मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने पश्चिम बंगाल में बाढ़ की स्थिति पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) को एक और पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि दामोदर घाटी निगम (Damodar Valley Corporation) ने उनकी सरकार से परामर्श किए बिना अपने जलाशयों से पानी छोड़ दिया, जिससे राज्य के कई जिले जलमग्न हो गए. प्रधानमंत्री को लिखे ममता के पिछले पत्र का जवाब देते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने कहा था कि राज्य के अधिकारियों को हर चरण में डीवीसी के जलाशयों से पानी छोड़े जाने के बारे में सूचित किया गया था, जो एक बड़ी आपदा को रोकने के लिए आवश्यक था.
जल आयोग के प्रतिनिधियों के निर्णय एकतरफा : ममता
उन्होंने आरोप लगाया, “भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय जल आयोग के प्रतिनिधि सभी अहम फैसले आम सहमति के बिना एकतरफा रूप से लेते हैं.”
ममता ने दावा किया कि कभी-कभी राज्य सरकार को बिना किसी नोटिस के पानी छोड़ दिया जाता है और उनकी सरकार की राय का सम्मान नहीं किया जाता है.
यह पत्र रविवार को सार्वजनिक किया गया था.
बाढ़ से राज्य में 50 लाख लोग प्रभावित : ममता बनर्जी
मोदी को 20 सितंबर को लिखे पत्र में ममता ने दावा किया था कि राज्य में 50 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. उन्होंने बड़े पैमाने पर मची तबाही से निपटने के लिए प्रधानमंत्री से केंद्रीय धनराशि को तुरंत मंजूरी देने और जारी करने का आग्रह किया था.
पाटिल ने अपने पत्र में डीवीसी के जलाशयों से पानी छोड़े जाने के कारण राज्य में आई बाढ़ के बारे में मुख्यमंत्री की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की.
उन्होंने कहा कि पानी छोड़ने का जिम्मा दामोदर घाटी जलाशय विनियमन समिति (डीवीआरआरसी) पर होता है, जिसमें केंद्रीय जल आयोग, पश्चिम बंगाल, झारखंड और डीवीसी के प्रतिनिधि शामिल हैं.
पाटिल ने स्पष्ट किया कि 14 से 17 सितंबर तक भारी बारिश के कारण पश्चिम बंगाल के अधिकारियों के अनुरोध पर मैथन और पंचेत जलाशयों से पानी छोड़े जाने की दर में 50 प्रतिशत की कटौती की गई थी.
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