- कांग्रेस ने बिहार चुनाव में 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जिनमें 56 पुरानी और 5 नई सीटें शामिल हैं
- टिकट बंटवारे में कांग्रेस ने पिछली हार को ध्यान में रखते हुए स्ट्राइक रेट पर खास जोर दिया है
- अंतिम समय में दरभंगा और सुपौल सीटों के उम्मीदवार बदले गए जिनके कारण विवाद और टिकट वापसी की स्थिति उत्पन्न हुई
कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इनमें से 56 पुरानी सीटें हैं जिनपर पार्टी 2020 विधानसभा चुनाव में भी लड़ चुकी है. कांग्रेस ने जो 14 सीटें छोड़ी हैं, उनमें से दो पर पिछली बार उसने जीत दर्ज की थी. इन दो के अलावा भी पार्टी ने अपने तीन विधायकों की टिकटें काटी हैं. कांग्रेस के टिकट बंटवारे में सर्वे पर काफ़ी जोर दिया गया, लेकिन उम्मीदवारों के चयन में पार्टी कोई बड़ा संदेश नहीं दे पाई. फैसले देर से हुए फिर उन्हें पलटने से विवाद हुआ. कांग्रेस ना तो आरजेडी से मजबूत सीटें हासिल कर पाई ना ही फ्रेंडली फाइट को टाल पाई. छोटी पार्टियां तक उसे आंख दिखा रही हैं, ऊपर से अपने नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं, वो अलग.
स्ट्राइक रेट पर ध्यान
सीट शेयरिंग और टिकट बंटवारे में कांग्रेस का ध्यान स्ट्राइक रेट पर था. पिछली बार 70 सीटों में से केवल 19 जीत पाने के कारण कांग्रेस की काफ़ी किरकिरी हुई थी. बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने टिकट बंटवारे में आरजेडी का दबाव कांग्रेस पर हावी होने नहीं दिया. लेकिन माना जा रहा है उनके सख्त रुख के कारण ही कांग्रेस को 60 में 10 सीटों पर फ्रेंडली फाइट का सामना करना पड़ रहा है.
आखिरी वक्त में बदले 2 उम्मीदवार
कांग्रेस ने उम्मीदवारों के ऐलान में भी काफी देर की और अंतिम समय में उम्मीदवारों के नाम बदले. पहले दरभंगा की जाले सीट पर कांग्रेस ने नौशाद को टिकट दिया बाद में नामांकन खत्म होने के कुछ घंटे पहले आरजेडी नेता ऋषि मिश्रा को अपना सिंबल दे दिया. वही कहानी सुपौल में दुहराई गई. रोजगार को लेकर देश भर में आंदोलन से मशहूर हुए अनुपम को कांग्रेस ने दो दिन पहले सुपौल से सिंबल दे दिया था, लेकिन नामांकन के अंतिम दिन उनकी जगह मिन्नत रहमानी को टिकट थमा दिया.
क्या था विवाद
दरअसल, राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जाले में नौशाद के मंच से ही एक लड़के ने पीएम मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. इसको लेकर बीजेपी ने खूब बवाल किया था. विवाद से बचने के लिए नौशाद का टिकट बदला गया. हालांकि, सवाल उठता है कि फिर टिकट दिया ही क्यों गया था? इसी तरह अनुपम को टिकट मिलने के बाद अचानक सोशल मीडिया पर उनके पुराने पोस्ट वायरल होने लगे जिसमें उन्होंने गांधी परिवार और कांग्रेस पर निशाना साधा था. नतीजा हुआ कि अनुपम का टिकट कट गया, जबकि ख़ुद राहुल गांधी ने उनकी टिकट पर मुहर लगाई थी.
उम्मीदवार की सीट बदली
टिकट बंटवारे में कांग्रेस का नया कारनामा तब सामने आया, जब उसने युवा नेता तौकीर आलम को दो दिन पहले उनकी पुरानी सीट प्राणपुर (कटिहार) से टिकट दिया. लेकिन नामांकन के अंतिम दिन जब उम्मीदवारों की सूची जारी हुई, तो तौकीर की सीट बदल कर बगल की बरारी कर दी गई. आरजेडी ने इस बार बरारी छोड़ कर प्राणपुर से अपना उम्मीदवार उतारा है.
सूत्रों के मुताबिक, टिकट बंटवारे में जमीनी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई. जिन विधायकों की टिकट कटी उसके पीछे पार्टी की अंदरूनी सियासत को वजह बताया जा रहा है. बड़े अंतर से चुनाव हारने वालों को टिकट दिया गया, जबकि पिछली बार नजदीकी मुक़ाबले में हारने वाले कुछ नेताओं की केवल इसलिए उपेक्षा की गई, क्योंकि वो प्रभारी के साथ तालमेल नहीं बिठा पाए. बेतिया और बिहार शरीफ सीट पर कोटा पूरा करने के चक्कर में मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए, जबकि दोनों नेता असल में दूसरी सीटों से टिकट मांग रहे थे.
टिकट बंटवारे का सामाजिक समीकरण
कांग्रेस ने सामान्य वर्ग से 20 और पिछड़ी जातियों से 20 उम्मीदवार उतारे हैं. इसके अलावा 10 मुस्लिम, 10 अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति समाज से टिकट दिया है. कांग्रेस ने पिछली बार के मुक़ाबले पिछड़ी जातियों को ज़्यादा टिकटें दी हैं.
नई सीटों का लेखा-जोखा
कांग्रेस इस बार जिन 4 नई सीटों पर लड़ रही है, उनमें से 3 (कुम्हरार, बरारी और बिहारशरीफ) उसे आरजेडी से मिली हैं. इन सब पर पिछली बार एनडीए को जीत मिली थी, लेकिन कांग्रेस ने अपनी जीती हुई सीट (महाराजगंज) आरजेडी के लिए छोड़ दी. इसके बावजूद दोनों दलों के बीच पांच सीटों पर दोस्ताना मुकाबला हो रहा है. कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन की नई पार्टी आईआईपी के लिए भी एक जीती हुई सीट (जमालपुर) छोड़ दी है. बावजूद इसके आईआईपी ने भी कांग्रेस के सामने एक सीट (बेलदौर) पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है.
इसके अलावा कांग्रेस बेगूसराय जिले की बछवाड़ा सीट पर भी इस बार लड़ रही है, जिसे सीपीआई अपनी सीट मानती है. इस सीट की वजह से तीन अन्य सीटों पर सीपीआई और कांग्रेस में लड़ाई देखने को मिल रही है. चुनाव आयोग द्वारा बिहार में वोटर लिस्ट ठीक करने की प्रक्रिया (SIR) के ख़िलाफ़ पूरे बिहार में यात्रा निकाल कर राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया था. लेकिन अब प्रदेश कांग्रेस में संवादहीनता की स्थिति है. जाहिर है चुनाव में कांग्रेस के सामने चौतरफा चुनौती है.