Dharali Disaster: धराली में बादल नहीं फटा... तो फिर कैसे आया मलबे का सैलाब? एक्सपर्ट बता रहे वजह

बादल फटने की घटना से आशय 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेज हवाओं और आकाशीय बिजली चमकने के बीच 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक की दर से बारिश होने से है. जो धराली में नहीं हुआ था. फिर वहां इतना बड़ा हादसा कैसे हुआ?

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खीर गंगा नदी से आए मलबे के सैलाब ने धराली के भूगोल को ही बदल दिया है.

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  • उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली गांव में आई अचानक बाढ़ के लिए बादल फटना मुख्य कारण नहीं माना जा रहा है.
  • मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार मंगलवार को उत्तरकाशी में केवल कम बारिश हुई जो बादल फटने के मानदंडों से कम है.
  • विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ का असली कारण विशाल बर्फ या चट्टान गिरना या भीषण भूस्खलन हो सकता है.
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Uttarakhand Cloudburst: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को अचानक आई बाढ़ के लिए खीर गंगा नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने की घटना को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि मंगलवार को उत्तरकाशी जिले में हुई बारिश की मात्रा इतनी नहीं थी कि उसे “बादल फटने” की श्रेणी में रखा जा सके. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने कहा, “हमारे पास उपलब्ध आंकड़े बादल फटने की घटना की ओर इशारा नहीं करते.” उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी में मंगलवार को 27 मिलीमीटर बारिश हुई, “जो कि बादल फटने की घटना या इतनी विनाशकारी बाढ़ के लिहाज से बहुत कम है.”

IMD वैज्ञानिक बोले- डिटेल स्टडी से कारण होगा स्पष्ट

यह पूछे जाने पर कि धराली में अचानक आई बाढ़ के लिए अगर बादल फटना जिम्मेदार नहीं है, तो इसके पीछे और क्या कारण हो सकता है, थपलियाल ने कहा कि यह अध्ययन का विषय है. उन्होंने कहा, “विस्तृत अध्ययन के बाद ही इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहा जा सकता है कि अचानक आई बाढ़ के पीछे कारण क्या था.”

मौसम विभाग के आंकड़े बादल फटने की नहीं दे रहे गवाही

थपलियाल ने कहा, “मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मौसम विभाग के पास उपलब्ध आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि बादल फटने की कोई घटना नहीं हुई.” भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में शामिल बादल फटने की घटना में बेहद कम समय में सीमित इलाके में भारी मात्रा में बारिश होती है.

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IMD के मुताबिक, बादल फटने की घटना से आशय 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेज हवाओं और आकाशीय बिजली चमकने के बीच 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक की दर से बारिश होने से है.

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जानिए क्या होता है बादल फटना

हालांकि, 2023 में प्रकाशित एक शोध पत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जम्मू और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की के शोधकर्ताओं ने बादल फटने की घटना को “एक छोटी-सी अवधि में 100-250 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से अचानक होने वाली बारिश के रूप में परिभाषित किया है, जो एक वर्ग किलोमीटर के छोटे-से दायरे में दर्ज की जाती है.”

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अल्पाइन क्षेत्र में बादल फटने की आशंका बेहद कम

बात सिर्फ बारिश की मात्रा की नहीं है. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि इतनी ऊंचाई पर बादल फटने की घटना की आशंका बहुत कम है. डोभाल ने कहा, “जिस ऊंचाई से कीचड़ और मलबा ढलानों से नीचे आया, वह अल्पाइन क्षेत्र में आती है, जहां बादल फटने की आशंका बेहद कम है.”

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बर्फ का विशाल टुकड़ा या चट्टान गिरने से भीषण भूस्खलन की आशंका

डीपी डोभाल ने कहा, “सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि बर्फ का कोई विशाल टुकड़ा या बड़ी चट्टान गिरी होगी या फिर भीषण भूस्खलन हुआ होगा, जिससे हिमोढ़ (हिमनद द्वारा बहाकर लाए गए मलबे का जमाव) इकट्ठा हो गया और क्षेत्र में अचानक बाढ़ आ गई.” हालांकि, डोभाल ने कहा कि आपदा का सटीक कारण तभी पता चलेगा, जब धराली में मची तबाही से जुड़े उपग्रह चित्रों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा.

ISRO से मागे गए ऊपर के चित्र

अधिकारियों के अनुसार, उत्तरकाशी आपदा के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से उपग्रह चित्र मांगे गए हैं. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र ने इस संबंध में इसरो को एक अनुरोध पत्र भेजा है. ‘जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया' में पिछले महीने प्रकाशित एक अध्ययन उत्तराखंड में 2010 के बाद अत्यधिक वर्षा और सतह पर जल प्रवाह की घटनाओं में भारी वृद्धि की पुष्टि करता है.

1998 से 2009 के बीच तापमान में वृद्धि और बारिश में कमी

एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन से पता चलता है कि उत्तराखंड में 1998 से 2009 के बीच जहां तापमान में वृद्धि और बारिश में कमी दर्ज की गई, वहीं 2010 के बाद यह स्थिति उलट गई और राज्य के मध्य एवं पश्चिमी हिस्से अत्यधिक बारिश की घटनाओं के गवाह बने.

‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट' जैसे ‘टेक्टोनिक फॉल्ट' इलाके को बनाते है अस्थिर

राज्य का भूविज्ञान इसे आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. खड़ी ढलानें, कटाव के लिहाज से बेहद संवेदनशील नाजुक संरचनाएं और ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट' जैसे ‘टेक्टोनिक फॉल्ट' इलाके को अस्थिर बनाते हैं. हिमालय का भौगोलिक प्रभाव नम हवा को ऊपर की ओर खींचता है, जिससे स्थानीय स्तर पर तीव्र बारिश होती है, जबकि अस्थिर ढलानें भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ का जोखिम बढ़ाती हैं.

2020 से 2023 तक उत्तराखंड में मानसूनी महीनों में आए 183 आपदाएं

नवंबर 2023 में ‘नेचुरल हजार्ड्स जर्नल' में प्रकाशित एक अध्ययन में उत्तराखंड में 2020 से 2023 के बीच आई आपदाओं से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया गया, जिससे राज्य में अकेले मानसून के महीनों के दौरान 183 घटनाएं घटने की बात सामने आई. इनमें से 34.4 फीसदी घटनाएं भूस्खलन, 26.5 फीसदी आकस्मिक बाढ़ और 14 फीसदी बादल फटने की थीं.

जनवरी 2022 से मार्च 2025 तक हिमालयी राज्यों में 2863 लोगों की मौत

मौसमी आपदाओं पर विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के एटलस से पता चलता है कि जनवरी 2022 से मार्च 2025 के बीच 13 हिमालयी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में 822 दिन चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 2,863 लोगों की मौत हुई. विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्राकृतिक कारक मानवीय गतिविधियों के कारण और तीव्र हो गए हैं. अस्थिर ढलानों या नदी तटों पर बेलगाम सड़क निर्माण, वनों की कटाई और पर्यटन संबंधी बुनियादी ढांचे एवं बस्तियों के विकास से आपदाओं का जोखिम कई गुना बढ़ गया है.

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