- गुना में कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह के जिलाध्यक्ष नियुक्ति को लेकर गुस्से में हैं
- दिल्ली एआईसीसी ने 71 जिलाध्यक्षों की सूची जारी की, जिसमें कई बड़े नेताओं और पूर्व मंत्रियों के नाम शामिल हैं
- राहुल गांधी ने जिलाध्यक्षों की ताकत बढ़ाने पर जोर दिया था, लेकिन सूची में ताकतवर नेताओं को ही स्थान मिला है
शनिवार की रात को गुना की सड़कों पर कुछ कांग्रेसी विधायक पूर्व मंत्री जयवर्द्धन सिंह को जिलाध्यक्ष बनाये जाने के विरोध में उतर आये.हैरनी की बात ये रही कि विरोध करने वाले जयवर्द्धन के ही समर्थक थे, इनकी नाराजगी इस बात को लेकर थी कि इतने बड़े कद के नेता को जिलाध्यक्ष क्यों बना दिया, जबकि प्रदेश के कम से कम दस जिले ऐसे हैं, जिनमें उनकी मर्जी के बिना पार्टी का कोई फैसला नहीं होता. जिलाध्यक्ष बनने के इच्छुक कार्यकर्ताओं के आवेदनों और दूसरी अर्जियों से उनके घर दफ्तर भरे रहते हैं.
दिल्ली एआईसीसी ने जारी की 71 जिलाध्यक्षों की लिस्ट
बता दें कि जयवर्द्धन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय के पुत्र हैं और 2018 की कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, लेकिन शनिवार शाम जब दिल्ली एआईसीसी से 71 जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी हुई तो इसमें चौंकाने वाला नाम सिर्फ जयवर्द्धन ही नहीं बल्कि, कभी प्रदेश अध्यक्ष और सीएम फेस की चर्चा में रहने वाले ओंकारसिंह मरकाम सहित कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों का भी रहा.
कांग्रेस के फैसले रहे हैं प्रेडिक्टेबल
राजनीति में पिछले कुछ सालों से अपने फैसलों के जरिए चौंकाने का स्टाइल बीजेपी का रहा है, जिससे उसकी छवि सरकार और संगठन दोनों जगह फैसलों को लेकर एक अनप्रिक्टेबल वाली बन गई है. एमपी में पिछले विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार चुनने से लेकर सीएम की ताजपोशी तक ये छवि दिखी है, लेकिन कांग्रेस में हमेशा से ऐसा नहीं रहा है, अमूमन संगठन से जुड़े फैसले प्रेडिक्टेबल ही रहे हैं, लेकिन इस बार जिलाध्यक्ष सूची के जरिये कांग्रेस ने शॉक देने की कोशिश की है, जिसका अंदाजा शायद प्रदेश की राजनीति में न तो नेताओं और न ही राजनीति पर नजर रखने वालों ने लगाया था.
क्या रणनीति हो सकती है?
पहली बात तो यही है कि संगठन को जमीन पर मजबूत बनाने के लिए बड़े नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया गया है, ताकि जिलों के संगठन सक्रिय रहें और कार्यकर्ता एकजुट रहें, लेकिन इस फैसले का दूसरा पहलू ये है कि जो लोग संगठन में पद के लिए आस लगाए बैठे थे वो हतोत्साहित होंगे, क्योंकि बड़े कद का नेता जब जिला स्तर पर काम करेगा तो जिला स्तर के नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित जरूर होंगे.
राहुल गांधी की सहमति से हुआ फैसला?
संगठन सृजन अभियान में कुछ समय पहले जब राहुल गांधी एमपी आए थे, तब उन्होंने पार्टी के फैसलों में जिलाध्यक्षों की राय को तवज्जो देने पर जोर दिया था. जिलाध्यक्ष की ताकत बढ़ाने की बात उन्होंने कही थी, लेकिन सूची देखकर लग रहा है कि पार्टी ने ताकतवरों को ही जिलाध्यक्ष बना दिया. ऐसे में सवाल ये है कि क्या संगठन सृजन में कार्यकर्ताओं को अहमियत देने वाली बात सिरे चढ़ेगी.
क्या जीतू पटवारी ने समकक्षों को ठिकाने लगाया?
प्रदेश के जितने बड़े नेता जिलाध्यक्ष की सूची में शामिल हैं, उनमें ज्यादातर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के समकालीन और समकक्ष रहे हैं. समय-समय पर ये बात भी आती रही है कि पटवारी इस वजह से कई बार अपने फैसले नहीं ले पाते या अपनी बातों को संगठन में अमल नहीं करवा पाते. पार्टी के इस फैसले से एक ही तीर से कई निशाने उन्होंने साध लिए हैं, मतलब अब जिलों में बड़े नेताओं को परफॉर्म करके दिखाना होगा, जिससे ये भी तय हो जाएगा कि वो सिर्फ नाम के बड़े नेता हैं या जमीन पर संगठन को भी मजबूत कर सकते हैं.
क्या जिलों में पावर सेंटर बन जाएंगे ?
अभी तक जिलों में एक ही कद के कई नेता होते हैं, जो अपने को आगे रखने के लिए होड़ भी करते हैं. जैसे उज्जैन में महेश परमार तेजतर्रार विधायक हैं लेकिन अभी तक स्थानीय संगठन में दूसरे नेताओं का भी दबदबा रहता था, पर जिले की कमान मिलने के बाद महेश परमार जैसे 6 और विधायक जो जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं और भी ज्यादा मजबूत होंगे. 11 पूर्व विधायकों के केस में भी ये स्थिति हो सकती है. ऐसे में जिलों में पावर सेंटर भी बन जाएंगे.
क्या टिकट वितरण का राहुल गांधी फॉर्मूला है वजह?
अब सवाल ये है कि जो नेता मंत्री, विधायक या प्रदेश संगठन के बड़े पदों पर रह चुके हैं, वो जिलाध्यक्ष बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए. क्या "समर्थकों" की तरह उन्होंने भी आलाकमान से "डिमोशन" की बात नहीं कही या फिर इन नेताओं को ये भरोसा है कि राहुल गांधी ने सभी स्तर के चुनावों में टिकट बांटने का अधिकार जिलाध्यक्ष को देने की बात कही है, जो सच होगी.
फिलहाल तो कांग्रेस का ये शॉकर खुद उसके ही कार्यकर्ताओं को झटका दे गया है और जीतू पटवारी का वो सोशल मीडिया पोस्ट उन्हें सदमे से उबार नहीं पा रहा है, जिसमें उन्होंने चयन से वंचित कार्यकर्ताओं को नई जिम्मेदारी देने की बात कही है.
(कपिल शर्मा की रिपोर्ट)