- मद्रास HC ने कहा, 18 वर्ष की उम्र होने में 19 दिन पहले सहमति से यौन संबंध पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध नहीं
- निचली अदालत ने कोयंबटूर के मामले में प्रेमी को पांच वर्ष कैद की सजा सुनाई थी, जिसे उच्च न्यायालय ने पलटा
- न्यायमूर्ति इलांथिरायन ने कहा, पीड़िता की उम्र और सहमति के आधार पर आरोपी के खिलाफ IPC धारा 363 लागू नहीं होती
मद्रास उच्च न्यायालस ने एक फैसले में कहा है कि 18 साल होने में सिर्फ 19 दिन पहले यदि एक लड़की के साथ कोई व्यक्ति सहमति से यौन संबंध बनाता है कतो वह पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है. कोयंबटूर की एक निचली अदालत ने इस शख्स को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी.
HC ने पलटा निचली अदालत का फैसला
निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए, न्यायमूर्ति जीके इलांथिरायन ने कहा कि लड़की अपने कृत्य के परिणामों को समझने में सक्षम थी और घटना के समय उसकी उम्र संदेह से परे साबित नहीं की जा सकती. जज ने कहा, सबूतों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता पीड़िता को अपने साथ ले गया या उसे अपने साथ भागने के लिए फुसलाया. इसलिए, अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 के तहत आरोप नहीं बनता. इसके अलावा, पीड़िता के परिवार वालों को पता था कि पीड़िता का अपीलकर्ता के साथ प्रेम संबंध था."
पोक्सो एक्ट के तहत पाया गया था दोषी
कोयंबटूर की पोक्सो कोर्ट द्वारा सुनाए गए आदेश के खिलाफ आपराधिक अपील दायर की गई थी. जिसमें पीड़िता के प्रेमी को उसके घर और बाद में अपने दादा-दादी के घर पर उसके साथ यौन संबंध बनाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. इसी तरह के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी करने वाले बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति इलांथिरायन ने कहा कि मुकदमे में कहीं भी पीड़िता ने यह गवाही नहीं दी कि यौन संबंध जबरन और उसकी सहमति के बिना बनाए गए थे, इस प्रकार अपील स्वीकार कर ली गई.
2020 का मामला
यह घटना 2020 की है जब एक कॉलेज सेकेंड ईयर की लड़की ने अपने बॉयफ्रेंड को उस वक्त घर बुलाया था, जब उसके माता-पिता घर पर नहीं थे. इस दौरान दोनों के बीच यौन संबंध बने थे और इसके बाद दोनों लड़के के दादा-दादी के घर भाग गए थे क्योंकि लड़की के माता-पिता उसकी शादी अपने 40 साल के एक रिश्तेदार से कराने वाले थे, जो पहले से ही शादीशुदा था. कोयंबटूर की पोक्सो कोर्ट ने इस मामले में लड़के को दोषी ठहराते हुए उसे 5 साल की कठोर सजा सुनाई थी.
अपीलकर्ता को किया गया बरी
अपीलकर्ता को बरी करते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा भरा गया जमानत बांड, यदि कोई हो, रद्द माना जाएगा और वसूल की गई जुर्माना राशि, यदि कोई हो, वापस की जानी चाहिए.