एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अभी कांग्रेस का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने बयान जारी तो किया है, लेकिन निजी हैसियत से. वहीं तेलंगाना और कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है. इन मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों के चुनावी गणित को साधने के लिए इस फैसले का स्वागत किया है. फैसले के पक्ष या विपक्ष में खड़ा होने के लिए कांग्रेस में अभी भी मंथन का दौर जारी है. यह हाल केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी का भी है, जबकि उसके दो सहयोगी इस फैसले को लेकर आपस में ही लड़ रहे हैं. कांग्रेस आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से आगे बढ़ाने की मांग पिछले कुछ समय से कर रही है.
कांग्रेस में विचार-विमर्श
कांग्रेस नेताओं की यह बैठक अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के निवास पर हुई.इसमें सोनिया, राहुल, केसी वेणुगोपाल के अलावा मुकुल वासनिक, कुमारी शैलजा, पीएल पुनिया, उदित राज और राजेश लिलोठिया जैसे दलित नेता भी मौजूद थे.कांग्रेस के अधिकांश दलित नेता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. बैठक में सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कानूनी पहलुओं को विस्तार से समझाया. सुप्रीम कोर्ट के वकील और राज्य सभा सदस्य विवेक तन्खा भी इस बैठक में मौजूद थे. सिंघवी और तन्खा की राय थी कि यह एक राजनीतिक मसला है, इसलिए इसे राजनीतिक तौर पर ही लड़ा जाना चाहिए.इसके बाद बैठक में पार्टी के दूसरे नेताओं और इससे जुड़े विभिन्न पक्षों से विचार-विमर्श करने का फैसला किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इस मामले पर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों से विचार-विमर्श करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप्पी
देश के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में इस मुद्दे पर राय बंटी हुई है. दलितों की राजनीति करने बसपा, लोजपा, आरपीआई (अठावले) आदि ने इस फैसले का विरोध किया है. पासवान ने तो इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की भी बात कही है.
इस साल कराए गए लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से कांग्रेस उत्साहित है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लगातार आरक्षण और जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया है. उनके इसको लेकर लगातार सरकार पर हमलावर रहे हैं. संसद के जारी मानसून सत्र के दौरान भी राहुल ने यह मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि हम जातिय जनगणना कराकर रहेंगे.
क्या मांग कर रही है कांग्रेस
दरअसल कांग्रेस इन मुद्दों को उठाकर एससी-एसटी और ओबीसी का समर्थन हासिल करना चाहती है. कांग्रेस पिछले कुछ समय से इस बात की मांग कर रही है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को और बढ़ाए. इसके अलावा उसकी यह भी मांग रही है कि एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण से जुड़े सभी कानूनों को सरकार संविधान की नौवीं सूची में डाले, जैसा 1994 में इस संबंध में तमिलनाडु के कानून के साथ किया गया था. कुछ ऐसी ही मांग बीजेपी की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड भी कर रही है.वो बिहार में इन वर्गों को दिए गए 65 फीसदी आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवाने की मांग कर रही है. हालांकि इस तरह के कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालना इनकी हिफाजत की गारंटी नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में दिए एक फैसले में कहा था कि इस तरह के कानूनों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है. लेकिन सरकार संविधान संशोधन बिल के जरिए 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर इसका समाधान कर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को सुनाए अपने फैसले में कहा था कि राज्य एससी-एसटी की सूची में सब कैटेगरी बना सकते हैं. अदालत का कहना था कि इसको लेकर कोई संवैधानिक बाधा नहीं है. सात जजों वाले एक संविधान पीठ ने 6 बनाम एक के बहुमत से यह फैसला सुनाया था.
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