बार पड़ोसी के घर क्यों पैदा होते हैं? ये है प्रश्न है.मैंने आपसे शिवसेना का बाल कडू और स्वाभिमान लिया. मैंने तुमसे धनुष सीखा. यह आप ही थे जिन्होंने हमारे मन में यह बात बैठा दी कि हमें कभी भी शिवसेना और बालासाहेब के साथ बेईमानी नहीं करनी चाहिए. तो अब उन मूल्यों के लिए लड़ने का समय आ गया है और इसमें 'संजय' कमजोर हो जाए, अगर वह आत्मसमर्पण कर दे तो हम बाहर क्या चेहरा दिखाएंगे? तुमने मुझे मेरे घुटनों पर स्वीकार नहीं किया होता.
'ईडी', 'इनकम टैक्स' आदि के डर से कई विधायकों ने शिवसेना छोड़ दी. मैं बेईमानों की सूची में नहीं जाना चाहता. किसी को दृढ़ रहना होगा. मुझमें वह साहस है. आदरणीय बालासाहेब और आपने वह साहस दिया. सब को पता है. मुझ पर झूठे और झूठे आरोप लगाए गए. यहां मेरे सामने कई लोगों के आतंक और दबाव में बंदूक की नोक पर मेरे खिलाफ फर्जी बयान दिए जा रहे हैं. अप्रत्यक्ष रूप से ठाकरे का समर्थन छोड़ने का सुझाव दिया गया है. तिलक और सावरकर समेत कई लोगों को इस तरह का अत्याचार सहना पड़ा. कई शिवसैनिकों ने पार्टी के लिए अपने परिवार के सदस्यों पर तुलसीपत्र लगाया, प्रतिबंधित हो गए, अपनी जान गंवा दी। तो मेरे जैसा उनका नेता कैसे युद्ध के मैदान से भाग जाए जब वही पार्टी संकट में हो? ? उद्धव ठाकरे मेरे प्रिय मित्र और सेनापति हैं. इतने कठिन समय में अगर मैं उन्हें छोड़ दूं तो कल बालासाहेब को क्या चेहरा दिखाऊंगा?
पता होना
आपका अपना,
संजय (बंधू)
अगस्त 8 सत्र न्यायालय